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दिल्ली के बाद अब ”आप” की निगाहें पंजाब पर

नयी दिल्ली : आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में जनता से बहुमत मांगा था, लेकिन लोगों ने लगभग पूरी विधानसभा ही सौंप दी. भाजपा के विजय रथ को रोकते हुए ‘आप’ ने विधानसभा की 70 में से 67 सीटों पर जीत दर्ज की. पिछले चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी भाजपा […]

नयी दिल्ली : आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में जनता से बहुमत मांगा था, लेकिन लोगों ने लगभग पूरी विधानसभा ही सौंप दी. भाजपा के विजय रथ को रोकते हुए ‘आप’ ने विधानसभा की 70 में से 67 सीटों पर जीत दर्ज की. पिछले चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी भाजपा को सिर्फ तीन सीटों पर संतोष करना पड़ा. पार्टी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद के लायक भी नहीं रही.केजरीवाल 14 फरवरी को शपथ ग्रहण करेंगे.

इस विजय का पताका फहराने के बाद आम आदमी पार्टी अन्य राज्यों में अपने पैर जोर शोर से पसारने की तैयारी में जुट जायेगी. एक टीवी चैनल पर बातचीत के क्रम में आप नेता कुमार विश्‍वास ने कहा कि फिलहाल हम अन्य राज्यों के चुनाव में भाग लेने पर विचार करेंगे लेकिन हमारा पहला टारगेट पंजाब होगा.उन्होंने कहा कि यहां से हमारे चार सांसद हैं और पंजाब ड्रग के जंजाल से घिर चुका है इसलिए वहां के लोग ‘आप’ पर उम्मीद लगाये बैठे हैं.

वहीं, 15 साल तक दिल्ली पर राज कर चुकी कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल पायी. केंद्र की मोदी सरकार के लिए रायशुमारी माने जा रहे इस चुनाव में ‘आप’ ने भाजपा के दिग्गजों को उनके ही गढ़ में शिकस्त देकर नयी इबारत लिख दी. भाजपा के लिए यह पराजय इसलिए भी भारी पड़ी कि उसने लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय राजधानी में सभी सातों सीटें जीती थीं. इस बीच भाजपा नेताओं ने चुनाव परिणाम को झटका मानते हुए कहा कि जनता का फैसला मान्य है, लेकिन इस बात से इनकार किया यह मोदी सरकार के प्रदर्शन पर जनादेश है. ‘आप’ द्वारा हासिल की गयी यह कीर्तिमान है. इससे पहले केवल 1989 में सिक्किम संग्राम परिषद ने विधानसभा की सभी 32 सीटें जीती थीं. राजस्व सेवा के पूर्व अधिकारी और ‘आप’ के चेहरा बने अरविंद केजरीवाल ने स्वयं नयी दिल्ली सीट से भाजपा की नुपूर शर्मा को 31,500 मतों से पराजित किया. इस सीट पर तीसरे स्थान पर रहीं कांग्रेस प्रत्याशी किरण वालिया जमानत भी नहीं बचा पायीं. भाजपा के लिए सबसे बड़ा झटका उसकी मुख्यमंत्री पद की प्रत्याशी किरण बेदी का पार्टी की परंपरागत सीट कृष्णानगर से हार जाना रहा. बेदी ने यह सीट दो हजार से अधिक मतों से गंवायी, जबकि केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन यहां से लगातार भारी अंतर से जीतते रहे हैं. कांग्रेस के मुख्यमंत्री प्रत्याशी अजय माकन को सदर बाजार सीट पर ‘आप’ के सोमदत्त के हाथों 50 हजार मतों से अधिक के अंतर से भीषण पराजय ङोलनी पड़ी. वह जमानत भी नहीं बचा पाये. माकन ने जिम्मेदारी स्वीकारते हुए पार्टी महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया.

गत वर्ष मई में लोकसभा चुनाव में शानदार सफलता के बाद हुए चुनावों में भाजपा ने महाराष्ट्र, हरियाणा व झारखंड में सरकार बनायी और जम्मू-कश्मीर में सबसे अधिक मत प्रतिशत के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी. इधर, परिणाम के बाद विरोधियों के साथ भाजपा के कुछ सहयोगियों ने भी हमला किया है. शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने कहा कि वह गांधीवादी अन्ना हजारे से सहमत हैं कि चुनाव नतीजे मोदी की हार है.

‘आप’ को सभी वर्गो का समर्थन

सबसे बड़ी बात है कि चुनाव में ‘आप’को सभी वर्गो व धर्मो के लोगों का समर्थन मिला है. यही वजह है कि पार्टी ने दिल्ली की सभी 12 सुरिक्षत सीटों पर जीत दर्ज की है. इसके साथ ही यह संदेश दिया है कि उसने समाज के हर तबके में पैठ बना ली है. पिछले बार नौ सुरक्षित सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं, अल्पसंख्यक बहुल सीटें भी ‘आप’ के ही खाते में गयी हैं.

भाजपा के काम न आया ‘प्रबंधन’

लगभग 16 सालों से दिल्ली की सत्ता से बाहर भाजपा ने इस बार सत्ता में आने के लिए पूरा जोर लगा दिया था. पार्टी आलाकमान ने प्रचार के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 12 कैबिनेट मंत्री, पांच राज्यों के मुख्ममंत्री, 120 सांसदों और एक लाख से अधिक आरएसएस कार्यकर्ताओं को उतारा था. केजरीवाल की काट के तौर पर पूर्व आइपीएस अधिकारी किरण बेदी को चुनाव से महज कुछ ही दिन पहले मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया. इतने प्रबंधन के बाद भी पार्टी जनता का मूड भांप नहीं सकी. यही वजह है कि पार्टी ने गत चुनावों से भी कम वोट पाये. सीटों के मामले में पार्टी का दिल्ली विधानसभा में अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन किया.

दिल्ली से कांग्रेस बाहर

महज 15 महीनों पहले तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस इस बार विधानसभा की दहलीज पर भी पैर नहीं रख पायेगी. चुनावों के ठीक पहले पार्टी नेतृत्व ने अजय माकन को दिल्ली में प्रचार की जिम्मेदारी सौंपी थीं. पूर्व सांसदों और पूर्व केंद्रीय मंत्रियों को भी टिकट दिया गया था. दिल्ली में वापसी के लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी जम कर रोड शो किया, फिर भी जनता ने खारिज कर दिया. पार्टी को महज 9.7 फीसदी वोट हासिल हुए हैं और सीटें शून्य. पूर्व सांसद महाबल मिश्र भी अपनी सीट नहीं बचा पाये.

अवसरवादियों को सबक

चुनावों से ठीक पहले दल बदलनेवालों को भी दिल्ली की जनता ने खूब सबक सिखाया है. यूपीए सरकार में मंत्री रहीं कृष्णा तीरथ ने चंद दिनों पहले ही कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुई थीं.भाजपा ने उन्हें पटेलनगर से टिकट दिया था, हालांकि पटेलनगर के मतदाताओं को न भाजपा का फैसला पसंद आया और न कृष्णा तीरथ. भाजपा के टिकट पर खड़े आप के पूर्व विधायक विनोद कुमार बिन्नी आप के मनीष सिसोदिया से 28,761 वोटों से हार गये.

मोदी ने कैबिनेट सहयोगियों से की बातचीत

दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी शिकस्त की पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी के अपने वरिष्ठ कैबिनेट सहयोगियों के साथ विचार-विमर्श किया. मंत्रिमंडल की बैठक समाप्त होने के तत्काल बाद प्रधानमंत्री ने वित्त मंत्री अरुण जेटली, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, रसायन एवं उर्वरक मंत्री अनंत कुमार, संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू और सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत के साथ विचार-विमर्श किया.

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