आइटी एक्ट की धारा 66 ए को हटाने का नरेंद्र मोदी सरकार ने भी किया स्वागत

नयी दिल्ली : इंटरनेट पर सोशल साइट पर कोमेंट करने और उस पर आपत्ति दर्ज कराने के बाद होने वाली गिरफ्तारी मामले में आज शीर्ष अदालत ने अहम फैसला सुनाया. सर्वोच्च न्यायालय ने इससे संबंधित आइटी एक्ट की धारा 66 ए को खत्म कर दिया, हालांकि आइटी एक्ट का अस्तित्व रहेगा. इस धारा के तहत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 24, 2015 10:08 AM

नयी दिल्ली : इंटरनेट पर सोशल साइट पर कोमेंट करने और उस पर आपत्ति दर्ज कराने के बाद होने वाली गिरफ्तारी मामले में आज शीर्ष अदालत ने अहम फैसला सुनाया. सर्वोच्च न्यायालय ने इससे संबंधित आइटी एक्ट की धारा 66 ए को खत्म कर दिया, हालांकि आइटी एक्ट का अस्तित्व रहेगा. इस धारा के तहत फेसबुक, ट्विटर व अन्य सोशल साइट पर कमेंट लिखने पर किसी को आपत्ति होने पर कोमेंट करने वाले या उसे लाइक करने वाली की गिरफ्तारी हो सकती थी, अब ऐसा नहीं होगा.

हालांकि आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने व उसे लाइक करने पर संबंधित शख्स के खिलाफ आइटी एक्ट की अन्य धारा के तहत कार्रवाई होगी, लेकिन अब पूर्व की तरह तुरंत फुंरत गिरफ्तारी नहीं हो सकेगी. भ्रामक तरीके से लिखा गयी सामग्री पर कार्रवाई की जा सकेगी. शीर्ष अदालत ने आइटी एक्ट की धारा 66 ए को आपत्तिजनक बताया. उल्लेखनीय है कि हाल के दिनों में इस धारा के तहत गिरफ्तारियां बढीं थीं.

नरेंद्र मोदी सरकार व भाजपा ने शीर्ष अदालत के इस फैसले का स्वागत किया है. केंद्रीय संचार एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि हम सोशल मीडिया पर आइडिया व विचारों को साझा करने के अधिकारों का सम्मान करते हैं. उन्होंने कहा कि हम ईमानदार आलोचनाओं पर रोक लगाने के पक्षधर नहीं हैं. वहीं, भाजपा प्रवक्ता नलील कोहली ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए आज का दिन अहम है. उन्होंने कहा है कि इस फैसले से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अनुच्छेद 19 दो पुनर्परिभाषित हुआ है. शिवसेना नेता संजय राउत ने भी इस फैसले का स्वागत किया है.

न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर और आरएफ नारिमन ने 26 फरवरी को इस मामले में सरकार की दलील पूरी होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. उस समय अतिरिक्त सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि सरकार बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक नहीं लगाना चाहती है, लेकिन विस्तृत साइबर संसार को बेलगाम नहीं छोडा जा सकता है. हालांकि उस समय अदालत ने कहा था कि अवैध, बेहद आपत्तिजनक और भद्दे जैसे शब्द खोखले हैं और इनका गलत अर्थ निकाले जाने या दुरुपयोग होने की आशंका रहती है.

इस मामले में कुछ याचिका दायर कर आइटी एक्ट की धारा 66 ए रद्द करने की मांग की गयी थी. इस मामले में पहली जनहित याचिका कानून की छात्र ने दायर की थी. 16 मई 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि 16 मई 2013 को सलाह दी थी कि सोशल साइट पर टिप्पणी करने के मामले में गिरफ्तारी करने से पहले महानिरीक्षक या डीसीपी स्तर के वरिष्ठ अधिकारी से अनुमति लेना आवश्यक है.

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों एक छात्र के द्वारा मंत्री आजम खां पर की गई टिप्पणी के बाद 24 घंटे के अंदर गिरफ्तारी की गई जिसके बाद समाजवादी पार्टी नेता और मंत्री विपक्ष के निशाने पर आ गये हैं. इसके पहले भी पश्‍चिम बंगाल में ममता बनर्जी के शासनकाल में लगभग 50 वर्ष की उम्र के भौतिक रसायनशास्त्र के प्रोफेसर महापात्रा को कथित तौर पर बनर्जी सहित तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेताओं के निंदात्मक कार्टून लोगों को ई-मेल के जरिए भेजने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

इस मामाले में याचिका दायरकर्ता श्रेया सिंघल ने मीडिया से कहा कि यह दिन हमारे लिए खास है. अब किसी व्यक्ति की आनन फानन में गिरफ्तारी नहीं हो सकेगी. उन्होंने शीर्ष अदालत के फैसले पर खुशी जतायी.

वहीं, उत्तरप्रदेश सरकार के मंत्री व सपा नेता आजम खान के नाम पर टिप्पणी करने वाले युवक ने भी शीर्ष अदालत के फैसले पर खुशी जतायी है. उसने कहा है कि वह अपनी गिरफ्तारी के बाद मानसिक रूप से परेशान था.

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