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प्रशांत भूषण के अनुसार भटक गई है ”आम आदमी पार्टी”

नयी दिल्ली : पिछले करीब महीने भर से आम आदमी पार्टी में जारी घमासान का अंत होता नहीं दिख रहा है. आज प्रेस कॉंफ्रेंस में प्रशांत भूषण ने पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल पर कई गंभीर आरोप लगाये. उन्होंने कहा कि केजरीवाल से बार-बार वक्त मांगने के बावजूद वे नहीं मिले. वे अपने समर्थकों से कई […]

नयी दिल्ली : पिछले करीब महीने भर से आम आदमी पार्टी में जारी घमासान का अंत होता नहीं दिख रहा है. आज प्रेस कॉंफ्रेंस में प्रशांत भूषण ने पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल पर कई गंभीर आरोप लगाये. उन्होंने कहा कि केजरीवाल से बार-बार वक्त मांगने के बावजूद वे नहीं मिले. वे अपने समर्थकों से कई बार कहलवा रहे हैं कि वे प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव के साथ काम नहीं कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि केजरीवाल ने धमकी दी कि दोनों नेता अगर पद नहीं छोड़ते तो वे अलग होकर एक राज्य स्तर की पार्टी बना लेंगे. लोकसभा चुनाव के बाद केजरीवाल कांग्रेस के साथ सरकार बनाना चाहते थे जिसका हमने विरोध किया था. वास्तव में पीएसी की बैठक में इस फैसले का विरोध किया गया था. केजरीवाल ने उस वक्त तानाशाही रवैया अपनाते हुए कहा था कि वह बतौर संयोजक यह फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं. प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि केजरीवाल को हां में हां मिलने वाले लोग पसंद हैं.

उनके इस आरोप के बाद अब प्रश्‍न उठने लगा है कि क्या पार्टी जिस उद्देश्‍य से बनाई गई थी वह अपने लक्ष्‍य से भटक गई है.

क्या था पार्टी का मकसद

पार्टी का मकसद कानून निर्माण में ग्रामसभा को ज्यादा हिस्सेदारी देना और उच्चतर न्यायपालिका को आम आदमी के लिए ज्यादा सुलभ बनाना था. पार्टी बनाने की कवायद में 320 के करीब लोग शामिल हुए. कंस्टीट्यूशन क्लब में हुई बैठक के दौरान पार्टी के संविधान को भी स्वीकार किया गया, जिसमें देश में ‘स्वराज’ की स्थापना की बात कही गई. पार्टी के द्वारा दिल्ली विधानसभा चुनावों के साथ चुनावी की लड़ाई का आगाज करने का निर्णय लिया गया. दिल्ली में 2013 के आखिर में चुनाव होने थे. इस चुनाव में पार्टी ने अपना परचम भी फहराया लेकिन 2015 में आप ने दिल्ली की 70 सीट में से 67 पर कब्जा करके सबको चौंका दिया. करीब ढाई साल में पार्टी ने अपना लोहा मनवाया और लोकसभा में भी अपने चार सदस्य भेजे.

लोकपाल को लेकर जारी था घमासान

अन्ना आंदोलन के जरिये देश में उभर कर आने वाले नेता अरविंद केजरीवाल ने लोकपाल की लडाई करीब डेढ़ साल तक लड़ने के बाद पार्टी बनाने का निर्णय लिया. पार्टी निर्माण की घोषणा करते वक्त उन्होंने कहा था कि पिछले डेढ़ सालों से हमने लोकपाल विधेयक को लेकर विभिन्न दलों का दरवाजा खटखटाया, लेकिन लोकपाल विधेयक पर सभी दल ने हमें धोखा दिया. इसलिए अगस्त 2012 में हुए उपवास के दौरान फैसला लिया गया कि इस आंदोलन को राजनीतिक रास्ता अख्तियार करना चाहिए. इसके परिणामस्वरूप आम आदमी पार्टी का गठन केजरीवाल ने किया. इस पार्टी का एक और उद्देश्‍य राजनीति और राजनीतिक दलों के कामकाज के तरीके को बदलना था.

26 नवंबर 2012 को क्यों किया गया पार्टी का निर्माण

अरविंद केजरीवाल ने दो अक्टूबर 2012 को पार्टी गठन की घोषणा की साथ ही कहा कि इसका आधिकारिक गठन 26 नवंबर को होगा, जिस दिन 1949 में देश के संविधान को स्वीकार किया गया था. पार्टी देश में स्व-शासन लाने की बात करता है और संविधान की प्रस्तावना को पूरी तरह लागू करने की मांग करता है. केजरीवाल चाहते थे कि भ्रष्ट पंचायतों में भी सुधार हो. केजरीवला बाहरी सुरक्षा या विदेश नीति जैसे बड़े मुद्दों को छोड़कर ग्रामसभा, शहरों में मुहल्ला सभा की कानून निर्माण की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी चाहते थे.

पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी

320 सदस्यों की राष्ट्रीय परिषद के गठन के बाद 23 सदस्यों का चयन राष्ट्रीय कार्यकारिणी के लिए किया गया. केजरीवाल चाहते थे कि हर जिला समिति से एक एक सदस्य को शामिल करके परिषद का विस्तार किया जाये. समिति में सभी वर्ग को स्थान दिया गया. पार्टी में दो तरह के सदस्य रखे गये पहला साधारण और दूसरा सक्रिय सदस्य. पार्टी का सदस्य बनने के लिए कोई भी तीन साल के लिए 10 रुपए का शुल्क देकर सदस्यता ग्रहण कर सकता था. कोई भी साधारण सदस्य पार्टी और राष्ट्र के लिए चार महीने अथक काम कर सक्रिय सदस्य बन सकता है. किसी को सक्रिय सदस्य बनाने का फैसला समिति के जिम्मे था.

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