नयी दिल्ली : आम आदमी पार्टी में जारी तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा है. संयोजक अरविंद केजरीवाल के घर हुई राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) की बैठक में दोनों बागी नेता योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण का इस्तीफा मंजूर कर लिया गया है. पार्टी नेता आशीष खेतान की माने तो दोनों नेताओं ने 17 मार्च को इस्तीफा दिया था. लेकिन पार्टी कार्यकारिणी ने उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया था. हालांकि इसमें अंतिम मुहर 28 मार्च को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में लगेगी.
उसमें यह भी तय हो जाएगा की दोनों असंतुष्ट नेता पार्टी में रहेंगे या नहीं. ट्विटर पर पार्टी नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता कुमार विश्वास ने लिखा है कि प्रशान्त-योगेन्द्र जी की सब शर्तें मंज़ूर लेकिन अरविंद केजरीवाल को हटाने की उनकी ज़िद पर तो फ़ैसला राष्ट्रीय कार्य कारिणी करेगी. यह एक दुखद सत्य है. वहीं दूसरी ओर योगेंद्र यादव ने ट्वि टर और फेसबुक पर वह चिट्ठी सार्वजनिक की है जो उन्होंने केजरीवाल को लिखी थी. इस चिट्ठी में निम्न बातें लिखी गई है….
अरविन्द भाई,
हम दोनों को मजबूर होकर आपके नाम यह खुली चिठ्ठी लिखनी पड़ रही है। दस दिन पहले आपके बंगलूर से आने पर हमने आपसे मुलाक़ात का समय माँगा था। लेकिन अभी तक आप समय नहीं निकाल पाये हैं। ऐसे में बहुत अनिश्चितता का माहौल बना है। पार्टी के तमाम वॉलंटियर, समर्थक और शुभचिंतक यह आस लगाये बैठे हैं कि बात-चीत चल रही है और कुछ अच्छी खबर आने वाली है। मन ही मन चिंतित भी हैं कि पार्टी की एकता बनी रहेगी या नहीं। यह आशंका भी जताई जा रही है कि बंद कमरों की इस बातचीत में पार्टी के सिद्धांतो से कोई समझौता तो नहीं किया जा रहा। इसलिए हम इस चिठ्ठी को सार्वजनिक कर रहे है।
आपके बंगलूर से वापिस आने के बाद उसी रात को पार्टी के कई वरिष्ठ साथी योगेन्द्र के घर मिलने आये। उसके बाद बातचीत का एक सिलसिला शुरू हुआ जिसमे हमारी और से प्रा. आनंद कुमार और प्रा. अजीत झा थे। हम दोनों ने इस बातचीत के लिए एक लिखित प्रस्ताव रखा। शुरू में लगा कि बातचीत ठीक दिशा में बढ़ रही है। लगा कि राष्ट्रीय संयोजक पद जैसे फ़िज़ूल के मुद्दों और आरोपों से पिंड छूटा है। जब पीएसी ने देश भर में संगठन निर्माण, दिल्ली के बाहर चुनाव पर विचार और वॉलंटियर की आवाज़ सुनने की घोषणा की तो हमें भी लगा कि आखिर अब उन सवालों पर जवाब मिल रहा है जो हमने उठाये थे। लेकिन जब पार्टी में आतंरिक लोकतंत्र के इन सवालों पर ठोस बातचीत हुई तो निराशा ही हाथ लगी। कहने को सिद्धांतों पर सहमति थी लेकिन किसी भी ठोस सुझाव पर या तो साफ़ इंकार था या फिर टालमटोल।
1. हमारा आग्रह था कि स्वराज की भावना के अनुरूप राज्य के फैसले राज्य स्तर पर हों। हमें बताया गया कि यह संगठन और कार्यक्रम के छोटे-मोटे मामले में तो चल सकता है, लेकिन देश के किसी भी कोने में पंचायत और म्युनिसिपालिटी के चुनाव लड़ने का फैसला भी दिल्ली से ही लिया जायेगा, और वो भी सिर्फ पीएसी द्वारा ।कुमार
भाई को महाराष्ट्र भेजने के फैसले ने हमारे संदेह की पुष्टि की है।
2. हमने मांग की थी कि हमारे आंदोलन की मूल भावना के मुताबिक पिछले कुछ दिनों में पार्टी पर लगाये गए चार बड़े आरोपों (दो करोड़ के चैक, उत्तमनगर में शराब बरामदगी, विधि मंत्री की डिग्री और दल-बदल और जोड़-तोड़ के सहारे सरकार बनाने की कोशिश) की लोकपाल से जांच करवाई जाय। जवाब मिला कि बाकी सब संभव है, लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से जुड़े किसी भी "संवेदनशील" मामले पर जांच की मांग भी न की जाय।
3. हमने सुझाव दिया था कि लोकतान्त्रिक भागीदारी की हमारी मांग के अनुरूप पार्टी के हर बड़े फैसले में वॉलंटियरों की राय ली जाय, मांग हो तो वोट के ज़रिये। जवाब मिला कि राय तो पूछ सकते हैं, लेकिन वॉलंटियर द्वारा वोट की बात भूल जाएँ, खासतौर पर उम्मीदवार चुनते वक्त।
4. हमने कहा था कि पार्टी अपने वादे के मुताबिक़ RTI के तहत आना स्वीकार करे। हमें बताया गया कि पार्टी कुछ जानकारी सार्वजनिक कर देगी, लेकिन RTI के दायरे में आना व्यवहारिक नहीं है।
5. आपकी तरफ से प्रस्ताव आया कि सभी पदाधिकारी चुनाव आयोग वाला एफिडेविट भर कर अपनी संपत्ति का ब्यौरा दें, आयकर का ब्यौरा पार्टी को दें और परिवार एक पद का नियम आमंत्रित सदस्यों पर भी लागू हो। हमने यह सब एकदम मान लिया।
6. आपकी तरफ से एक मुद्दा बार-बार उठाया गया। योगेन्द्र को कहा गया की वे चाहे तो उन्हें हरियाणा में खुली छूट दी जा सकती है। जिन लोगों ने वहां योगेन्द्र के काम में रोड़े अटकाए है, उन्हें राज्य बाहर कर दिया जायेगा। हमने स्वीकार नहीं किया चूंकि जब तक आतंरिक लोकतंत्र के हमारे मूल सवालों का जवाब नहीं मिलता तब तक ऐसी किसी चर्चा में भाग लेना भी सौदेबाजी होगी।
हमने इन सब सवालों पर खुले मन से बातचीत की। जब पृथ्वी रेड्डी ने इन मुद्दों पर अपना एक प्रस्ताव रखा जो हमारे प्रस्ताव से बहुत अलग था, तो हमने उसे भी स्वीकार कर लिया । लेकिन अब पृथ्वी इस न्यूनतम प्रस्ताव को लेकर मिले तो आपने इसे सिरे से ख़ारिज कर दिया। एडमिरल रामदास को भी असफलता ही हाथ लगी।
हमें ऐसा समझ आने लगा कि बातचीत का मकसद हमारे मुद्दों को सुलझाना नहीं था, बल्कि हमारा इस्तीफ़ा हासिल करना था। आपकी ओर से बात कर रहे साथी घुमा-फिरा कर एक ही आग्रह बार-बार दोहराते थे कि हम दोनों अब राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफ़ा दे दें। कारण यही बताया जाता था कि यह आपका व्यक्तिगत आग्रह है, आपने कहा है कि जब तक हम दोनों राष्ट्रीय कार्यकारिणी में हैं तब तक आप राष्ट्रीय संयोजक के पद पर काम नहीं कर सकते। यही बात आपने तब भी कही थी जब हमें पीएसी से निकलने का प्रस्ताव लाया गया था। आपके कई नजदीकी लोग सार्वजनिक रूप से यह भी कह रहे हैं कि हमें पार्टी से ही निष्काषित किया जायेगा। कुल मिलाकर आपकी तरफ से सन्देश आ रहा है की या तो शराफत से इस्तीफ़ा दे दो, या फिर अपमानित करके निकाला जायेगा। ये सब आपके सलाहकार ही नहीं, आप खुद कहलवा रहे हैं यह सुनकर हमें बहुत दुःख और धक्का लगा है।
हमने ऐसा क्या किया है, अरविन्द भाई, जो आप हमसे इतनी व्यक्तिगत खुंदक पाले हुए है? आपके मित्रगण मीडिया में चाहे जो भी झूठ फैला रहे हों, लेकिन आप सच्चाई से अछी तरह वाकिफ़ हैं. हमने आज तक कभी भी आपसे कोई पद, ओहदा या लाभ नहीं माँगा. हमने कभी भी आपको अपदस्थ करने की कोशिश नहीं की है. यहाँ गिनाना शोभा नहीं देता लेकिन आप जानते है कि हम दोनों ने हर नाजुक मोड़ पर आपकी मदद की. हाँ, हमने आपसे सवाल ज़रूर पूछे है. तब भी पूछे हैं जब आप नहीं चाहते थे. हाँ, हमने नासमझी और उतावली के खिलाफ आपको आगाह जरूर किया है, और हाँ, जब आपने सुनने से भी मना किया तो हमने संगठन की मर्यादा के भीतर रहकर विरोध भी किया. स्वराज के सिद्धांतों पर बनी हमारी पार्टी में क्या ऐसा करना कोई अपराध है? हाँ, हमरी बातें तकलीफदेह हो सकती हैं और हमेश रहेंगी. लेकिन क्या आप ऐसे किसी व्यक्ति को पार्टी में नहीं रखना चाहते जो आपकी आँखों में आँखें डालकर सच बोल सके?
यूं भी, अरविन्द भाई, जैसा कि आप जानते हैं, हमने खुद इस बातचीत के लिए लिखित नोट में अपने इस्तीफे की पेशकश की थी, बशर्ते:
· पंचायत और म्युनिसिपेलिटी चुनाव में भागीदारी का अंतिम फैसला राज्य इकाई के हाथ में देने की घोषणा हो
· हाल में पार्टी से जुड़े चारों बड़े आरोपों की जांच एकदम राष्ट्रीय लोकपाल को सौंप दी जाय
· सभी राज्यों में लोकायुक्त को राष्ट्रीय लोकपाल की राय से तत्काल नियुक्त किया जाय
· नीति, कार्यक्रम और चुनाव के हर बड़े फैसले पर कार्यकर्ता की राय और जरूरत पड़ने पर वोट दर्ज़ करना शुरू किया जाय
· पार्टी CIC के आर्डर के मुताबिक RTI स्वीकार करने की घोषणा करे
· राष्ट्रीय कार्यकारिणी के रिक्त पदों को संविधान के अनुसार राष्ट्रीय परिषद द्वारा गुप्त मतदान से भरा जाय
हम अपने प्रस्ताव पर आज भी कायम हैं। अगर हमारे इस्तीफ़ा देने भर से पार्टी में इतने बड़े सुधार एक बार में हो सकते हैं, तो हमें बहुत खुशी होगी। हमारे लिए राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बने रहना अहम् का मुद्दा नहीं है। असली बात यह है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कुछ स्वतंत्र आवाजों का बचे रहना संगठन और खुद आपके लिए बेहद जरूरी है।
अरविन्द भाई, आज देश में वैकल्पिक राजनीति की सम्भावना बहुत नाजुक मोड़ पर है। आम आदमी पार्टी सिर्फ दिल्ली नहीं पूरे देश के लिए नयी राजनीती की आशा बनकर उभरी है। हमारी एक छोटी सी गलती इस आंदोलन को गहरा नुक्सान पहुँचा सकती है। आज देश और दुनिया में न जाने कितने भारतीयों ने इस पार्टी से बड़ी बड़ी उम्मीदें बाँधी हैं। पिछले हफ़्तों में हमें हज़ारों वॉलंटियर सन्देश मिले हैं। उन्हें पार्टी में जो कुछ हो रहा है उससे धक्का लगा है। वो सब यही चाहते हैं कि किसी तरह से पार्टी के नेता मिलजुलकर काम करें, पार्टी के एकता बनी रहे और साथ ही साथ उसकी आत्मा भी बची रहे। किसी भी चीज़ को तोडना आसान है, बनाना बहुत मुश्किल है। आपके नेतृत्व में दिल्ली की ऐतिहासिक विजय के बाद आज वक्त बड़े मन से कुछ बड़े काम करने का है। सारा देश हमें देख रहा है, ख़ास तौर पर आपको। हमें उम्मीद है की आप इस ऐतिहासिक अवसर को नहीं गँवाएगे।
राष्ट्रीय परिषद की बैठक में बस एक दिन बाकी है। उम्मीद है इस अवसर पर एक बड़ी सोच रखते हुए आप पार्टी की एकता और उसकी आत्मा बचाये रखने का कोई रास्ता निकालेंगे। ऐसे किसी भी प्रयास में आप हमें अपने साथ पाएंगे।
सस्नेह
आपके,
प्रशांत भूषण
योगेन्द्र यादव