जाटों को ओबीसी कोटे से आरक्षण देने का फैसला रद्द किये जाने के बाद मिले भाजपा-कांग्रेस के सुर

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग(ओबीसी) आरक्षण कोटे में शामिल करने के लिए पूर्व यूपीए सरकार द्वारा जारी की गयी अधिसूचना को आज निरस्त कर दिया. अदालत के इस फैसले के बाद जाट संगठनों के साथ ही भाजपा व कांग्रेस ने भी इसके समर्थन में सुर मिलाया. वरिष्ठ भाजपा नेता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 17, 2015 4:10 PM
नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग(ओबीसी) आरक्षण कोटे में शामिल करने के लिए पूर्व यूपीए सरकार द्वारा जारी की गयी अधिसूचना को आज निरस्त कर दिया. अदालत के इस फैसले के बाद जाट संगठनों के साथ ही भाजपा व कांग्रेस ने भी इसके समर्थन में सुर मिलाया. वरिष्ठ भाजपा नेता व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री वीरेंद्र कुमार सिंह ने कहा है कि हम जाट आरक्षण का समर्थन करते हैं, कोई कमी रह गयी तो उसे दूर करेंगे, सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच में अपील करेंगे और अपनी बात रखेंगे. उधर, हरियाणा के पूर्व सीएम व कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा ने भी कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करनी चाहिए, क्योंकि इस फैसले को एनडीए का समर्थन भी प्राप्त था.
न्यायमूर्ति तरुण गोगोई और न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की पीठ ने कहा, ‘‘हम केंद्र की अन्य पिछडा वर्ग (ओबीसी) की सूची में जाटों को शामिल करने की अधिसूचना निरस्त करते हैं.’’ पीठ ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के उस निष्कर्ष की अनदेखी करने के केंद्र के फैसले में खामी पायी जिसमें कहा गया था कि जाट केंद्र की ओबीसी सूची में शामिल होने के हकदार नहीं हैं क्योंकि वे सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग नहीं हैं.
इसने ओबीसी आरक्षण पर मंडल आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन पर वृहद पीठ के निर्णय का हवाला दिया और कहा, ‘‘जाति यद्यपि एक प्रमुख कारक है, लेकिन यह किसी वर्ग के पिछड़ेपन का निर्धारण करने का एकमात्र कारक नहीं हो सकती.’’ पीठ ने यह भी कहा, ‘‘अतीत में ओबीसी सूची में किसी जाति को संभावित तौर पर गलत रूप से शामिल किया जाना दूसरी जातियों को गलत रूप से शामिल करने का आधार नहीं हो सकता.’’
न्यायालय ने यह भी कहा कि जाट जैसे राजनीतिक रूप से संगठित वर्ग को शामिल किए जाने से दूसरे पिछड़े वर्गो। के कल्याण पर प्रतिकूल असर पड़ेगा.
पीठ ने यह भी कहा कि हालांकि भारत सरकार को संवैधानिक योजना के तहत किसी खास वर्ग को आरक्षण उपलब्ध कराने की शक्ति प्राप्त है, लेकिन उसे जाति के पिछडेपन के बारे में दशकों पुराने निष्कर्ष के आधार पर ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.
यह फैसला ‘ओबीसी रिजर्वेशन रक्षा समिति’ द्वारा दायर जनहित याचिका पर आया है. इस समिति में केंद्र की पिछडा वर्ग सूची में शामिल समुदायों के सदस्य शामिल हैं.
याचिका में आरोप लगाया गया था कि चार मार्च की अधिूसचना तत्कालीन केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनावों के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने से एक दिन पहले जारी की थी, ताकि तत्कालीन सत्तारुढ पार्टी को वोट जुटाने में मदद मिल सके.
शीर्ष अदालत ने एक अप्रैल को केंद्र से पूछा था कि उसने जाट समुदाय को आरक्षण के लाभों से दूर रखने के लिए राष्ट्रीय पिछडा वर्ग आयोग :एनसीबीएसी: की सलाह की कथित अनदेखी क्यों की.
न्यायालय ने यह भी कहा था कि मामला ‘‘गंभीर’’ है और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रलय को निर्देश दिया था कि वह इसके समक्ष फैसले से संबंधित सभी सामग्री, रिकॉर्ड और फाइलें रखे, जिससे कि यह देखा जा सके कि चार मार्च को अधिसूचना जारी करते समय ‘‘सरकार ने दिमाग लगाया था या नहीं.’’

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