नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि बलात्कार के मामले में प्राथमिकी दर्ज कराने में देर होना ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि पीडिता को खुल कर आगे आने के लिए साहस जुटाना होता है और एक रुढिवादी सामाजिक परिवेश में खुद को सामने लाना पडता है.
न्यायालय ने कहा कि बलात्कार के मामलों में पीडिता या उसके माता-पिता द्वारा सभी परिस्थितियों में प्राथमिकी दर्ज होने में देर होना महत्वपूर्ण नहीं होता.
न्यायमूर्ति दीपक मिश्र और न्यायमूर्ति एनवी रमण की एक पीठ ने कहा, ‘‘कभी-कभी सामाजिक कलंक लगने का डर और कभी सामान्य होने के लिए उपचार की उपलब्धता तथा इससे भी उपर सारी मानसिक अंदरुनी मजबूती ऐसी कानूनी लडाई की जगह ले लेती है.’’ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ दायर मोहम्मद अली की एक अपील पर शीर्ष न्यायालय की यह टिप्पणी आई है.
उच्च न्यायालय ने 1996 में 14 साल की एक लडकी के अपहरण और बलात्कार को लेकर आरोपी को 10 साल की सश्रम कैद की सजा सुनाई थी.
हालांकि, शीर्ष न्यायालय ने आरोपी को मामले में आरोपमुक्त कर दिया.