नयी दिल्ली : केंद्र सरकार ने नौ राज्यों में जाटों को आरक्षण का लाभ देने की अधिसूचना निरस्त करने के फैसले पर पुनिर्वचार का अनुरोध करते हुये उच्चतम न्यायालय से कहा है कि संविधान के तहत उसे अन्य पिछडे वर्गों की केंद्रीय सूची में उन्हें शामिल करने का अधिकार है.
राजग सरकार ने जाटों को आरक्षण देने के संप्रग सरकार के फैसले को पुरजोर समर्थन दिया था. राजग सरकार ने पुनविर्चार याचिका में दावा किया है कि शीर्ष अदालत का यह निष्कर्ष एक त्रुटि है कि राष्ट्रीय पिछडा वर्ग आयोग की राय केंद्र के लिये बाध्यकारी है.
केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका में कहा है कि आरक्षण प्रदान करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 16 (4) से प्राप्त होता है. यह अधिकार राष्ट्रीय पिछडा वर्ग आयोग की सिफारिश पर आश्रित नहीं है. याचिका के अनुसार राष्ट्रीय पिछडा वर्ग आयोग कानून के प्रावधानों से इतर अन्य पिछडे वर्गों की केंद्रीय सूची में नाम शामिल करने या उससे निकालने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है. इस पुनर्विचार याचिका को अतिरिक्त सालिसिटर जनरल मनिन्दर सिंह ने अंतिम रुप दिया है.
केंद्र सरकार ने जाट समुदाय के नेताओं के प्रतिनिधिमंडल की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात के एक सप्ताह के भीतर ही यह पुनर्विचार याचिका दायर की है. प्रधानमंत्री ने इस प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया था कि कानूनी दायरे में ही इसका समाधान खोजने का प्रयास किया जायेगा. इससे पहले, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन की खंडपीठ ने 17 मार्च को जाटों को नौ राज्यों में अन्य पिछडे वर्गों की केंद्रीय सूची में शामिल करने संबंधी 2014 की अधिसूचना निरस्त कर दी थी.
पुनर्विचार याचिका में सरकार ने कहा है कि जाटों को अन्य पिछडे वर्गों की केंद्रीय सूची में शामिल करने का निर्णय विभिन्न समितियों की रिपोर्ट के आधार पर किया गया है. इन रिपोर्ट में जाटों को इस सूची में शामिल करने का समर्थन किया गया है.