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”आप” के कलह पर पढें वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार की खास रिपोर्ट

रवीश कुमार,वरिष्ठ पत्रकार किसी भी जहाज को चलाने वाले नाविकों का दल बदलता रहता है. आम आदमी पार्टी के जहाज के नाविक दल में बदलाव जरूरी है. लंबी दूरी की यात्र के लिए यह एक सामान्य प्रक्रिया भी है. आखिर में यह सब कप्तान पर निर्भर करता है कि वह तमाम मुश्किलों से निकाल कर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 4, 2015 6:58 AM

रवीश कुमार,वरिष्ठ पत्रकार

किसी भी जहाज को चलाने वाले नाविकों का दल बदलता रहता है. आम आदमी पार्टी के जहाज के नाविक दल में बदलाव जरूरी है. लंबी दूरी की यात्र के लिए यह एक सामान्य प्रक्रिया भी है. आखिर में यह सब कप्तान पर निर्भर करता है कि वह तमाम मुश्किलों से निकाल कर जहाज को मंजिल तक सुरक्षित कैसे पहुंचाता है. ‘इकोनॉमिक टाइम्स’ में ‘आप’ के लोकपाल एडमिरल रामदास के एक लेख का यह आखिरी पैरा है.

प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव ने सार्वजनिक रूप से यही कहा है कि उन्होंने अरविंद केजरीवाल को हटाने की बात नहीं की है. इसके बाद भी जब वे पार्टी के एक व्यक्ति केंद्रित होने की बात करते हैं, तो हटाने जैसी बात न सही एक और नेता की बात तो कर ही रहे हैं. जैसे सरकार में उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया नंबर दो हैं, वैसे पार्टी में कौन है. एडमिरल रामदास के इस लेख पर ‘आप’ के प्रवक्ताओं ने चुप्पी साध ली. नाविक दल बदलने की बात तो प्रशांत और योगेंद्र की बात से भी आगे की लगती है. रही बात ‘आप’ के कप्तान की, तो अरविंद केजरीवाल इस मसले पर अभी तक चुप ही हैं. मंगलवाल को उन्होंने दो ट्विट किये हैं. एक में कहा है कि पार्टी में जो कुछ भी चल रहा है, उससे मैं आहत हूं. दिल्ली ने जो भरोसा हममें जताया है, उससे धोखा है. मैं इस लड़ाई में पड़ने वाला नहीं हूं. दिल्ली सरकार के काम पर ही ध्यान लगाऊंगा. जनता के भरोसे को किसी भी हालत में नहीं टूटने दूंगा.

केजरीवाल की तबीयत बेहद खराब बतायी जा रही है, लेकिन उनके इस ट्विट से साफ है कि अब यह विवाद विचारों का नहीं रहा. आशुतोष ने सोमवार को कहा था कि व्यक्तियों का नहीं विचारों का टकराव है, अल्ट्रा लेफ्ट और एक नयी तरह की राजनीति में टकराव हो रहा है. मंगलवार को आशुतोष ने ट्विट में इसे साफ किया कि कश्मीर में जनमतसंग्रह की मांग करने वाले अल्ट्रा लेफ्ट और लोगों की भलाई के लिए व्यावहारिक राजनीति करने वालों के बीच का टकराव है.

मंगलवार को आशीष खेतान ने ट्विट किया कि शांति, प्रशांत और शालिनी ‘आप’ को पिता-पुत्र-पुत्री की पार्टी बनाना चाहते हैं. यानी ‘आप’ ने प्रशांत भूषण के खिलाफ अपनी लाइन साफ कर दी है. कश्मीर में जनमत संग्रह करने की मांग सिर्फ प्रशांत की है या अन्य लोगों की भी, यह साफ नहीं है. योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण की व्यक्तिगत महत्वकांक्षा की कल्पना ही की जा सकती है, लेकिन सार्वजनिक रूप से जो सवाल सामने आये हैं, वे अब पीछे छूट चुके हैं. मीडिया में लीक होने के मामले को बड़ा कर दिया गया है. लेकिन पार्टी अपने नेता दिलीप पांडे की चिट्ठी के लीक होने की बात नहीं कर रही है. दिलीप ने पार्टी के लोकपाल को चिट्ठी लिखकर योगेंद्र यादव पर आरोप लगाये हैं. मजेदार बात यह है कि अंगरेजी अखबार में लिखे अपने लेख में लोकपाल एडमिरल रामदास भी कह रहे हैं कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी को लिखी उनकी चिट्ठी मीडिया को लीक कर दी गयी. और रामदास जो लेख लिख रहे हैं वो लीक है या लोकपाल का अपना अधिकार, इस पर किसी ने कुछ नहीं कहा है.

रामदास ने तो अपने लेख में योगेंद्र और प्रशांत के उठाये सवालों का समर्थन किया है. कहा है कि ‘आप’ की कामयाबी केजरीवाल, योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण हमारी राजनीति के चेहरे रहे हैं. क्या हम सबके साझा योगदान, विवेक और अनुभवों को गंवा देने के लिए तैयार हैं. हमारी चुनौती है कि पार्टी में संवाद का दरवाजा खुला रखें और अंतर्विरोधों को संभालना सीखें. तो क्या ‘आप’ इन अंतर्विरोधों को संभालने में कोई नयी मिसाल पेश करेगी. अब तक हो रही बयानबाजी से तो ऐसी उम्मीद नहीं की जानी चाहिए. कार्यकारिणी से योगेंद्र और प्रशांत की बर्खास्तगी टल जाये तो भी पार्टी व इन दो नेताओं के संबंध अब बहुत बिगड़ चुके हैं. पार्टी ने मन बना लिया है कि वह अब आगे की यात्र तो तय करेगी, लेकिन नाविक दल में बदलाव वैसे नहीं होगा जैसा रामदास ने नौ सेना के अपने अनुभव से बताया है. बल्कि ‘आप’ अब पुराने नाविकों को घर भेज देगी. उनकी जगह दो नये नाविक आ जायेंगे.

यह विवाद शुरू नहीं हुआ है, बल्कि अपने अंजाम पर पहुंच गया है. रही बात पार्टी के भीतर लोकतंत्र से जुड़े उन सवालों की, तो ये सब वैसे ही सरकार बनने के बाद खारिज हो जाते हैं. अब यह ‘आप’ में यकीन रखने वालों पर निर्भर करेगा कि वे इस पार्टी में क्या होते देखना चाहते हैं. विधायक और वॉलेंटियर चुप हैं. सिर्फ दो खेमे बोल रहे हैं. पार्टी तो नहीं टूटेगी, लेकिन पार्टी से जुड़ी कुछ गंभीर मान्यताएं जरूर टूटेंगी. राजनीति में ऐसा होता है. आम आदमी पार्टी में भी हो रहा है.

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