अहमदाबाद: गुजरात के लोकायुक्त के रुप में आर ए मेहता की नियुक्ति पर पैदा हुए विवाद में आज उस समय नया मोड़ आ गया जब सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने पदभार संभालने से इनकार कर दिया. उन्होंने अपनी नियुक्ति के खिलाफ राज्य सरकार की लंबी एवं खर्चीली कानूनी लड़ाई को अपने फैसले की वजहों में से एक बताया.
मेहता ने कहा, ‘‘मैं गुजरात के लोकायुक्त के रुप में दी गई अपनी सहमति विनम्रतापूर्वक वापस लेता हूं और पदभार ग्रहण करने से इनकार करता हूं. कृपया मेरा आग्रह स्वीकार कीजिए और मुझे कार्यमुक्त कीजिए.’’उन्होंने कहा, ‘‘मैं स्पष्ट रुप से स्वीकार करता हूं कि मैं संबंधित परिस्थितियों में जन दायित्व नहीं निभा पाउंगा और लोकायुक्त से जुड़ी जन आवश्यकताओं तथा जन आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर पाउंगा.’’
मेहता ने कहा, ‘‘मैं यह जिम्मेदारी ग्रहण करके कैसे लोकायुक्त बन सकता हूं जब मेरी निष्पक्षता और विश्वसनीयता सरकार तथा सार्वजनिक पदाधिकारियों को स्वीकार्य नहीं है जिनके आचरण की जांच लोकायुक्त को करनी होती है तो किसी सार्वजनिक पदाधिकारी के लिए या उसके खिलाफ जांच परिणाम तथा सिफारिश..हमेशा सवालिया निशानों के घेरे में रहेगी.’’
नरेंद्र मोदी सरकार पर परोक्ष रुप से आरोप लगाते हुए मेहता ने कहा कि उनकी नियुक्ति को चुनौती देकर लगातार लड़ी गई कानूनी लड़ाई उनके पद से इनकार करने का कारण है.
मोदी सरकार को दरकिनार करते हुए राज्यपाल ने मेहता को 25 अगस्त 2011 को गुजरात का लोकायुक्त नियुक्त किया था. इसके बाद कानूनी लड़ाई शुरु हो गई जो करीब दो साल तक चली. राज्य सरकार ने उनकी नियुक्ति रद्द करने की मांग की थी और उच्चतम न्यायालय में उपचारात्मक याचिका के खारिज होने तक अंतिम क्षण तक लड़ाई लड़ी. गुजरात में 2003 से लोकायुक्त नहीं था.
मेहता ने शीर्ष अदालत में राज्य सरकार की तीन याचिकाएं खारिज होने के बावजूद उनकी नियुक्ति को राज्य गजट में अधिसूचित करने को लेकर गुजरात सरकार की ‘‘अनिच्छा’’ का भी जिक्र किया. उन्होंने लिखा, ‘‘उच्चतम न्यायालय के तीन आदेशों के बाद भी गुजरात सरकार के आधिकारिक गजट में लोकायुक्त की नियुक्ति अधिसूचित करने के प्रति राज्य सरकार की अनिच्छा चौंकाने वाली, लेकिन अनपेक्षित नहीं.’’