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इस बार बदले-बदले से क्यों है अरविंद केजरीवाल ?

-मनोज अग्रवाल-नयी दिल्लीः दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीता है. हमलोगों ने यह कहावत तो सुनी है. अब इतिहास रच देने वाले और शिवसेना की भाषा में कहे तो भाजपा का कचरा कर देने वाले नौकरशाह से सामाजिक कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता से राजनीतिज्ञ बने अरविंद केजरीवाल के लिए यह कहावत अगर अंदर […]

-मनोज अग्रवाल-
नयी दिल्लीः दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीता है. हमलोगों ने यह कहावत तो सुनी है. अब इतिहास रच देने वाले और शिवसेना की भाषा में कहे तो भाजपा का कचरा कर देने वाले नौकरशाह से सामाजिक कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता से राजनीतिज्ञ बने अरविंद केजरीवाल के लिए यह कहावत अगर अंदर से नहीं तो बाहर से तो शूट करता ही है. दिल्ली विधानसभा 2015 में 70 सीटों में से 67 सीटों पर कब्जा जमाकर भाजपा को पटखनी और कांग्रेस की छंटनी कर देने वाले केजरीवाल की सीएम के रुप में यह दूसरी पारी होगी. पहली पारी में दिल्ली में उन्हें सीएम के रुप में कप्तानी करने का मौका तो मिला लेकिन पांच साल के राजनीतिक खेल का कुछ परिणाम निकलता उसके पहले उन्होंने कप्तानी पद से इस्तीफा दे दिया.

उन्होंने तो इस्तीफा दिया लेकिन उनको चुनने वालों ने, विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया कि वे मैदान छोडकर भाग गये. इसके बाद तो उनकी फजीहत शुरु हो गयी थी.

अतिउत्साह में लिया फैसला

2 अक्टूबर 2012 को अरविंद केजरीवाल ने अपने राजनीतिक सफर की औपचारिक शुरुआत की. 2013 के दिल्ली विधान सभा चुनावों मे अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली सीट से चुनाव लड़ा और 15 साल से दिल्ली की मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित को हराकर सनसनी फैला दी. यही नहीं इस चुनाव में 70 में से 28 सीटें जीतकर प्रदेश की राजनीति में खलबली मचा दी. कांग्रेस के सहयोग से इन्होंने अपनी सरकार भी बना ली और 28 दिसम्बर 2013 से 14 फ़रवरी 2014 तक 49 दिन दिल्ली के मुख्यमन्त्री के रूप में कार्य करते हुए लगातार सुर्खियों में बने रहे.

ऐक्शन, ड्रामा, इमोशन, सस्पेंस का कंप्लीट पैकेज बने रहे

इन 49 दिनों में अरविंद केजरीवाल अपनी कार्यशैली और कारनामों से सुर्खियों में छाये रहे. एक सीएम होकर सडक पर धरना, सडक में ही सरकारी फाइलों को निपटाना जैसे काम करके उन्होंने ‘रिकार्ड पर रिकार्ड ‘ बनाया. एक अखबार ने तो उनके इस अंदाज को देखते हुए उनको ऐक्शन, ड्रामा, इमोशन, सस्पेंस का कंप्लीट पैकेज की संज्ञा दे दी.

दिल्ली चुनाव में बडी जीत क्या मिल गयी केजरीवाल अपने अंदर के अति उत्साह में काबू नहीं रख पाये और सीएम की पद को छोड पीएम पद की होड में कूद पडे. और कूदे भी तो मोदी के खिलाफ. चुनाव में उनकी हार हुई. उनकी पार्टी भी पंजाब को छोडकर कही कमाल नहीं दिखा पायी.

कई तरह की मुश्किलों से हुए रुबरु

केजरीवाल के इस्तीफा देने के बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा और लोग केजरीवाल को कोसते रहे. इस बीच खबरें आती रही कि कभी उनको चाटे मारे जाते थे तो कभी कालिख पोत दी जाती थी तो कभी पत्थर फेंके जाते थे. लेकिन इन्होंने अपना धैर्य बनाये रखा.

यूपीए सरकार, भाजपा, उद्योगपतियों पर हमले जारी रहे

राजनीतिक दल बनाने की विधिवत घोषणा के साथ उन्होंने किसी पर भी हमला करना नहीं छोडा. कांग्रेस नेता सोनिया गाँधी जो नेहरू परिवार की उत्तराधिकारी और संप्रग की मुखिया हैं, के दामाद रॉबर्ट वढेरा और भूमि-भवन विकासकर्ता कम्पनी डीएलएफ के बीच हुए तथाकथित भ्रष्टाचार का खुलासा किया और बाद में केन्द्रीय विधि मंत्री सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी लुई खुर्शीद के ट्रस्ट के खिलाफ आन्दोलन भी छेड़ा.

कालेधन मामले में भाजपा के एक-एक नेताओं के नाम बताकर उन्होंने उस पर आरोप लगाया. उन्होंने उद्योगपतियों की भी आलोचना की. इस मामले में उनपर कई बार मानहानी के मामले भी दर्ज हुए. जाते-जाते फरवरी 2014 में उन्होंने उद्योगपति मुकेश अंबानी व उनकी कम्पनी रिलायंस के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कराने के आदेश भी जारी कर दिये.

केजरीवाल का बदला अंदाज

अबकी बार इस्तीफा नहीं देंगे

जब दिल्ली में फिर से चुनाव किये जाने की घोषणा हो गयी तो चुनावी हलचल और तेज हुई. केजरीवाल को कहते सुना गया कि हमसे गलती हो गयी अबकी बार हम आपको छोड कर नहीं जाएंगे. हम अब इस्तीफा नहीं देंगे. जनता से कई तरह के वायदे किये.

मुद्दों पर आधारित प्रचार

इस बार के प्रचार में पहले की तरह और लोकसभा चुनाव की तरह उनके प्रचार में सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप ही नहीं था. नेताओं को भ्रष्ट कहना, चोर कहना जैसे बयानों से बचते हुए उन्होंने इस बार मुद्दों पर आधारित प्रचार किया.

जीतने के बाद कहा कि अहंकार नहीं करना है

जब पहली बार उनकी पार्टी जीती थी तो उनकी बातों में खुद अहम झलकता था. बाद में भी कई बार उन्होंने चाहे जिस रुप में कहा हो लेकिन कहा कि हां हम एनार्किस्ट हैं. लेकिन इस चुनाव में भारी जीत के बाद सबसे पहले उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि हम अहंकार नहीं करेंगे. अहंकार के कारण उन दोनों बडी पार्टियों की हार हुई.

कुमार विश्वास का सराहनीय बयान

भाजपा इस चुनाव में केवल 3 सीटें जीत पायी है. अगर संवैधानिक रुप से देखा जाय तो वह विपक्ष में बैठने लायक भी नहीं है पर विश्वास ने कहा कि अगर एक भी सीट उन्हें मिलती तो हम उन्हें विपक्ष का दर्जा देंगे.

मोदी सरकार के नेताओं से लगातार मुलाकात

एक अच्छी परंपरा का निर्वाह करते हुए उन्होंने जीत हासिल करने के बाद मौजूदा केंद्र सरकार के मंत्रियों से मुलाकात की और शपथ समारोह में आने का औपचारिक न्यौता दिया.

इन सब बदलाव से लगता है कि केजरीवाल पिछली गलतियों से सबक सीख गये हैं. उनको पता चल गया है कि राजनीति करनी है तो राजनीति सिखनी होगी. उनके बदलाव का यह भी मकसद होगा कि अब दिल्ली फतह के बाद अपनी पार्टी का विस्तार किया जाय और जब आगामी लोकसभा चुनाव हो तो चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल का हो जाय.

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