भूमि अधिग्रहण बिल पर सरकार को मिला शिवसेना का साथ

नयी दिल्ली : विपक्ष के विरोध व वाकआउट के बीच सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल पेश किया. यह बिल पिछले साल दिसंबर में लाये गये अध्यादेश की जगह लेगा. इसके जरिये यूपीए सरकार द्वारा बनाये गये कानून में संशोधन किया जाना है. विपक्ष ने इसे किसान विरोधी बताते हुए कहा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 25, 2015 7:39 AM

नयी दिल्ली : विपक्ष के विरोध व वाकआउट के बीच सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल पेश किया. यह बिल पिछले साल दिसंबर में लाये गये अध्यादेश की जगह लेगा. इसके जरिये यूपीए सरकार द्वारा बनाये गये कानून में संशोधन किया जाना है. विपक्ष ने इसे किसान विरोधी बताते हुए कहा कि सभी दलों के साथ सलाह के बाद ही सदन में पेश किया जाना चाहिए.

वहीं दूसरी ओर मीडिया में चल रही खबर की माने तो शिवसेना के मंत्री अनंत गीते ने स्पष्ट किया कि भूमि अधिग्रहण विधेयक पर आयोजित बैठक का उनकी पार्टी ने बहिष्कार नहीं किया है. गीते लोकसभा में शिवसेना के दल नेता भी हैं. उन्होंने बताया कि शिवसेना के प्रतिनिधि के तौर पर सांसद गजानन कीर्तिकर, विनायक राऊत, अरविंद सावंत, रवी गायकवाड, राहुल शेवाले बैठक में मौजूद थे. इससे पहले खबर थी कि भाजपा के सहयोगी दल शिवसेना ने इस बिल का विरोध किया है.

इस बीच प्रधानमंत्री मोदी ने दो टूक कहा कि विधेयक पर पीछे हटने का सवाल ही नहीं है. केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह ने जैसे ही ‘‘भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनव्र्यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता का अधिकार संशोधन विधेयक 2015’’ को पेश करने की लोस अध्यक्ष से अनुमति मांगी पूरा विपक्ष खड़े होकर इसका विरोध करने लगा. कांग्रेस, सपा, तृणमूल कांग्रेस, राजद, आम आदमी पार्टी सहित कई विपक्षी दलों के सदस्य अध्यक्ष के आसन के निकट आ गये और विरोध करने लगे. संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने विपक्षी सदस्यों को राजी कराने का प्रयास करते हुए कहा कि भाजपा सरकार पूरी तरह से किसानों के हित में है. सरकार विधेयक के प्रावधानों पर चर्चा के लिए तैयार है, पर विपक्ष नहीं माना.

हंगामे के बीच अध्यक्ष ने ध्वनिमत से विधेयक पेश किये जाने की अनुमति दी और मंत्री ने विधेयक पेश किया. इसके विरोध में विपक्षी दलों ने सदन से वाकआउट किया. सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकाजरुन खड़गे ने अध्यादेश का स्थान लेने के लिए लाये गये इस विधेयक को किसान विरोधी और गरीब विरोधी बताया. यदि सरकार सभी दलों से सलाह मशविरा कर विधेयक लाती तो कुछ और बात होती, लेकिन यह तो ‘बुलडोज’ करके लाया गया है.

बिल में सभी के सुझाव : पार्टी संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि विधेयक से किसानों को लाभ होगा. सरकार की ओर से इसमें संशोधन कांग्रेस शासित राज्यों व उनके मुख्यमंत्रियों के सुझाव के आधार पर लाये गये हैं. इस मुद्दे पर पीछे नहीं हटा जायेगा.विपक्ष द्वारा बनाये गये ‘मिथ’ की हवा निकालनी चाहिए. इस बीच भाजपा भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर विधेयक को ‘और प्रभावी ’ बनाने के लिए अपने सहयोगियों के साथ चर्चा करने का फैसला किया है.

किसान संघों का मार्च : देश भर के कई किसान संघों के सदस्यों ने सरकार के भूमि अध्यादेश के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने के लिए मंगलवार को यहां संसद के लिए मार्च किया. इस बीच माकपा नेता हन्नान मुल्ला ने शाम में छह बजे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की. इस बीच पंद्रह किसान संगठनों का एक प्रतिनिधिमंडल गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की और मांगों से उन्हें अवगत कराया. भारत कृषक समाज के चेयरमैन कृष्णबीर चौधरी ने कहा कि गृह मंत्री ने आश्वासन दिया है कि सरकार किसानों की चिंताओं पर चर्चा करेगी. उन्होंने कहा कि किसानों का अन्ना हजारे के आंदोलन से कोई लेना देना नहीं है.

सरकार बुला सकती है संयुक्त सत्र : राज्यसभा में पर्याप्त संख्या बल नहीं होने के कारण कई अध्यादेशों को कानूनी जामा पहनाने में विफल रहने की स्थिति में राजग सरकार बजट सत्र के बाद संसद का संयुक्त सत्र बुला सकती है. सूत्रों का कहना है कि यदि सरकार बजट सत्र में बीमा और कोयला सेक्टर समेत कई महत्वपूर्ण आर्थिक विधेयकों को पारित कराने में विफल रहती है तो इस विकल्प को अपनाया जा सकता है. इनमें से कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए सरकार पहले ही अध्यादेश लागू कर चुकी है और अब विधेयकों के जरिये इन्हें कानून का रूप देना है. यदि एक विधेयक पेश किया जाता है और यह एक सदन में पारित हो जाता है लेकिन दूसरा सदन यदि इसे रोक दे या इसमें संशोधन कर दे या नामंजूर कर दे या छह महीने तक वह कुछ नहीं करे तो विधेयक संयुक्त सत्र में जाता है.

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