नयी दिल्लीः इन दिनों राजनीतिक पार्टी, मीडिया समेत आम जनता भी यह जानने को परेशान हैं कि आखिर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी कहां हैं. जब देश में बजट सत्र चल रहा है, इसको लेकर सियासी तूफान भी मचा हुआ है ऐसे में राहुल गांधी का सदन में मौजूद नहीं होना सबको आश्चर्यचकित कर रहा है. इससे भी बडी बात है कि वे कहां पर हैं इसको लेकर भी सस्पेंस बरकरार है. कभी माना जा रहा है कि वह विदेश में हैं तो कभी कहा जा रहा है कि वह उत्तराखंड में हैं. लेकिन कांग्रेस ने इस बात से इनकार किया कि राहुल उत्तराखंड में हैं.
हमेशा से राहुल गांधी पर उनके नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठते रहे हैं. कभी राहुल अपने अटपटे बयान को लेकर आलोचना का शिकार हुए तो कभी संसद में बैठकर झपकी लेने के कारण. और इस बार संसद सत्र के वक्त छुट्टी में चले जाने पर तो यह भी कहा जा रहा है कि राहुल अपनी जिम्मेदारियों से भाग रहे हैं.
राहुल गांधी के छुट्टी पर जाने की असल वजह उनकी नाराजगी बताई जा रही है. माना जा रहा है कि पार्टी में वरिष्ठों से पटरी नहीं बैठ पाने की वजह से राहुल ने ये कदम उठाया है. पार्टी पूरे मामले पर गोलमोल जवाब ही दे रही है. 19 जनवरी 2013 को जयपुर चिंतन शिविर में राहुल को कांग्रेस उपाध्यक्ष की कमान दी गई थी. तब युवा कांग्रेसियों में जोश देखने लायक था. पार्टी के लोगों को पूरा विश्वास था कि कांग्रेस के दिन फिरेंगे. लेकिन लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार और उसके बाद से हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड के विधानसभा चुनाव परिणाम से भाजपा के अच्छे दिन तो आये लेकिन राहुल गांधी के लिए बुरा दौर शुरु हो गया. दिल्ली चुनाव परिणाम ने तो उनकी जैसे कमर तोड दी. 70 सीटों में से एक भी सीट नहीं ला पाना उनकी नेतृत्व क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया.
अब अभी तो साफ नहीं है कि वे क्यों छुट्टी में हैं और कहां है लेकिन जैसा कि जानकार बता रहे हैं कि राहुल ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को कुछ दिनों पहले ही छुट्टी की अर्जी दी थी जो मंजूर हो गई. बताया गया कि वह आगे की नीतियों पर सोच विचार करने के लिए आत्मचिंतन करना चाहते हैं. लेकिन सूत्रों की मानें तो राहुल का छुट्टी पर चले जाना दरअसल वरिष्ठ नेताओं से उनका टकराव हो सकता है. सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के इर्दगिर्द जो लॉबी है, वो राहुल को पसंद नहीं करती. ठीक इसी तरह राहुल भी इस लॉबी को पसंद नहीं करते हैं. राहुल चाहते हैं कि पार्टी में युवा नेता सामने आएं और संगठन की कमान नई पीढ़ी के हाथ में जाए.