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मानवयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम इसरो की प्राथमिकता सूची से हटा

बेंगलूर : भारत का प्रस्तावित मानवयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) की प्राथमिकता सूची से हट गया है और यह कार्यक्रम वर्ष 2017 से पहले होने की संभावना नहीं है.यह महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शायद पूरे अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक नयी ऊर्जा का संचार कर देगा और नयी दिल्ली को रुस और चीन के समक्ष […]

बेंगलूर : भारत का प्रस्तावित मानवयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) की प्राथमिकता सूची से हट गया है और यह कार्यक्रम वर्ष 2017 से पहले होने की संभावना नहीं है.यह महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शायद पूरे अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक नयी ऊर्जा का संचार कर देगा और नयी दिल्ली को रुस और चीन के समक्ष ला देगा. यह दोनों देश इस उपलब्धि को हासिल कर चुके हैं. अमेरिका ने अपने अंतरिक्ष शटल कार्यक्रम को फिलहाल विराम दे रखा है.

बहरहाल, भारतीय अंतरिक्ष विभाग की 12 वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) में यह मिशन शामिल नहीं है.इसरो अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने बताया कि इस मिशन के लिए महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियां विकसित करने में खासी प्रगति हुई है. लेकिन उन्होंने इस मिशन के लिए कोई निश्चित समय सीमा बताने से मना कर दिया.

राधाकृष्णन ने यहां बताया हमने इसे कार्यक्रम के तौर पर घोषित नहीं किया है. हमारे पास एक विश्वसनीय तथा मानव मिशन के अनुकूल एक मैन-रेटेड प्रक्षेपक (जीएसएलवी) होना चाहिए. दोनों बातें महत्वपूर्ण हैं.इसरो प्रमुख अंतरिक्ष विभाग के सचिव और अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष भी हैं.

उन्होंने कहा हमारी 12 वीं पंचवर्षीय योजना में मानव मिशन शामिल नहीं है. हो सकता है कि हम बाद में इसे लें. जब हम इसके बारे में बात करते हैं तो हमारे पास वह नयी प्रौद्योगिकियां होनी चाहिए जो मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन से जुड़ी हों. हम यही कर रहे हैं. इस कार्यक्रम के तहत अंतरिक्ष मिशन पर दो या तीन सदस्यों को 300 किमी निचली पृथ्वी कक्षा (लो अर्थ ऑर्बिट) पर ले जाने और फिर उन्हें सुरक्षित पृथ्वी पर वापस लाने का लक्ष्य है.

वर्तमान में परियोजना से पहले की गतिविधियां जारी हैं जिनमें मिशन से जुड़े तकनीकी और प्रबंधकीय मुद्दों का अध्ययन आदि हैं. क्रू मॉड्यूल (सीएम), पर्यावरण नियंत्रण एवं जीवन रक्षक प्रणाली (ईसीएलएसएस) और बचाव प्रणाली (क्रू एसकेप सिस्टम) जैसी उप प्रणालियों के लिए महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी विकसित करने पर मुख्य रुप से ध्यान दिया जा रहा है.

वर्ष 2006 में इसरो ने मिशन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक बैठक बुलाई थी जिसमें देश भर के करीब 80 वरिष्ठ वैज्ञानिक शामिल हुए थे.मिशन की अवधारणा के लिए एक (ऑटोनॉमस ऑर्बिटल व्हीकल विकसित करना होगा जिसे भारत के भू स्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपक वाहन (जियो-सिन्क्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल), जीएसएलवी-एमके द्वितीय या जीएसएलवी-एमके तृतीय से प्रक्षेपित किया जा सके.

इसरो को मिशन के लिए जरूरी कई प्रौद्योगिकियों में महारथ हासिल है लेकिन नए घटनाक्रम में जीवन रक्षक प्रणालियां, उन्नत विश्वसनीय और सुरक्षित बचाव प्रणाली तथा अन्य प्रणालियां आदि की जरूरत होगी.

राधाकृष्णन ने बताया कि ईसीएलएसएस, क्रू मॉड्यूल, बचाव प्रणाली और फ्लाइट सूट सहित कार्यक्रम के लिए महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के विकास में खासी प्रगति हुई है.

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