मोदी के रात्रिभोज में शामिल नहीं हो पाने पर जस्टिस जोसेफ ने कहा, सभी धर्मों को समान भाव से देखा जाना चाहिए
नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से रविवार को जजों के लिए आयोजित रात्रिभोज कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाने की बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस कुरियन जोसेफ ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है. पत्र में इस्टर और गुड फ्राइडे को कारण बताते हुए जस्टिस जोसेफ ने कहा कि प्रमुख […]
नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से रविवार को जजों के लिए आयोजित रात्रिभोज कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाने की बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस कुरियन जोसेफ ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है. पत्र में इस्टर और गुड फ्राइडे को कारण बताते हुए जस्टिस जोसेफ ने कहा कि प्रमुख धार्मिक त्योहारों के समय इस प्रकार के आयोजनों में शामिल होना काफी कठिन है.
उन्होंने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और यहां सभी धर्मों को समान भाव से देखा जाना चाहिए. इसाई होने के नाते मेरे लिए गुड फ्राइडे और इस्टर किसी भी अन्य कार्यक्रम से ज्यादा महत्वपूर्ण है. शुक्रवार से चल रहे तीन दिवसीय न्यायाधीश सम्मेलन पर भी निशाना साधते हुए जस्टिस जोसेफ ने कहा कि यह एक वार्षिक सम्मेलन है और इसका आयोजन गुड फ्राइडे और इस्टर के दौरान होना भी ठीक नहीं है.
न्यायमूर्ति जोसेफ ने इससे पहले न्यायाधीशों का तीन दिवसीय सम्मेलन ईसाइयों के पवित्र सप्ताहांत में आयोजित करने पर प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू के समक्ष भी आपत्ति उठायी थी.न्यायमूर्ति जोसेफ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर अपनी स्थिति स्पष्ट करने के साथ ही इन पवित्र दिनों के दौरान ऐसी बैठकों के आयोजन पर भी सवाल उठाया है. न्यायमूर्ति जोसेफ ने एक अप्रैल को यह पत्र प्रधानमंत्री को लिखा था.
इस पत्र में उन्होंने प्रधानमंत्री निवास पर आज रात होने वाले भोज में आमंत्रित करने पर आभार प्रकट किया है. न्यायमूर्ति जोसेफ ने लिखा है, ‘मैं इस आयोजन में शामिल होने में अपनी असमर्थता व्यक्त कर रहा हूं क्योंकि यह सम्मेलन गुड फ्राइडे कार्यक्रमों के दौरान ही आयोजित हो रहा है. गुड फ्राइडे हमारे लिये अत्यधिक धार्मिक महत्व का है. इसी दिन ईसा मसीह को सूली पर चढाया गया था.’
‘अत: हमारे लिये इस सप्ताहांत अपने माता पिता, बुजुर्गों और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ इस धार्मिक तथा दूसरे समारोहों का हिस्सा बनना हमारी रीति है. इसलिए इन दिनों में मैं केरल में रहूंगा.’ इस पत्र में न्यायमूर्ति जोसेफ ने आगे कहा है कि उन्होंने कुछ चिंताएं व्यक्त की हैं, जिनपर उन्हें लगता कि प्रधानमंत्री के विचार की आवश्यकता है. न्यायमूर्ति जोसेफ ने लिखा है कि धर्म से इतर, दीवाली, होली, दशहरा, ईद, बकरीद, क्रिसमस, ईस्टर आदि आसपास के लोगों के साथ पर्व मनाने के महत्वपूर्ण दिन होते हैं.
आप इस बात की सराहना करेंगे कि दीवाली, दशहरा, होली, ईद, बकरीद आदि के पवित्र दिनों पर कोई भी आयोजन नहीं किया जाता है, हालांकि इस अवधि में भी हम अवकाश रखते हैं. न्यायमूर्ति जोसेफ ने इसके बाद ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र किया और कहा कि विदेशों में सताये जाने के बाद यहूदी और पारसी भारत आये और उन्हें हिन्दू शासकों से सम्मान मिला. न्यायमूर्ति जोसेफ लिखते हैं कि हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक पर्वों ने जाति एवं वर्ण से इतर अपनी बहुलवादी संस्कृति एवं लोकाचार में बहुत योगदान किया है.
पूरी दुनिया हमारे महान राष्ट्र की धर्मनिरपेक्ष छवि, सांप्रदायिक सद्भाव और सांस्कृतिक समग्रता की खूबसूरती को निहारती है. न्यायमूर्ति जोसेफ ने प्रधानमंत्री को आगे लिखा है, ‘मैं जानता हूं कि आयोजन के कार्यक्रम में बदलाव के लिये बहुत देर हो चुकी है. परंतु भारतीय धर्मनिरपेक्षता के अभिभावक के रूप में मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि इस तरह के आयोजनों का कार्यक्रम बनाते समय इन सरोकारों को ध्यान में रखा जाये और सभी धर्मों के पवित्र दिनों का सम्मान किया जाये जिन्हें राष्ट्रीय अवकाश का दिन घोषित किया गया है.
मैंने अपनी चिंता से प्रधान न्यायाधीश को भी अवगत कराया है.’ प्रधान न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति जोसेफ को भेजे अपने जवाब में लिखा था कि न्यायाधीश को खुद से ही यह सवाल करना चाहिए क्योंकि वह न्यायाधीश से नहीं पूछ सकते हैं कि संस्था के हित या व्यक्तिगत हित में से किसे महत्व दिया जाना चाहिए.