लखनउ: मुस्लिम धर्मगुरुओं और विद्वानों ने मस्जिद के धार्मिक इमारत नहीं होने और उसे किसी भी समय ढहाने को उचित ठहराने के भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी के बयान की कडी आलोचना करते हुए आज कहा कि केंद्र सरकार की नाकामियों से ध्यान हटाने के लिये दिये गये इस बयान को ज्यादा तवज्जो देने की जरुरत नहीं है.
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के महासचिव मौलाना निजामुद्दीन ने स्वामी के बयान से असहमति जताते हुए ‘पीटीआई भाषा’ से कहा ‘‘हम इस बयान से इत्तेफाक नहीं करते हैं. बाकी मजहबों की इबादतगाहों की तरह मस्जिदें भी धार्मिक स्थल हैं. हमारे मुल्क में 800 बरस इस्लामी हुकूमत रही, लेकिन किसी भी बादशाह ने कोई मस्जिद नहीं ढहाई. अगर मस्जिद धार्मिक स्थल ना होती, या उसे गिराने की कोई गुंजाइश होती तो मस्जिद गिराने के कई उदाहरण इतिहास में दर्ज होते.’’ उन्होंने स्वामी की दलील से नाइत्तेफाकी जाहिर करते हुए कहा कि सउदी अरब में शासक किसी जरुरी निर्माण कार्य के लिये मस्जिद ढहाने की मजबूरी की स्थिति में पहले दूसरी जगह पर मस्जिद बनवाता है फिर पहली मस्जिद को ढहाता है.
निजामुद्दीन ने कहा कि सउदी अरब का अपना तरीका होता है. स्वामी को अगर बराबरी ही करनी है तो वह सउदी अरब के नियमों को यहां लागू कराएं. सारी दुनिया को मालूम है कि वहां चोरी करने पर हाथ काटा जाता है और कत्ल या भ्रष्टाचार करने पर सिर कलम किया जाता है. असल बात यह है कि सरकार की नाकामियों पर से ध्यान हटाने के लिये स्वामी द्वारा दिये गये इस बयान को तवज्जो देने की जरुरत ही नहीं है.
गौरतलब है कि स्वामी ने पिछले दिनों गुवाहाटी में कहा था कि सउदी अरब में सडकें वगैरह बनाने के लिये मस्जिद ढहा दी जाती हैं. मस्जिद कोई धार्मिक स्थल नहीं होतीं और उन्हें किसी भी वक्त ढहाया जा सकता हैं.आल इंडिया शिया पर्सनल ला बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने भी स्वामी के बयान पर कडा एतराज जाहिर करते हुए कहा कि मस्जिद कोई साधारण इमारत नहीं है बल्कि अल्लाह का घर है, जिसे किसी भी हाल में ढहाया नहीं जा सकता है.
अब्बास ने कहा, ‘‘सउदी अरब में जरुर मस्जिदें ढहा दी जाती हैं..सउदी अरब दुनिया के लिये उदाहरण नहीं है, बल्कि मुहम्मद साहब मिसाल हैं. मस्जिद तो मस्जिद है, जहां उसकी तामीर होगी, उसका एहतराम वाजिब और लाजिम है.’’ विश्वविख्यात इस्लामी शोध संस्थान शिबली एकेडमी आजमगढ के उपप्रमुख मौलाना उमैर-अल-सिद्दीक ने कहा ‘‘हमारा मानना है कि जो लोग सउदी अरब, पाकिस्तान, सीरिया और सूडान का नाम लेना यह गवारा नहीं समझते, वे अपनी बात के समर्थन में उनका हवाला दे रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘हमें हंसी आती है कि लोग ऐसे फुजूल के बयानों को लेकर टेलीविजन पर बहस करने चले आते हैं. यह बडी सचाई है कि जहां मस्जिद बन जाती है वह कयामत तक मस्जिद में रहती है. यह इस्लामी उसूल है.’’ उमैर ने कहा कि अगर सउदी अरब सरकार कोई गलत काम करती है तो हम उसके पदचिह्नों पर नहीं चल सकते. वहां तो गुनाह की सजा के तौर हाथ और गला काट दिया जाता है लेकिन हमारे मुल्क में उस कानून को नहीं माना जाता. मस्जिद तोडने के लिये तो हवाला देना ही गलत है.
उन्होंने कहा कि स्वामी के बयान पर ध्यान देने की जरुरत ही नहीं है. स्वामी खुद भी जानते हैं कि उन्होंने जो बयान दिया है वह गलत है. हुकूमत की नाकामियों को छुपाने के लिये ऐसी बातें की जा रही हैं.