नयी दिल्ली:दोषी ठहराये गये सांसदों और विधायकों को तत्काल अयोग्य करार देने के बारे में उच्चतम न्यायालय के फैसले को उलटने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को एक प्रस्ताव को मंजूरी दी. इस प्रस्ताव के तहत दोषी ठहराये गये सांसदों और विधायकों की सदस्यता अदालत में अपील लंबित होने तक बरकरार रहेगी, लेकिन उन्हें न तो मतदान का अधिकार होगा और न ही वेतन लेने का. जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधनों के रूप में आनेवाले इस प्रस्ताव से सुनिश्चित होगा कि यदि दोषी ठहराये गये किसी सांसद या विधायक की अपील अदालत के विचाराधीन है और उसकी सजा पर स्थगनादेश मिल गया है, तो उसे सदस्यता से अयोग्य नहीं करार दिया जा सकता. कैबिनेट की यह कवायद सुप्रीम कोर्ट के उस फैसला को बदलने के लिए हुई है, जिसमें दो साल या ज्यादा की सजा होते ही सांसद या विधायक की सदस्यता छीने जाने का आदेश दिया गया था.
जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा-8 की उपधारा-4 में एक प्रावधान जोड़ा गया है, जो स्पष्ट करता है कि दोषी ठहराये गये सांसद और विधायक संसद या विधानसभाओं की कार्यवाही में हिस्सा लेंगे, लेकिन अपील पर अदालत के फैसले तक न तो उन्हें मतदान का अधिकार होगा और न ही वेतन भत्ते लेने का. कानून मंत्रलय ने प्रस्ताव किया है कि जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन 10 जुलाई 2013 से प्रभावी होगा, जिस दिन उच्चतम न्यायालय ने दोषी ठहराये गये सांसदों और विधायकों के लिए ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने फैसलों की जानकारी दी.
जजों की नियुक्ति के लिए न्यायिक आयोग बनेगा
कैबिनेट में सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए एक राष्ट्रीय न्यायिक आयोग बनाने की मंजूरी दे दी. यानी अब जजों की नियुक्ति का फैसला सिर्फ जजों का कोलेजियम नहीं करेगा. इसमें सरकार और विपक्ष दोनों का प्रतिनिधित्व होगा.प्रत्यक्ष कर संहिता विधेयक पर नहीं हुआ विचार