देश भर में हर्षोल्लास के साथ मनायी जा रही है ईद
नयी दिल्ली : आज ईद का त्योहार पूरे देश में उत्साह के साथ मनाया जा रहा है. लोग एक दूसरे के गले लग कर प्रेम और भाईचारे के इस पर्व पर लोगों को बधाई दे रहे हैं.फतेहपुरी मस्जिद के मौलाना मुफ्ती मोहम्मद मुकर्रम ने कहा, ‘‘ईद का चांद गुरुवार को देश के विभिन्न स्थानों पर […]
नयी दिल्ली : आज ईद का त्योहार पूरे देश में उत्साह के साथ मनाया जा रहा है. लोग एक दूसरे के गले लग कर प्रेम और भाईचारे के इस पर्व पर लोगों को बधाई दे रहे हैं.फतेहपुरी मस्जिद के मौलाना मुफ्ती मोहम्मद मुकर्रम ने कहा, ‘‘ईद का चांद गुरुवार को देश के विभिन्न स्थानों पर देखा गया.
पूरे महीने के रोजे के बाद आज ईद मनायी जा रही है. पूरे देश में ईद की खुशी नजर आ रही है.कल रात चांद दिखने के बाद आज ईद मनाये जाने की घोषणा की गयी. आज सुबह से ही मस्जिदों व ईदगाहों में नमाज अदा की जा रही है.राष्ट्रपति ने देशवासियों को ईद उल फितर की शुभकामनाएं दीं
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज ईद उल फितर के मौके पर देशवासियों को शुभकामनाएं दीं और आशा जताई कि यह उत्सव सभी धर्मों में एकता की भावना और देश की संस्कृति पर गर्व करने की शिक्षा देगा.उन्होंने कहा कि रमजान के पवित्र महीने के दौरान रोजे और प्रार्थना के दौर के समापन के मौके पर ईद उल फितर मनाई जाती है और यह हमारे मन में भाईचारे तथा हर्ष की भावना पैदा करता है.
राष्ट्रपति ने अपने संदेश में कहा कि यह महोत्सव सौहार्दपूर्ण, शांतिपूर्ण और समृद्ध समाज बनाने के लिए मेहनत करने की प्रेरणा देता है. इस दिन हम मानवता की सेवा करने और गरीबों तथा जरुरतमंदों का जीवन स्तर सुधारने के लिए अपने आप को समर्पित करते हैं.कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने ईद उल फितर के मौके पर आज देशवासियों को बधाई दी. इस मौके पर बधाई और शुभकामना व्यक्त करते हुए सोनिया गांधी ने अपने संदेश में कहा कि यह त्यौहार लोगों को सद्भावपूर्ण सहअस्तित्व और विविध आस्थाओं वाले लोगों के प्रति सम्मान रखने की याद दिलाता है. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लोगों को बधाई दी.
लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने अपने संदेश में कहा कि ईद उल फितर का त्यौहार रमजान के मुबारक महीने के आखिरी दिन मनाया जाता है और यह क्षमाशीलता, कुर्बानी और परोपकार का प्रतीक है. आइये इस अवसर पर हम सभी क्षेत्रों और लोगों को अमन और भाईचारे का संदेश दें. कुमार ने कहा कि हम एक ऐसे समावेशी और मेलजोल भरे समाज की स्थापना करें जिसमें हर एक को इज्जत से जीने का हक मिले.
जब ईद–उल–फितर की रात आती है, तो उसे लैलतुल जायजा कहते हैं. यानी इनाम की रात. जब ईद की सुबह होती है, तो अल्लाह अपने फरिश्तों को तमाम शहरों में भेजते हैं. वह फरिश्ते जमीन पर आकर गलियों व रास्तों पर खड़े हो जाते हैं और आवाज देते हैं– ऐ मुसलमानों! उस अल्लाह की बारगाह की तरफ चलो, जो बहुत ही ज्यादा अता करने वाला और बड़े–से–बड़े गुनाह माफ करने वाला है. फिर अल्लाह अपने बंदों से मुखातिब होकर कहते हैं, ऐ मेरे बंदों, मांगों, क्या मांगते हो. मेरी इज्जतों जलाल की कसम, आज के रोज इस नमाज–ए–ईद के मजमा में जो तुम सवाल करोगे, मैं उसे पूरा करूंगा. हजरत सैयदना वहब्बिन मोनब्बा फरमाते हैं कि जब ईद आती है, तो शैतान चिल्ला–चिल्ला कर रोता है. इसकी बदहवाशी देख तमाम शैयातीन उसके गिर्द जमा होकर पूछते हैं, ये आका आप क्यों उदास हैं. वह कहता है हे अफसोस अल्लाह ने ईद के दिन उम्मते मोहम्मद को बख्श दिया है. लिहाजा तुम्हे बुरे खाहिशात में लगा दूं. बहरहाल, मुसलमानों को चाहिए कि शैतानी बातों से दूर रहें,क्योंकि शैतान इनसान का दुश्मन होता है.
मौलाना मखदूम अशरफ मुजीबी
मसूद जामी
रमजान की रहमत, मगफरत और जहन्नम से आजादी के इनाम के तौर पर रोजेदारों को ईद मिली है. ईद का शाब्दिक अर्थ है खुशी. ईद को ईद–उल–फितर भी कहते हैं. ईद के दिन खुशी मनाना सुन्नत–ए–रसूल है.
ईद क्यों
जब कोई देश किसी जालिम बादशाह के शासन से मुक्त होता है और आजादी मिलती है, तो हरेक वर्ष उसी माह की उसी तारीख को जश्न मनाया जाता है. जब कोई छात्र परीक्षा में सफल हो जाता है, तो उसे अति प्रसन्नता होती है. ठीक इसी तरह माहे रमजान में एक माह तक दिन में रोजा और रात में नमाज और सारी इच्छाओं पर काबू पाया और एक माह की सख्त परीक्षा में सफल हुआ, तो सफल होने पर इनाम के तौर अल्लाह ने ईद दी है.
हजरत अनस की मशहूर हदीस है कि पैगंबर हजरत मोहम्मद (स.व.) ने फरमाया कि जब ईद का दिन आता है, तो अल्लाह रोजेदारों की तारीफ फरिश्तों से करते हैं और कहते हैं कि इस मजदूरी का बदला क्या है. अपने बंदों से कहते हैं, मगफरत और तुम्हारे गुनाहों को नेकियों में बदल दिया.
माफी का एलान
रमजानुल मुबारक के तुरंत बाद ईद–उल– फितर की अजीम नेमत मिलती है. ईद की बेहद फजीत है. अपनी इबादत का पुरस्कार बंदों को माफी के रूप में मिलता है. ईद–उल–फितर की मुराबक रात को इनाम की रात या समीक्षा की रात कहते हैं. ईद की सुबह होते ही अल्लाह अपने फरिश्तों को जमीन के तमाम हिस्सों में भेज देते हैं. सभी फरिश्ते गलियों के दोनों ओर खड़े होकर आवाज देते हैं. बंदों मांगों जो भी मांगोगे अल्लाहत् देंगे. तुम्हारी खताओं को माफ कर देंगे. तुमने मुङो राजी कर दिया और मैं भी तुम से राजी हो गया.
बेरोजदारों के लिए ईद नहीं वईद है
जिसने रमजान के सारे रोजे रखे, नमाजे पढ़ी, कुरान की तिलावत की और सारी गुनाहों से परहेज किया, उसी के लिए ईद है. जिसने रोजा नहीं रखा, नमाज नहीं पढ़ी, इबादत नहीं की, उनके लिए वईद है.
गरीबों पर ध्यान
ईद के दिन हमें मसाकीन, गरीबों, असहायों का विशेष ध्यान रखने की जरूरत है. उनको भी ईद की खुशी में शामिल करें.
हजरत वहब (र. ह.) ईद के दिन रोते हुए फरमाते हैं कि यह खुशी का दिन उस शख्स के लिए है जिसके रोजे मकबूल हों. ईद उसकी नहीं है जो नये कपड़े पहने, ईद उसकी है, जो अल्लाह के बताये हुए रास्ते पर चले.
ईद के दिन क्या करें
हजामत बनवाना, नाखून तराशना, स्नान करना, मिशवाक करना, अच्छे कपड़े पहनना, खुशबू लगाना, इतर लगाना, ईद की नमाज जाने से पूर्व तीन, पांच, सात खजूर खाना, अगर खजूर नहीं हो तो मीठा चीज खाना. नमाज ईदगाह या करीब की मसजिद में अदा करना. ईदगाह पैदल चलना सबाब है. सवारी पर भी जाने में आपत्ति नहीं है. ईद की नमाज के लिए एक रास्ते से जाएं और दूसरे रास्ते से लौटें. ईद की नमाज से पूर्व फितरा अदा करना जरूरी है. ईदगाह या मसजिद जाने के क्रम में तीसरा कलमा पढ़ें. खुशी का इजहार करें. नमाज ईद के बाद लोगों से गले मिलें और मुबारकबाद दें.
अच्छाई की राह पर बढ़ने का नाम है ईद
सभी धर्मो के मानने वाले धर्मोत्सव (त्योहार) मनाते हैं. किसी धर्म का उत्सव उस धर्म का उत्कर्षण, संस्कृति, व्यवहार एवं मानसिक चेतना का प्रतिफलन होता है. पैगंबर महम्मद (स) के पूर्व जितने भी पैगंबर आये, सभी ने अपने–अपने प्रचारित धर्मो में उत्सव पालन (त्योहार मनाने) की व्यवस्था की है. प्रत्येक जाति अपनी आस्थानुसार साल में एक या अत्यधिक बार उत्सव पालन करते हैं. यहूदी किसी एक विशेष दिन को गांव से बाहर मिल कर ईद मानते हैं. ईसाई ईसा मसीह का जन्मोत्सव मनाते हैं. इसलाम जिसे शांति के धर्म के रूप में अभिहित किया जाता है, यह वह धर्म है जिसने विश्व इतिहास के राजनीतिक, सामाजिक, अर्थनैतिक तथा धार्मिक चेतना में एक नव विप्लव का सृजन किया है. इस धर्म में हजरत महम्मद (स) के मक्का से मदीना हिजरत करने के बाद ईद उत्सव की व्यवस्था की गयी. इसलाम पूर्व मदीना में साल में दो दिन वसंत के आगमन तथा ग्रीष्म के अंत में उत्सव मनाया जाता था. हजरत अनस (र अ) वर्णन करते हैं कि मदीना आने के बाद हजरत महम्मद (स) ने मदीनावासियों को साल में दो बार उत्सव मनाते देखा, जिसका संबंध जाहिलियत युग से था.
हजरत महम्मद ने फरमाया, हम जब आएं, उस समय तुमलोग जाहिलियत युग की परंपरा का अनुसरण करके दो दिन उत्सव मनाया करते थे. अल्लाह ने उसके बदले में दो विशेष दिनों को उत्सव बनाने के लिए निर्देश दिया है. कुरबानी का दिन और रमजान का शेष दिन.
अलफतह अल रब्बानी ने शेख अहमद अब्दुर्रहमान आल बना के अनुसार, ये दिन बहुत ही महान हैं. कुरबानी तथा ईद–उल–फितर, इसलाम के दो महत्वपूर्ण स्तंभ हज तथा रोजा खने के पुरस्कार स्वरूप हैं. इन दिनों में जो लोग हज करते हैं या रोजा रखते हैं अल्लाह उन्हें क्षमा करते हैं तथा अपनी रहमत की बारिश अपने बंदों पर करते हैं. विख्यात अभिधानविद इल–अल–अरबी लिसनिल अरब में लिखते हैं, इस दिन को ईद इसलिए कहा जाता है, क्योंकि प्रत्येक साल ये दिन मानव जीवन में आनंद का हिल्लोल भर देता है.
विख्यात व्याकरणविद अविदवन के अनुसार, इस दिन का नामकरण ‘ईद’ इसलिए किया गया है, क्योंकि इस दिन अल्लाह अपने पुरस्कार का हिसाब करते हैं, अपने बंदों को आशीर्वाद देते हैं. खाने–पीने से विरत (सूर्योदय से सूर्यास्त तक) रहने के बाद ईद–उल–फितर के दिन से दिन में फिर से खाने–पीने तथा गरीब मिस्कीन को सदका तथा फितरा देने का निर्देश अल्लाह के द्वारा दिया गया.
इसलाम में उत्सव मनाने की व्यवस्था दूसरे धर्मो से भिन्न है. इसलाम में ईद मनाने का उद्देश्य अच्छे काम करना तथा अल्लाह की अनुग्रह प्राप्ति के लिए अल्लाह के प्रति अपने आपको समर्पित करना है. ईद–उल–फितर का शाब्दिक अर्थ है रोजा रखने का आनंद. अर्थात उत्सव मनाने के एक महीने पहले से ही इसकी प्रस्तुति चलती है. प्रत्येक वयस्क मुसलमान पर एक महीना रोजा रखना अनिवार्य है.
सूर्योदय से सूर्यास्त तक वह मात्र खाने से ही विरल नहीं रहता है, बल्कि एक महीने तक वह अपने आपको दैनिक जीवन में पेश आनेवाले प्रत्येक अन्याय से दूर रखता है. वह झूठ नहीं बोलता है, कुकर्म नहीं करता अर्थात वह अपने प्राण तथा अपनी आत्मा को विशुद्ध व पवित्र कर देता है. नमाज तथा तरावीह नियमित पढ़ता है. इसलाम में एत्तेकाफ पर काफी जोर दिया गया है. इक्कीस (21) रमजान को गांव के प्रत्येक या कोई एक व्यक्ति मसजिद में एत्तेफाक के लिए बैठता है तथा अल्लाह को स्मरण करता है. अल्लाह की इबादत करता है. ईद का चांद नजर आने के बाद वह मसजिद से बाहर आता है. इन दिनों में (10 दिन) अल्लाह की इबादत के अतिरिक्त पार्थिव जीवन की कोई चिंता नहीं करता. मन को (आत्मा को) पवित्र रखता है तथा अपने अंदर पवित्र चिंता धारा को जन्म देता है.
एक महीने का रोजा इनसान को समस्त कुकर्म से दूर रखता है तथा आत्मा को पवित्र कर देता है. रमजान की 29 या 30 तारीख को ईद का चांद दिखते ही हर तरफ उत्सव का माहौल पैदा हो जाता है. सभी ईद मनाने की तैयारी प्रारंभ कर देता है.
अब्दुस सलाम सिवानी
624 ई में मनायी गयी पहली ईद
आबिद हुसैन
पहला ईद–उल–फितर पैगंबर मोहम्मद ने सन 624 ई में जंग–ए–बदर के बाद मनाया था. मुसलमान रमजान–उल–मुबारक के 30 रोजों की समाप्ति के बाद ईद–उल– फितर की नमाज ईदगाहों व मसजिदों में अदा करते हैं. इस त्योहार को सभी आपस में मिल करमनाते हैं. ईद रमजान का चांद डूबने और ईद का चांद नजर आने पर उसके अगले दिन चांद की पहली तारीख को मनायी जाती है.
रमजान माह की इबादतों के बाद ईद–उल–फितर का त्योहार खुदा का इनाम है. ईद का चांद नजर आते ही माहौल में एक गजब का उल्लास छा जाता है. ईद के दिन सेवइयों या शीर खुरमे से मुंह मीठा करने के बाद छोटे–बड़े, अपने पराये, दोस्त–दुश्मन गले मिलते हैं. चारों तरफ मोहब्बत–ही–मोहब्बत नजर आती है. खुशी से दमकते सभी चेहरे इनसानियत का पैगाम माहौल में फैला देते हैं. अल्लाह से दुआएं मांगते व रमजान के रोजे और इबादत की हिम्मत के लिए खुदा का शुक्र अदा करते हाथ हर तरफ दिखायी पड़ते हैं. यह उत्साह बयान करता है कि लो ईद आ गयी.
अल्लाह एक दिन अपने उक्त इबादत करनेवाले बंदों को बख्शीश व इनाम से नवाजता है. इसलिए इस दिन को ईद कहते हैं और इसी इनाम के दिन को ईद–उल– फितर कहा जाता है. चांद ईद का पैगाम लेकर आता है. इस चांद को अल्फा कहा जाता है. रमजान के रोजे को एक फर्ज करार दिया गया है, ताकि इनसानों को भूख – प्यास का महत्व पता चले. भौतिक वासनाएं और लालच इनसान के वजूद से जुदा हो जाये और इनसान कुरान के अनुसार अपने को ढाल ले. अगर कोई सिर्फ अल्लाह की ही इबादत करे और उसके बंदों से मोहब्बत करने व उनकी मदद करने से हाथ खींचे, तो ऐसी इबादत को इसलाम ने खारिज किया है.
ईद का संदेश
हर दिन को बनायें ईद
हमें हर दिन को ईद बनाने का प्रयास करना चाहिए. ईद खुशी का त्योहार है. यह खुशी सिर्फ एक दिन के लिए या एक घर के लिए नहीं होनी चाहिए. हमें अपने किरदार और प्रेम से हर दिन हर आदमी के लिए ईद बनाने का प्रयास करना चाहिए. यही हकीकत में ईद है. जिस तरह पैंगबरे इसलाम ने ईद के दिन अपनी जिंदगी सादगी से गुजारी, उसी तरह हमें भी अपना दिन गुजारना चाहिए. ईद का दिन अमीर व गरीब के लिए बराबर खुशी का पैगाम लेकर आता है. दूसरों को खुश रखना ही ईद का पैगाम है.
मुफ्ती अनवर कासमी , इमारत ए शरिया
रब का शुक्र अदा करने का दिन
अल्लाह ताला का शुक्र अदा कीजिए कि उसने रमजानुल मुबारक का मुकद्दस दिन दिया. अल्लाह ने रोजे,इफ्तार, सेहरी, तरावी व बहुत सारी नेमत वाले मुबारक महीने के अंतिम दिन ईद उल फित्र की खुशी जैसी बड़ी नेमत अता फरमायी. यह दिन एक सौगात है. यह त्योहार आपसी भाईचारा और मुहब्बत का पैगाम देता है. इस दिन शुकराने के तौर पर ईद की नमाज अदा करना वाजिब है. इस मुबारक दिन अल्लाह ताला लोगों के गुनाहों को माफ करते हैं. ईद के दिन अपने पड़ोसियों,रिश्तेदारों, यतीमों व बेसहारों का विशेष ख्याल किया जाय तभी सच्चे अर्थ में ईद उल फित्र की सच्ची खुशी हासिल होगी.
मौलाना कुतुबुद्दीन रिजवी, एदार–ए–शरिया
आज आसमान में आपके लिए इनामों की घोषणा
नवाज शरीफ
आज आपके लिए आसमान में इनामों की घोषणा हो रही है. ये घोषणा कोई और नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के इकलौते मालिक अल्लाह खुद कर रहे हैं. चौंकिए मत, ये इनाम आपको रमजान के रोजे, तरावीह, इबादत और दीन पर चलने के लिए दिये जा रहे हैं. ऐसा हो सकता है कि ये इनाम आपको दुनिया में न भी मिले. इसका बदला आखिरत यानी कयामत के दिन जरूर मिलेगा. ईद का दिन मुसलमानों के लिए इनाम का दिन है. इस दिन अल्लाह अपने बंदों को रोजे का सवाब अता करता है.
रमजान के पूरे रोजे, तरावीह और इबादत का बदला अल्लाह अपने बंदों को ईद के दिन देता है. ये इनाम कोई मामूली नहीं, बल्कि खास होता है. इसके दर्जे दूसरे इनामातों से बुलंद होते हैं. एक हदीस में है कि जब इनसान को जहन्नम में डाला जायेगा, तो जहन्नम की आग उससे भागेगी. तब जहन्नम के फरिश्ते कहेंगे, ऐ आग तू उसे क्यों नहीं पकड़ती. तब आग जवाब देगी कि उसके मुंह से रोजे की बू आ रही है. फिर उस इंसान को जन्नत में डाल दिया जायेगा. इससे बड़ा इनाम हमारे लिए क्या हो सकता है. जहन्नम से आजादी हर इंसान चाहता है और रोजा हमें जहन्नम से आजाद कराने का जरिया बन सकता है. यही वजह है कि अल्लाह ने रमजान के बाद ईद रखी. ईद खुशी मनाने का दिन है.
इस दिन गरीबों को भी अपनी खुशी में शामिल करें. उन्हें कुछ दें, उन्हें भी सिवाय्यों का जायका लेने दें. इसी में सच्ची खुशी है. क्योंकि इसलाम धर्म गरीबों को भी बराबर का अधिकार देता है. कहा गया है कि अगर तुम्हारे पड़ोस में कोई भूखा सो गया, तो उसका गुनाह तुम्हें होगा. मतलब साफ है कि हमें सभी का ध्यान रखना है. रमजान में जकात और फितरा, तो आप अदा कर ही चुके होंगे. अब अपने हाथों को थोड़ा और वसीह करिये और आम दिनों में भी गरीबों की मदद करते रहिये, ताकि वो भी आपकी तरह अपनी जरूरतों को पूरा करते रहें. आप दुनिया में अपने ऊपर जितना खर्च करेंगे उसका हिसाब आपको कयामत के दिन अल्लाह की अदालत में देना होगा. लेकिन गरीबों को की गयी मदद उस दिन आपके जहन्नम से आजादी का सबब बन सकती है, तो सिर्फ रमजान में ही नहीं, बल्कि पूरे साल गरीबों से हमदर्दी से पेश आएं और उनकी मदद करते रहें. ताकि अल्लाह आपको इसका बदला या यूं कहें कि इसका इनाम कयामत के दिन देगा.
खुशी मनाओ, आज ईद है
डॉ शाहिद अख्तर
आज ईद है. यानी खुशियों की सौगात का दिन. रमजान में एक महीने की कठिन परीक्षा में पास होने के बाद ईद के दिन खुशियों में साराबोर हो जाना स्वाभाविक है. सभी अदावतें, रंजिशें, अनबन, मतभेद और मनभेद को भुला कर दोस्त और दुश्मन से भी गले लगने का दिन है. वास्तव में यह प्रसन्नता, सुंदरता और पारस्परिक मधुर–मिलन के भाव को प्रकट करनेवाला त्योहार है. ईद की खुशियां मीठी सिवइयों के साथ और भी मीठी हो जाती है. भारत जैसे देश जहां अनेक धर्मो के लोग एक साथ रहते हैं. ईद का त्योहार सांप्रदायिक सौहार्द के लिए एक बेहतरीन अवसर प्रदान करता है. जिसमें दूसरे धर्मो के लोग भी इस खुशी में शामिल होकर आपसी एकता और भाईचारा का संदेश देते हैं.
ईद सचमुच रहमत का दिन है. अल्लाह इस दिन रमजान में पूरी पाकिजगी के साथ रोजे रखनेवाले रोजेदारों को खास इनामों से नवाजता है. ईदगाह में जब हजारों की संख्या में लोग अपने सिरों को अल्लाह की इबादत में झुकाता है, तो अल्लाह उनके गुनाहों को माफ कर देता है. यह एक सामाजिक त्योहार भी है. जिसमें अमीरी–गरीबी, ऊंच–नीच का भेदभाव मिटा कर लोग एक–दूसरे को अपने सीने से लगा लेते हैं. ईदगाह में एक ही पंक्ति में खड़े होकर नमाज अदा करना एक अद्वितीय नजारा है. जिसमें किसी को कोई विशिष्ठता हासिल नहीं होती. सभी लोग एक बराबर नजर आते हैं. आर्थिक, सामाजिक भेदभाव की कुरीतियां यहां दम तोड़ती है. अल्लामा इकबाल ने कहा था. एक ही शफ में आ गये महमूद व आयाज, न कोई बंदा रहा और न कोई बंदानवाज. सामाजिक बराबरी के इस संदेश को सिर्फ ईद के दिन तक सीमित नहीं करना चाहिए. वर्ष के अन्य दिनों में भी यह नजारा देखने को मिलनी चाहिए. रमजान के दिनों में मुसलिम समाज पाकिजगी में डूब जाता है. सभी प्रकार की बुराइयां मिट जाती है. मुसलमान का हर पल अनुशासन और अल्लाह के आदेश के अनुसार गुजरता है. साल के अन्य महीनों में भी यह माहौल दिखना चाहिए, तभी रमजान में मिले ट्रेनिंग का लाभ है.