नयी दिल्ली : आम आदमी पार्टी (आप) में जारी घमासान के खत्म होने का अंदाजा किसी को नहीं है. पार्टी अपने अंदरूनी कलह में व्यस्त हैं वहीं दिल्ली की जनता पार्टी के द्वारा विधानसभा चुनाव के पहले जारी घोषण पत्र में 70 वादों के पूरा होने का इंतजार कर रही है. पिछली बार जब आप सत्ता में आई थी तो ऐसा लग रहा था कि वह काफी जल्द दिल्ली को नई राह की ओर अग्रसर करेगी.
अपने 49 दिन के शासन काल में पानी और बिजली को लेकर केजरीवाल सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेकर जनता को अपनी ओर आकर्षित कर लिया था लेकिन ‘आप’ अपनी दूसरी पारी में कुछ बड़ा करता नहीं दिख रही है. इसका एक महत्वपूर्ण कारण पार्टी में जारी कलह है. 70 में से67 सीट जीतने के बाद 14 फरवरी को अरविंद केजरीवाल ने शपथ लिया. दिल्ली के लोगों को लगा कि ‘आप’ अपने 70 वादे जल्द पूरा करना शुरू करेगी लेकिन सत्ता संभालने के लगभग दो महीने के बाद भी कुछ नया होता नहीं दिख रहा है.एक नजर डालते हैं पार्टी के सत्ता में आने के बाद कुछ महत्वपूर्ण घटनाक्रम पर…
प्रशांत और योगेंद्र पर आरोप
केजरीवाल गुट ने दिल्ली में सरकार संभालने के बाद प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव पर निशाना साधना शुरू कर दिया. दोनों नेताओं पर आरोप लगाये गये कि चुनाव के दौरान इन्होंने पार्टी विरोधी काम किये. आप को हराने के लिए इन्होंने पूरा प्रयास किया. केजरीवाल ने आरोप लगाया कि प्रशांत भूषण प्रेस कॉंफ्रेंस करके चुनाव के दौरान पार्टी को नुकसान पहुंचाने की धमकी देते रहते थे साथ ही वे अन्य नेताओं को पार्टी के चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं लेने को कहते रहे.
4 मार्च की बैठक भूषण और यादव की पीएसी से छुट्टी
चार मार्च को आम आदमी पार्टी ने बागी नेता योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पीएसी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. इसके बाद से प्रशांत और भूषण ने अपने तेवर और तल्ख कर लिये. पार्टी में शांति बनाये रखने के लिए राष्ट्रीय प्रवक्ता कुमार विश्वास को इनके पास भेजा गया लेकिन कुछ सकारात्मक निकल कर सामने नहीं आया. इस बीच खबर आने लगी की 28 मार्च को होने वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से दोनों नेताओं को बाहर किया जा सकता है. कुछ नेताओं के पास फोन आये कि 28 के पहले 27 मार्च को एक बैठक बुलाई गयी है जिसमें योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के समर्थक को आने को कहा गया है हालांकि बाद में शांति भूषण ने सफाई दी कि उनकी ओर से कोई फोन नहीं किया गया है और न ही काई बैठक बुलाई गयी है.
28 मार्च राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक
जैसाकि पहले से ही खबर थी कि इस बैठक में प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से निकाला जा सकता है और हुआ भी ऐसा ही. योगेंद्र गुट ने आरोप लगाया कि बैठक के दौरान उनके समर्थकों के साथ मारपीट की गई. यादव ने कहा कि बैठक में लोकतंत्र की हत्या की गई है. इस बैठक में उनकी बातों को नहीं सुना गया. बैठक के बाद केजरीवाल गुट ने मारपीट की घटना से इनकार किया और कहा कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी से योगेंद्र यादव प्रशांत भूषण प्रोफेसर आनंद कुमार और अजीत झा को बाहर कर दिया गया है.
स्टिंग के बीच फंसी ‘आप’
दूसरों को स्टिंग का पाठ पढाने वाले केजरीवाल खुद अपने ही लोगों के द्वारा किये गये स्टिंग में फंसते नजर आये. 28 मार्च की बैठक के पहले योगेंद्र गुट की ओर से एक स्टिंग जारी किया गया जिसमें वे उन्हें अपशब्द कहते हुए नजर आये. इसके बाद केजरीवाल की काफी आलोचना हुई और पार्टी से अंजलि दमानिया और महाराष्ट्र से आप कर नेता मेघा पाटेकर ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. स्टिंग का खेल यहीं नहीं खत्म हुआ. आप के पूर्व विधायक राकेश गर्ग ने केजरीवाल पर काफी गंभीर आरोप लगाये. उन्होंने कहा कि केजरीवाल ने भाजपा के नेताओं का नाम लेकर विधायकों को लालच देने का काम किया.
क्या चाहते थे योगेंद्र और प्रशांत
इन दोनों बागी नेताओं पर आरोप है कि ये चाहते थे कि पार्टी केजरीवाल के व्यक्तिवाद से बाहर निकले और संयोजक के पद पर कोई दूसरा आसीन हो. वे चाहते थे कि एक नेता, एक पद के फॉर्मूले पर काम हो और केजरीवाल संयोजक का पद छोड़ दें.
योगेंद्र और प्रशांत का साथ देने वालों पर गिरी गाज
राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दो सदस्यों को बागी नेता योगेंद्र यादव एवं प्रशांत भूषण की ओेर से पिछले दिनों आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में हिस्सा लेने पर पार्टी से 2 अप्रैल को निलंबित कर दिया गया. योगेंद्र और प्रशांत के समर्थन में खुलकर आने पर ‘आप’ ने उत्तर प्रदेश के नेता राकेश सिन्हा और विशाल शर्मा लाठे को निलंबन नोटिस भेजा है. राष्ट्रीय कार्यकारिणी के निर्वाचित सदस्य सिन्हा ने एल रामदास को पार्टी के आंतरिक लोकपाल पद से और प्रशांत को अनुशासन समिति के अध्यक्ष पद से हटाए जाने के तौर-तरीके पर सवाल उठाए थे. लाठे ने चार मार्च को प्रशांत और योगेंद्र को राजनीतिक मामलों की समिति :पीएसी: से हटाने के प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया था. सिन्हा और लाठे ने प्रशांत और योगेंद्र को अपना पक्ष रखने का मौका दिए बगैर उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने पर नेतृत्व को आडे हाथ लिया था. बीते 28 मार्च को प्रशांत और योगेंद्र की ओर से आयोजित संवाददाता सम्मेलन में राष्ट्रीय कार्यकारिणी के ये दोनों सदस्य मौजूद थे.