नयी दिल्ली : काफी विवादों और प्रक्रियात्मक तकरार के बाद खान एवं खनिजों के मामले में राज्यों को और अधिक अधिकार देने वाले चर्चित विधेयक को आज राज्यसभा की मंजूरी मिल गयी. कांग्रेस एवं वाम दलों को छोडकर अधिकतर पार्टियों ने इसका समर्थन किया जबकि जदयू ने यह कह कर वाकआउट किया कि वह इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहता है. उच्च सदन ने खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक 2015 को 69 के मुकाबले 117 मतों से पारित किया.
इस समय कांग्रेस के 10 सांसद सदन में अनुस्थित थे. उनकी अनुपस्थिति पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस ने सभी को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. सदन ने इस विधेयक को फिर से प्रवर समिति के पास भेजने की कुछ दलों की मांग तथा इस विधेयक के विभिन्न उपबंधों पर वाम एवं कांग्रेस के सदस्यों द्वारा लाये गये संशोधनों को खारिज कर दिया. इस विधेयक को लोकसभा पहले ही पारित कर चुकी है. उच्च सदन में इस विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजा गया था.
प्रवर समिति ने इसके बारे में 18 मार्च को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. इस विधेयक के जरिये 1957 के मूल अधिनियम में संशोधन किया गया है. सरकार इससे पहले इस संबंध में एक अध्यादेश जारी कर चुकी है. मौजूदा विधेयक संसद की मंजूरी के बाद उस अध्यादेश का स्थान लेगा. इस विधेयक में खनन से प्राप्त राजस्व का उपयोग स्थानीय क्षेत्र के विकास के लिए करने के साथ ही सरकारों की विवेकाधीन शक्तियों का समाप्त करने की दिशा में पहल की गई है.
विवेकाधीन शक्तियों के चलते भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलती रही हैं. विधेयक में राज्यों को कई अधिकार दिये गये हैं. इसके माध्यम से मूल अधिनियम में नयी अनुसूची जोडी गयी है तथा बाक्साइट, चूना पत्थर, मैगनीज जैसे कुछ खनिजों को अधिसूचित खनिजों के रूप में परिभाषित किया गया है. इसमें खनन लाइसेंस की नयी श्रेणी बनायी गयी है. इसमें खनन के बारे में पट्टे की अवधि और पट्टे को बढाए जाने की रुपरेखा का उल्लेख किया गया है.
इसमें खान से संबंधित रियायत प्रदान करने और इससे जुडी नीलामी प्रणाली के बारे में बताया गया है. उच्च सदन में इस विधेयक पर हुई संक्षिप्त चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा के भूपेन्द्र यादव ने कहा कि इस विधेयक के बारे में गठित प्रवर समिति की छह बैठकें हुई थीं. उनमें विभिन्न मंत्रालयों के सचिवों के साथ विचार विमर्श किया गया. उन्होंने कहा कि जनता की सहभागिता की दृष्टि से यह विधेयक काफी महत्वपूर्ण है.
जदयू के पवन कुमार वर्मा ने कहा कि इस विधेयक को बनाते समय राज्यों से विचार-विमर्श नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि इस विधेयक के कुछ ऐसे प्रावधान हैं जिनके कारण केंद्र एवं राज्यों के बीच मुकदमेबाजी बढने की आशंका है. तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने इस विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि राज्यों को अधिकार दिये जाने के कारण उनकी पार्टी इस विधेयक का समर्थन कर रही है. उन्होंने खनन के क्षेत्र में नियामक तंत्र बनाये जाने की आवश्यकता पर बल दिया.
अन्नाद्रमुक के नवनीत कृष्णन ने भी विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इसमें राज्यों के हितों का संरक्षण किया गया है. बसपा के राजाराम ने सरकार से कहा कि उसे राष्ट्रीय खनन खोज न्यास के बारे में अधिक स्पष्टीकरण देना चाहिए. माकपा के तपन कुमार सेन ने कहा कि हम विधेयक के प्रावधानों के विरोधी नहीं लेकिन जिस प्रकार से इस विधेयक को जल्दबाजी में और राज्यों से विचार विमर्श के बिना बनाया गया है, हम उसका विरोध कर रहे हैं.
उन्होंने आरोप लगाया कि विधेयक में राज्यों के अधिकारों को ले लिया गया है. उन्होंने कहा कि संविधान के प्रावधान के अनुसार राज्यों की अनुमति लिये बिना केंद्र खान एवं खनिजों की नीलामी नहीं कर सकता. बीजद के दिलीप तिर्की ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इसमें राज्यों के हितों की रक्षा की गयी है. प्रख्यात वकील एवं मनोनीत सदस्य केटीएस तुलसी ने राज्यों के अधिकारों को सुनिश्चित करने पर बल देते हुए आशंका जतायी कि इस विधेयक के कई प्रावधानों को विधि विरुद्ध घोषित करवाने के लिए विभिन्न पक्ष अदालत की शरण ले सकते हैं.
झारखंड मुक्ति मोर्चा के संजीव कुमार ने जल, जंगल जमीन की रक्षा करने की जरुरत पर बल देते हुए कहा कि खनन के कारण प्रभावित होने वाले आदिवासियों के कल्याण के बारे में भी विचार किया जाना चाहिए. कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर ने कहा कि यदि इस विधेयक में पंचायतों एवं आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जाती तो वह इस विधेयक का समर्थन कर सकते थे. उन्होंने कहा कि प्रवर समिति में राज्यों से विचार विमर्श नहीं किया गया जबकि राजधानी में कई राज्यों के खान सचिव मौजूद थे.
उन्होंने मनोनीत सदस्य तुलसी की इस आशंका से सहमति जतायी कि इस विधेयक को कानून बनने के बाद अदालत में निरस्त किया जा सकता है. भाकपा के डी राजा ने इस विधेयक को लेकर राज्यों से विचार विमर्श नहीं किये जाने की ओर ध्यान दिलाते हुए जहां इसका विरोध किया, वहीं कांग्रेस के शांताराम नाइक ने गोवा जैसे खनिजों से संपन्न राज्यों के हितों को सुनिश्चित करने पर बल दिया.
सपा के रविप्रकाश वर्मा और राकांपा के आई एस जैन ने जहां विधेयक का समर्थन किया वहीं कांग्रेस के राजीव गौडा ने आरोप लगाया कि कर्नाटक में भाजपा के कुछ नेता गैर कानूनी खनन में लगे हुए हैं. विधेयक पारित होने से पहले जदयू अध्यक्ष शरद यादव ने इससे विरोध जताते हुए कहा कि वह इस प्रक्रिया में शामिल नहीं होना चाहते इसलिए उनकी पार्टी सदन से वाकआउट कर रही है. सदन ने इस विधेयक को फिर से प्रवर समिति के पास भेजने के माकपा के पी राजीव के प्रस्ताव को 68 के मुकाबले 112 मतों से खारिज कर दिया.