नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने गुजरात के 2002 के दंगों में बर्बाद हुयी अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी में संग्रहालय के लिये तय धन के कथित गबन के मामले में तीस्ता सीतलवाड और उनके पति की अग्रिम जमानत की याचिका आज वृहद पीठ को सौंप दी और इस दौरान उन्हें गिरफ्तारी से प्राप्त संरक्षण जारी रहेगा.
न्यायमूर्ति दीपक मिश्र और न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की दो सदस्यीय खंडपीठ ने तीस्ता और उनके पति की याचिका पर 19 फरवरी को इस मामले में सुनवाई पूरी की थी. न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि वृहद पीठ को विचार करना है कि क्या किसी व्यक्ति को अग्रिम जमानत प्रदान की जा सकती है जब स्वतंत्रता और निष्पक्ष तथा प्रभावी जांच के मुद्दों पर साथ ही निर्णय करना हो.
न्यायमूर्ति मिश्र ने पांच पेज के फैसले में लोकतंत्र की परिभाषा, स्वतंत्रता और सामाजिक नियंत्रण जैसे मुद्दों पर अमेरिका के द्वितीय राष्ट्रपति जॉन एडम्स, बालिंग्ब्रोक और एडमंड बर्क का हवाला दिया. एडम्स का जिक्र करते हुये न्यायालय ने कहा, ‘‘इस पैरे से स्पष्ट होता है कि प्रत्येक नागरिक देश के कानून के दायरे में आता है. कोई भी कानून से उपर नहीं है.’’ न्यायालय ने कहा, ‘‘स्वतंत्रता की कीमत, नियंत्रित आजादी की अवधारणा, सामाजिक प्रतिबंध, कानून की सर्वोच्चता, अग्रिम जमानत की अवधारणा और जांच में अपीलकर्ताओं द्वारा असहयोग का इस्तगासे का दावा और अपीलकर्ता के बयानों के मद्देनजर हम इस मामले को वृहद पीठ को सौंपना उचित समझते हैं.
न्यायालय ने कहा, ‘‘तद्नुसार, रजिस्टरी को निर्देश दिया जाता है कि इस मामले को उचित वृहद पीठ गठित करने के लिये प्रधान न्यायाधीश के समक्ष पेश किया जाये.’’