राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने से पहले पार्टी के अंदर जारी है शह और मात का खेल

नयी दिल्ली : पहले राहुल गांधी के संसद के बजट सत्र से ठीक पहले दो हफ्ते की छुट्टी पर जाने की खबरों और फिर उनके लोकेशन को लेकर जारी कयासों के बीच कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों के हवाले से खबरें आ रही हैं कि अप्रैल में राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 25, 2015 4:26 PM
नयी दिल्ली : पहले राहुल गांधी के संसद के बजट सत्र से ठीक पहले दो हफ्ते की छुट्टी पर जाने की खबरों और फिर उनके लोकेशन को लेकर जारी कयासों के बीच कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों के हवाले से खबरें आ रही हैं कि अप्रैल में राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में तापजोशी निश्चित है. अप्रैल में कांग्रेस का महाधिवेशन प्रस्तावित है, जिसमें उम्मीद की जा रही है राहुल गांधी को सोनिया गांधी औपचारिक रूप से पार्टी की कमान सौंपते हुए पार्टी अध्यक्ष बनाने का एलान करेंगी.
राहुल गांधी के संसद सत्र के ठीक पहले छुट्टी पर जाने को इसी से जोड़ कर देखा रहा है. एक पक्ष का कहना है राहुल स्वयं व पार्टी की कार्यप्रणाली पर चिंतन करने के लिए अवकाश पर गये हैं और जल्द ही पूरी ऊर्जा के साथ पार्टी का कामकाज संभाल लेंगे. वहीं, राजनीतिक विेषक राहुल की ताजपोशी को पार्टी के अंदर जारी शह और मात का खेल से जोड़ कर देख रहे हैं. माना जा रहा है कि अचानक छुट्टी पर जाकर राहुल ने अपने विरोधियों की नहले पर दहला चल दिया है.
ध्यान रहे कि 19 जनवरी 2013 को राहुल गांधी को सोनिया गांधी ने जयपुर चिंतन शिविर में पार्टी का उपाध्यक्ष बनाने का एलान किया था. राहुल गांधी पिछले दो साल से अधिक समय से उपाध्यक्ष के रूप में पार्टी का कामकाज देख रहे हैं और इस पद पर उनके पहुंचने के बाद पार्टी को कई चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा है. सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने की संभावना के मद्देनजर ही पार्टी के अंदरखाने राहुल का विरोध और समर्थन शुरू हो गया है. पार्टी नेताओं का एक तबका नहीं चाहता है कि सोनिया गांधी इतनी जल्दी राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंपे. इस वर्ग का मानना है कि नेतृत्व परिवर्तन का कोई भी फैसला पार्टी की स्थिति बेहतर होने पर ही लिया जाये. हालांकि पार्टी का एक तबका प्रियंका गांधी को भी राजनीति में लाने का पक्षधर है. उनका मानना है कि प्रियंका ही अब पार्टी की डूबती नैया को बचा सकती हैं.
महासचिव राहुल गांधी सफल, उपाध्यक्ष राहुल गांधी असफल!
राहुल गांधी ने 2003 में सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया. यही वह समय था, जब वे सक्रिय रूप से पार्टी के कार्यक्रमों और बैठकों में मां सोनिया गांधी के साथ दिखने लगे थे. इसी दौर में उनकी बहन प्रियंका गांधी के भी सक्रिय राजनीति में आने की अटकलें शुरू हुई. 2004 को अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ कर उन्होंने संसदीय राजनीति में प्रवेश किया. उनके अमेठी से चुनाव लड़ने का लाभ यह हुआ कि उत्तरप्रदेश में खास्ताहाल कांग्रेस में थोड़ी जान आ गयी और वह राज्य में 10 सीटें जीत पायी. इस दौर में वे यूपी कांग्रेस का कामकाज देखते रहे. हालांकि लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी मात्र 22 सीटें ही जीत पायी. इसके बाद 2007 में उन्हें अधिक बड़ी जिम्मेवारी देते हुए पार्टी का महासचिव बनाया गया. उस समय राहुल गांधी भारतीय मीडिया के कवरेज के केंद्र बन गये थे, जो स्थिति आज नरेंद्र मोदी व अरविंद केजरीवाल की है. महासचिव के रूप में उन्हें युवा कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ का प्रभार दिया गया, जहां उन्होंने शानदार काम किया और दोनों संगठनों में नयी जान फूंकी. इसी दौर में 2009 के आम चुनाव में पार्टी ने अपनी जीत दोहरायी और लंबे समय बाद उसकी सीटें 200 के आंकड़े को पार कर पायी. इस दौर में पार्टी ने कई राज्यों में भी चुनाव जीता. लेकिन, राहुल गांधी के उपाध्यक्ष बनने के बाद पार्टी को लगातार हार का मुंह देखना पड़ा है और चाहे-अनचाहे इसका दोष उन्हीं के सिर मढ़ा जा रहा है.

Next Article

Exit mobile version