नयी दिल्ली : आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय परिषद से पहले पार्टी के एक और अहम सदस्य ने केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. पार्टी की राजस्थान इकाई के प्रवक्ता डॉक्टर राकेश पारीख ने अपने ब्लॉग में अरविंद केजरीवाल पर कई आरोप लगाये हैं. उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा है कि अब पार्टी में केवल जी हुजूरी करने वालों की चांदी है. पार्टी में कई उभरते आवाज को शांत करवा दिया जा रहा है. डॉक्टर राकेश पारीख ने लिखा है कि आज शांति भूषण जी जैसे वरिष्ठ सदस्य का खुले आम अपमान हो रहा है. 80 साल की उम्र में क्या पार्टी के उस साधारण सदस्य को अपनी राय रखने का अधिकार नहीं? क्या हमारी पार्टी में अब भिन्न राय रखने वालों को गद्दार ही कहा जाएगा? राकेश पारीख ने अपने ब्लॉग में लिखा है…
जब राकेश पारीखकी पत्नी ने दी तलाक की धमकी
एसी कमरों और गाडियों का आराम छोड़कर जंतर मंतर पर बिना गद्दे और तकिये के बिताये वो दिन सचमुच यादगार है. ये वो दिन थे जब नींद 16 घंटे के बजाय 70 घंटे काम करने के बाद आती. और फिर 2 अगस्त की वो शाम जब अन्ना जी ने राजनैतिक विकल्प देने की घोषणा कर दी. टीवी पर खबर देखते ही पत्नी का फोन आया. उसने कहा “तुरंत वापस आ जाओ. हमें बेवकूफ बनाया गया है. आन्दोलन के नाम पर हमारी भावनाओ से खेलकर ये लोग राजनीति कर रहे है”. याद होगा आपको मैंने बताया था, उसने मुझे तलाक की धमकी तक दे डाली थी. अगली मुलाकात में आपने पूछा था “अब क्या कहती है भाभी जी?” अब तक तो मैं उसे समझाता रहा लेकिन आज क्या जवाब दू?
पार्टी में जी हुजूरी करने वाले लोगो की ही आवश्यकता रह गई? सवाल पूछने वालो की नहीं?
मिशन बुनियाद जयपुर में हुआ. कार्यक्रम का आयोजन किया और सभी के आग्रह के बावजूद मैं जयपुर जिला कार्यकारिणी से बाहर रहा. एक अच्छे राजनैतिक विकल्प का बुनियादी ढांचा अपने जिले में बन जाए यही तक मैंने अपनी भूमिका सोची थी. उसके 2 महीनो बाद कौशाम्भी कार्यालय में हुई वो मुलाकात भी याद भी होगी जब मनीष जी ने मुझसे कहा था “अच्छे लोग अपनी जिम्मेदारियों से भागते है, और फिर शिकायत करते है की राजनीति गंदी है. आपको जिम्मेदारी लेनी होगी डॉ साहब”. कुछ दिनों बाद वो प्रदेश कार्यकारिणी बनाने जयपुर आये, मेरे घर रुके और फिर उन्हीं भावुक तर्कों के साथ मुझे राजस्थान सचिव की जिम्मेदारी सौंप दी. कौशाम्भी कार्यालय में हुई उसी मुलाकात में मैंने कहा था आप दोनों से “आजादी की लड़ाई का सिपाही हूं, गुलामी अपने सेनापति की भी नहीं करूंगा”. मेरे तेवर तो आपने उस दिन ही भांप लिए होंगे. यदि जी हुजूरी करनी होती तो इतना संघर्ष ही क्यों करते? क्या हमें आज राजनीति में अपना भविष्य बनाने को आये, जी हुजूरी करने वाले लोगो की ही आवश्यकता रह गई? सवाल पूछने वालो की नहीं?
टोपी की गरिमा को चोट न पहुंचे
मैं राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में आपसे ये सवाल बिना भय करता आया हूं की क्या “आप” याने सिर्फ अरविंद केजरीवाल है? क्या देश माने सिर्फ दिल्ली है?” आपके सामने यह सवाल रखने का साहस तो हमेशा था लेकिन आज यही सवाल पूछना तो देशद्रोह से भी बड़ा अपराध बन गया है. हमने पार्टी बनायीं तो नारा दिया था “आम आदमी जिंदाबाद”. हमने टोपी पर लिखा था “मुझे चाहिए स्वराज” और आज स्वराज की बात करने वालो को पार्टी विरोधी कहा जाता है. इस टोपी का सम्मान आज नहीं रह गया है. हमारी पार्टी की विचारधारा, जो आप ही की लिखी पुस्तक पर आधारित है, उसमे तो स्वराज एक बड़ा ही पावन शब्द था. मानता हूं की स्वराज का अर्थ यह नहीं की मेरे जैसा एक साधारण कार्यकर्ता आपके बड़े निर्णयों में हस्तक्षेप करे. निर्णय आप करे, लेकिन हमें अपनी बात तो रखने दे, बैठक तो होने दे. या वह भी स्वराज के खिलाफ है? आपको शायद जानकारी न हो हमारे ही कार्यकर्ता स्वराज शब्द को उपयोग चुटकुलो में करते है, सवाल पूछने वालो की खिल्ली उड़ाने के लिए.