नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने सहजीवन के रिश्तों को भारतीय दंड संहिता के तहत बलात्कार के दायरे से बाहर रखने से इंकार कर दिया है. उच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसा करने का मतलब इस रिश्ते को वैवाहिक दर्जा प्राप्त करना होगा जिसका विधायिका ने चयन नहीं किया है. मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलॉ की खंडपीठ ने कहा है, ‘‘जहां तक सह जीवन के रिश्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 :बलात्कार: के दायरे से बाहर रखने का सवाल है तो ऐसा करने का मतलब सहजीवन को वैवाहिक दर्जा प्राप्त करना होगा और विधायिका ने ऐसा नहीं करने का चयन किया है.’’
अदालत अनिल दत्त शर्मा की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में दलील दी गयी थी कि अनेक मामलों में यह पाया गया है कि अदालतों ने बलात्कार के आरोपियों को बरी कर दिया है क्योंकि महिलाओं ने झूठे मामले दर्ज किये थे. याचिका में कहा गया था कि 70 फीसदी से अधिक मामलों में आरोपी दोषी नहीं पाये गये और बरी किये गये आरोपी के परिवार के अन्य सदस्यों को समाज में शर्मसार होना पडा. याचिका में केंद्र और दिल्ली सरकार को यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया था कि बलात्कार के आरोप से बरी व्यक्ति को मुआवजा प्राप्त करने का सांविधानिक अधिकार दिया जाये और कानून के दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ मामले दर्ज किये जायें.
याचिका में कहा गया था कि पुलिस ऐसे मामलों में महिला की सिर्फ शिकायत के आधार पर प्रारंभिक जांच और मेडिकल रिपोर्ट प्राप्त किये बगैर ही व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं करना चाहिए. अदालत का मत था कि याचिका गलत धारणा और पहले से ही उपलब्ध कानूनों के प्रति अज्ञानता पर आधारित है. अदालत ने कहा कि याचिका पर इस तरह के निर्देश नहीं दिये जा सकते हैं.