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ऐसे बनी थी ”आम आदमी पार्टी”, भूषण ने दूसरे दिन दिया था एक करोड़ का चंदा

नयी दिल्ली : आज भले ही आम आदमी पार्टी टूट के कागार पर हो लेकिन जब पार्टी अपने बाल्यावस्था में था तो इन क्रांतिकारी विचारधारा के लोगों का जोश देखते ही बनता था. राजनीतिक पार्टियों से निराश जनता को भी एक विकल्प दिखने लगा था. यही कारण है कि लोकसभा चुनाव में दिल्ली में एक […]

नयी दिल्ली : आज भले ही आम आदमी पार्टी टूट के कागार पर हो लेकिन जब पार्टी अपने बाल्यावस्था में था तो इन क्रांतिकारी विचारधारा के लोगों का जोश देखते ही बनता था. राजनीतिक पार्टियों से निराश जनता को भी एक विकल्प दिखने लगा था. यही कारण है कि लोकसभा चुनाव में दिल्ली में एक भी सीट नहीं लाने वाली आप ने विधानसभा चुनाव में 70 सीटों में से 67 सीट पर कब्जा करके यह साबित कर दिया कि उन्होंने जनता को एक विकल्प दे दिया है.

अन्ना आंदोलन से जन्म लेने वाली आम आदमी पार्टी के गठन की घोषणा तो दो अक्टूबर 2012 को हुई लेकिन इसका आधिकारिक गठन 26 नवंबर 2012 को हुआ. पार्टी का निर्माण तो हो गया अब इसको चलाने के लिए चंदे की बात सामने आई. 27 नवंबर को चंदा जुटाने की कवायद शुरू हुई सबसे ज्यादा चंदा उस दिन एक करोड़ का मिला. यह चंदा किसी और ने नहीं बल्कि चंदा देने वाला शख्स उनका सहयोगी ही था.

अरविंद केजरीवाल की पार्टी को पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने एक करोड़ रुपये का चेक दिया था. आपको बता दें कि शांति भूषण के बेटे प्रशांत भूषण हैं जिन्होंने पार्टी को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई थी. पार्टी को उस दिन शाम 6 बजे तक एक करोड़ दो लाख चौंतीस हजार रुपये का चंदा मिला जिसमें से एक करोड़ की रकम अकेले शांति भूषण ने दी.

27 नवंबर को जंतर-मंतर पर भीड़ को संबोधित करते हुए मनीष सिसौदिया ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी के 23 सदस्यों के नामों की घोषणा की. इसमें मनीष सिसौदिया, कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण, दिनेश वाघेला, संजय सिंह, गोपाल राय शामिल हैं. अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया. इसके अलावा पंकज गुप्ता राष्ट्रीय सचिव और कृष्णकांत राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष होंगे.

पार्टी का मुख्‍य उद्देश्‍य भ्रष्ट पंचायतों में सुधार लाना था. केजरीवला बाहरी सुरक्षा या विदेश नीति जैसे बड़े मुद्दों को छोड़कर ग्रामसभा, शहरों में मुहल्ला सभा की कानून निर्माण की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी चाहते थे. पार्टी का मकसद कानून निर्माण में ग्रामसभा को ज्यादा हिस्सेदारी देना और उच्चतर न्यायपालिका को आम आदमी के लिए ज्यादा सुलभ बनाना था. पार्टी बनाने की कवायद में 320 के करीब लोग शामिल हुए. कंस्टीट्यूशन क्लब में हुई बैठक के दौरान पार्टी के संविधान को भी स्वीकार किया गया, जिसमें देश में ‘स्वराज’ की स्थापना की बात कही गई. पार्टी के द्वारा दिल्ली विधानसभा चुनावों के साथ चुनावी की लड़ाई का आगाज करने का निर्णय लिया गया.

दिल्ली में 2013 के आखिर में चुनाव होने थे. इस चुनाव में पार्टी ने अपना परचम भी फहराया लेकिन 2015 में आप ने दिल्ली की 70 सीट में से 67 पर कब्जा करके सबको चौंका दिया. करीब ढाई साल में पार्टी ने अपना लोहा मनवाया और लोकसभा में भी अपने चार सदस्य भेजे.

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