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जब प्रभु से जवाब नहीं मिला तो ”प्रभु” ने ठाना, अब रेलवे का होगा पुनर्जन्‍म

नयी दिल्‍ली : एक कहावत है कि उपर वाले उसी की मदद करते हैं जो खुद की मदद करता है. इस कहावत को रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कुछ दूसरे अंदाज में आज अपने रेल बजट भाषण में दुहराया. रेलवे के विशाल नेटवर्क को चुस्त दुरुस्त करने के लिए रेल मंत्री सुरेश प्रभु को ‘प्रभु’ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 26, 2015 4:24 PM

नयी दिल्‍ली : एक कहावत है कि उपर वाले उसी की मदद करते हैं जो खुद की मदद करता है. इस कहावत को रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कुछ दूसरे अंदाज में आज अपने रेल बजट भाषण में दुहराया. रेलवे के विशाल नेटवर्क को चुस्त दुरुस्त करने के लिए रेल मंत्री सुरेश प्रभु को ‘प्रभु’ तक से मदद मांगनी पडी लेकिन अंतत: उन्होंने खुद ही यह बीडा उठाने का फैसला किया. लोकसभा में आज अपना पहला रेल बजट पेश करते हुए सुरेश प्रभु ने रेलवे को सुदृढ बनाए जाने की योजनाओं पर कहा, ‘आमान परिवर्तन, दोहरीकरण, तिहरीकरण और विद्युतिकरण पर जोर दिया जाएगा.

औसत गति बढेगी. गाडियों के समय पालन में सुधार होगा. मालगाडियों को समय सारिणी के अनुसार चलाया जा सकेगा.’ प्रभु ने कहा, ‘पर मेरे मन में सवाल उठता है. हे प्रभु, ये कैसे होगा?’ प्रभु द्वारा प्रभु का इस प्रकार संदर्भ दिए जाने से सदन में मौजूद सदस्य उनकी वाकपटुता से अभिभूत हुए बिना नहीं रह सके. रेल मंत्री ने कहा, ‘प्रभु ने तो जवाब नहीं दिया, तब इस प्रभु ने सोचा कि गांधीजी जिस साल भारत आए थे, उनके शताब्दी वर्ष में भारतीय रेलवे को एक भेंट मिलनी चाहिए कि परिस्थिति बदल सकती है.

रास्ते खोजे जा सकते हैं, इतना बडा देश, इतना बडा नेटवर्क, इतरे सारे संसाधन, इतना विशाल मैनपावर, इतनी मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति. तो फिर क्यों नहीं हो सकता रेलवे का पुनर्जन्म.’ सदन में मौजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रेल मंत्री के भाषण को पूरे गौर से सुना और वह भाषण सुनने के साथ साथ लगातार लिखित भाषण के पन्ने भी पलटते देखे गए. प्रधानमंत्री के साथ वाली सीट पर गृह मंत्री राजनाथ सिंह जबकि प्रभु के बगल में नितिन गडकरी और वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी बैठे हुए थे.

विपक्ष की ओर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उनके समीप वाली सीट पर सपा प्रमुख मुलायम सिंह और पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौडा तथा मल्लिकार्जुन खडगे बैठे हुए थे. रेल मंत्री ने जब रेलवे स्टेशनों पर यात्री सुविधाओं में सुधार के लिए सांसदों से अपने एमपीलैड का एक हिस्सा इस्तेमाल करने का आह्वान किया तो अधिकतर सदस्य इस पर नाखुशी जाहिर करते नजर आए. हालांकि रेल मंत्री ने बताया कि बेंगलुरु सेंट्रल से सांसद पी सी मोहन और उत्तरी मुंबई से सांसद गोपाल शेट्टी ने यात्री सुख सुविधाओं के लिए अपने एमपीलैड कोष से क्रमश: एक करोड और डेढ करोड रुपये दिए हैं.

सुरेश प्रभु ने अपने भाषण में महात्मा गांधी का नाम लेने के साथ ही स्वामी विवेकानंद और मराठी उपन्यासकार शुभदा गोगाटे को भी उद्धृत किया. रेल बजट में किसी नई ट्रेन की घोषणा नहीं होने पर अधिकांश सदस्यों, विशेषकर विपक्षी सदस्यों ने निराशा जाहिर की. पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी बजट भाषण के दौरान लगातार नोट पैड पर कुछ नोट करते रहे और प्रभु का बजट भाषण समाप्त होने पर निराशा का भाव प्रकट करते देखे गए.

सुरेश प्रभु जैसे-जैसे बजट के प्रावधानों पर से परदे हटाते जा रहे थे, विपक्ष की कुनमुनाहट साफ देखने को मिल रही थी. लेकिन प्रभु की सहजता ने भाषण के अंत तक सभी को सस्‍पेंस में रखे रखा. विपक्ष को हंगामा करने का अवसर ही नहीं मिल पाया. प्रभु ने बड़े ही सरल अंदाज में मराठी नोबेल का उदाहरण देते हुए बताया कि हर चीज में बदलाव संभव है लेकिन वह रातोंरात नहीं की सकती है. इसमें कुछ समय लगता है. रेलवे के कायाकल्‍प के लिए भी सरकार को कुछ समय चाहिए. उन्‍होंने विपक्ष पर हमला करते हुए कहा कि पिछले दशकों में रेलवे का जो हाल किया गया है, उसे ही सुधारने के लिए काफी परिश्रम करनी पड़ेगी.

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