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दहेज की मांग कभी भी की जा सकती है, जरुरी नहीं कि शादी के पहले ही हो: न्यायालय

नयी दिल्ली:: उच्चतम न्यायालय ने अपनी पत्नी को जहर देने और जलाकर मारने के जुर्म में पति की उम्र कैद की सजा बरकरार रखते हुये कहा है कि दहेज की मांग किसी भी समय की जा सकती है और यह जरुरी नहीं कि ऐसा शादी से पहले ही किया जाये. न्यायमूर्ति एम वाई इकबाल और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 15, 2015 11:05 AM

नयी दिल्ली:: उच्चतम न्यायालय ने अपनी पत्नी को जहर देने और जलाकर मारने के जुर्म में पति की उम्र कैद की सजा बरकरार रखते हुये कहा है कि दहेज की मांग किसी भी समय की जा सकती है और यह जरुरी नहीं कि ऐसा शादी से पहले ही किया जाये.

न्यायमूर्ति एम वाई इकबाल और न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोस की खंडपीठ ने अभियुक्त के इस तर्क को अस्वीकार कर दिया कि उसने शादी से पहले किसी तरह के दहेज की मांग नहीं की थी और विवाह के बंधन में बंधने के बाद इसकी मांग करने का कोई सवाल ही नहीं.
न्यायाधीशों ने शीर्ष अदालत के पहले के एक फैसले का हवाला देते हुये कहा कि भारतीय समाज में दहेज की कुरीति प्रचलित है और बचाव में यह कहना कि शादी से पहले इसकी मांग नहीं की गयी थी, इसमे कोई दम नहीं है. न्यायालय ने कहा कि दहेज की मांग किसी भी वक्त की जा सकती है और जरुरी नहीं है कि ऐसा शादी से पहले ही किया जाये.
शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड निवासी भीम सिंह और उसके परिवार के सदस्यों की अपील खारिज करते हुये कहा कि अभियोजन द्वारा पेश परिस्थितिजन्य साक्ष्यों में कोई भी कडी नदारद नहीं है. अभियोजन के अनुसार भीम सिंह का विवाह मई, 1997 में प्रेमा देवी के साथ हुआ था.विवाह के बाद जब वह अपनी ससुराल गयी तो उसके पति और ससुराल वालों ने दहेज में कुछ भी नहीं लाने के उसे ताने मारे और यातना दी.
अभियोजना का कहना है कि 26 सितंबर, 1997 को प्रेमा को कोई विषाक्त पदार्थ दिया गया जिसकी वजह से उसकी मृत्यु हो गयी और इसके बाद उसे जला दिया गया.निचली अदालत ने इस मामले में भीम और उसके भाई को भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी (दहेज हत्या) के तहत दोषी ठहराते हुये उन्हें धारा 498-ए (क्रूरता) और दहेज निषेध कानून की धारा तीन और चार के तहत उम्र कैद की सजा सुनायी थी.

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