जब कांग्रेस ने चंद्रशेखर की सरकार पर राजीव गांधी की जासूसी का आरोप लगाया

नयी दिल्लीः राहुल की जासूसी पर संसद के अंदर और बाहर हो हल्ला का दौर जारी है. कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया था कि वह दिल्ली पुलिस से राहुल गांधी की राजनीतिक जासूसी कर रही है. इसके बाद संसद में भी यह मुद्दा गरमाया और वर्तमान में भी इसको लेकर सियासत गरम है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 16, 2015 6:54 PM

नयी दिल्लीः राहुल की जासूसी पर संसद के अंदर और बाहर हो हल्ला का दौर जारी है. कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया था कि वह दिल्ली पुलिस से राहुल गांधी की राजनीतिक जासूसी कर रही है. इसके बाद संसद में भी यह मुद्दा गरमाया और वर्तमान में भी इसको लेकर सियासत गरम है.

अगर इतिहास के पन्नों को पलटें तो भारतीय राजनीति में जासूसी का यह मामला कोई नया नहीं है. चन्द्रशेखर की 40 दिनों की सरकार से राजीव गांधी ने इसलिए समर्थन वापिस ले लिया था कि उनके घर के बाहर दो पुलिस वाले घूमते पाए जाते थे और कांग्रेस पार्टी को लगा कि ये राजीव गांधी की जासूसी कर रहे थे. फिर क्या था चन्द्रशेखर की सरकार गिर गई.

गौरतलब है कि चंद्रशेखर सिंह ने कांग्रेस के समर्थन से नवंबर 1990 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से चार महीने तक सरकार चलाई थी लेकिन राजीव गांधी की जासूसी करने के आरोप में कांग्रेस ने चंद्रशेखर सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था. उस समय हरियाणा पुलिस के दो कांस्टेबल राजीव गांधी के घर के पास से जासूसी करने के आरोप में पकड़े गए थे.

2 मार्च 1991 को हारियाणा पुलिस के कांस्टेबल प्रेम सिंह और राज सिंह को राजीव गांधी के निवास 10 जनपथ के बाहर से जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. दोनों सादे लिवास में थे. दोनों ने स्वीकार किया था कि उन्हें कुछ सूचना एकत्रित करने के लिए वहां भेजा गया था. मामले को लेकर जैसे राजनीतिक भूचाल आ गया. आखिर प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को 6 मार्च 1991 को इस्तीफा देने की घोषणा करनी पड़ी थी.

उस वक्त कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि चौटाला सरकार के गृहमंत्री संपत सिंह के निर्देश पर राजीव गांधी के घर पर नजर रखी जा रही थी. बताया जाता है कि इस जासूसी का मकसद जनता दल के उन असंतुष्ट नेताओं पर नजर रखना था, जो राजीव गांधी से मिल रहे थे. इनमें देवीलाल के छोटे बेटे रंजीत सिंह सहित दूसरे नेता शामिल थे.

कांग्रेस द्वारा जब इस मामले को उछाला गया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस पूरे मामले की जांच कराने का प्रस्ताव रखा. कांग्रेस की मांग थी कि या तो जासूसी मामले को लेकर हरियाणा सरकार को बर्खास्त किया जाए या ओमप्रकाश चौटाला को जनता दल (एस) के महासचिव पद से हटाया जाए. इतना ही नहीं, कांग्रेस ने चेतावनी दी थी कि अगर सरकार इस मामले में उचित कदम नहीं उठाती तो कांग्रेस सांसद राष्ट्रपति के अभिभाषण पर प्रधानमंत्री के धन्यवाद ज्ञापन का बॉयकॉट करेंगे.

कांग्रेस के विरोध के चलते चंद्रशेखर बुरी तरह घिर गए. मामला सरकार से समर्थन वापसी तक पहुंच गया, लेकिन इससे पहले कि कांग्रेस समर्थन वापस लेती, प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कांग्रेस की नहले पर दहला मारकर सबको चौंकाते हुए 6 मार्च 1991 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया.

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