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बाबरी विध्वंस : लालकृष्ण आडवाणी की स्वीकार्यता घटी, भाजपा बढी

भारत में बाबरी मस्जिद का विध्वंस आजादी के बाद की सबसे अहम घटनाओं में से एक है, जिसने देश के राजनीतिक और सामाजिक ताने बाने को झंझोर दिया. इस घटना को बीस से अधिक बरस गुजर गए लेकिन आज भी इस मुद्दे की गूंज भारत की राजनीति में सुनाई दे रही है. सुप्रीम कोर्ट ने […]

भारत में बाबरी मस्जिद का विध्वंस आजादी के बाद की सबसे अहम घटनाओं में से एक है, जिसने देश के राजनीतिक और सामाजिक ताने बाने को झंझोर दिया. इस घटना को बीस से अधिक बरस गुजर गए लेकिन आज भी इस मुद्दे की गूंज भारत की राजनीति में सुनाई दे रही है.

सुप्रीम कोर्ट ने आज बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से पांच महीने पहले बरी किए गए भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी समेत 20 लोगों को नोटिस जारी किया है. मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू और जस्टिस अरुण मिश्र की खंडपीठ ने नोटिस का जवाब देने के लिए सीबीआई और अन्य लोगों को चार हफ़्ते का समय दिया है.लालकृष्ण आडवाणी भाजपा के उन वरिष्ठ नेताओं में सबसे ऊपर हैं जिन्होंने भाजपा को खडा किया. अपनी रथ यात्रा, रामजन्मभूमि आंदोलन और फिर बाबरी मस्जिद विध्वंस आदि कारनामों से वे एक और जहां चर्चा में रहे वहीं इन सब ने उनको भाजपा का जनाधार मजबूत करने में भी सहयोग दिया.

रामजन्मभूमि विवाद और आडवाणी

राम जन्मभूमि मन्दिर आन्दोलन 1981 से चल रहा था. 1988 तक यह पूरी तरह विश्व हिन्दू परिषद के हाथ में था. संघ परिवार के बहुत से कार्यकर्ताओं का इसको सक्रिय समर्थन था, भाजपा इसमें कहीं नहीं थी. लेकिन जब यह आन्दोलन जोर पकड़ गया और कार्यकर्ताओं का दबाव बढ़ा, तो भाजपा ने इसका राजनैतिक लाभ उठाने के लिए इस आन्दोलन को पूर्ण समर्थन देना तय कर लिया.

आडवाणी की रथ यात्रा के बाद आडवाणी का कद बढा

राम मन्दिर के पक्ष में वातावरण बनाने और जन्मभूमि हेतु सरकार पर दबाव बनाने के लिए भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने 25 सितम्बर 1990 को सोमनाथ से अपनी राम रथ यात्रा प्रारम्भ की, जिसे देशभर के अनेक भागों में घूमते हुए 30 अक्तूबर को अयोध्या पहुँचना था, परन्तु लालू प्रसाद यादव ने बिहार में ही इसको रोक दिया. इस पर भाजपा ने वी पी सिंह की सरकार को दिया जा रहा समर्थन वापस ले लिया, क्योंकि लालू ने यह कार्यवाही वी पी सिंह की सलाह पर ही की थी और वीपी सिंह की सरकार गिर गयी.

इस यात्रा के बाद आडवाणी का राजनीतिक कद और बड़ा हो गया. 1990 की रथयात्रा ने लालकृष्ण आडवाणी की लोकप्रियता को चरम पर पहुँचा दिया था.

पार्टी की दूसरी पीढी का नेतृत्व तैयार हुआ

आडवाणी के नेतृत्व में पार्टी की दूसरी पीढी का नेतृत्व तैयार हुआ. भाजपा में अटल-आडवाणी-जोशी के नेतृत्व में पार्टी की एक नया पीढी तैयार हुआ. इसमें आडवाणी को पार्टी को संगठित करने और उसका विस्तार करने का क्रेडिट मिला.

पार्टी बढी पर आडवाणी की स्वीकार्यता घटी

इधर आडवाणी पार्टी के लौह पुरुष के रुप में पार्टी के लिए प्रचारक और विस्तारक की भूमिका में थे लेकिन कहीं न कहीं पार्टी के बीच उनकी भूमिका सबसे प्रमुख लीडर के रुप में नहीं बन पायी. लोगों ने अटल बिहारी वाजपेयी को एक सर्वमान्य नेता के रुप में चुना जो आगे चलकर भाजपा के लिए प्रधानमंत्री बने.

मोदी सरकार में भी केवल सलाहकार की भूमिका

पिछले लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को जनाधार देने वाले आडवाणी को पार्टी ने केवल एक सलाहकार की भूमिका तक सीमित कर दिया. आडवाणी की जगह नरेंद्र मोदी को आगे किये जाने को लेकर भाजपा में नाटकीय घटनाक्रम भी चला लेकिन हुआ वही जो पार्टी कार्यकारिणी ने चाहा. आडवाणी का प्रधानमंत्री बनने का सपना जैसे सपना बनकर ही रह गया.

ब आज सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में नोटिस जारी कर दिया है. केंद्र में सरकार तो उनकी है लेकिन चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट का है इसलिए ऐसे में मोदी सरकार के हाथ भी कुछ नहीं है. चार सप्ताह का समय दिया गया है जिसके बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि जिस आडवाणी ने भाजपा के लिए इतना कुछ किया उसने क्या खोया और क्या पाया.

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