नयी दिल्ली : महात्मा गांधी को विदेश में रहते हुए उनके अनुभवों ने देश..दुनिया के प्रति व्यापक समझ बनाने में मदद तो की ही साथ में बापू को अपनी जन्मभूमि की विविधता के बारे में उत्सुक बने रहने का मौका भी दिया.
इतिहासकार रामचंद्र गुहा की पेंग्विन द्वारा प्रकाशित नई पुस्तक ‘गांधी: भारत से पहले’ में कहा गया है, ‘यदि गांधी हमेशा भारत में रहते या काम कर रहे होते तब वह कभी भी यहूदियों या प्रोटेस्टेंट ईसाइयों से नहीं मिल पाते और उनके बारे में समझ नहीं बना पाते. विदेश में बिताये गए समय ने उन्हें अपनी जन्मभूमि की विविधता के बारे में उत्सुक बने रहने का भी मौका दिया.’
इस पुस्तक में यह भी कहा गया है कि, ‘ गांधी में विश्वबंधुत्व के भाव का एक अनूठा उदाहरण ट्रांसवाल में रहने वाले चीनीयों के साथ उनके मेलमिलाप में मिलता है. दोनों ही प्राचीन सभ्यता थी जो अब दुनिया के रंगमंच पर मजबूत राष्ट्र के रुप में दृढता से अपना अस्तित्व दर्शा रहे हैं.’ उल्लेखनीय है कि गांधीजी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे और यह वर्ष उनके भारत लौटने के शताब्दी वर्ष के रुप में मनाया जा रहा है.
पुस्तक में गुहा ने लिखा कि गांधी अपने छात्र जीवन से ही दूसरे धर्मो एवं जीवन जीने के दूसरों के तरीकों तथा दुनिया से जुडे तौर तरीकों को लेकर उत्सुक थे. ये प्रवृतियां विदेश में उनके अनुभवों से और गहरी हो गई.पुस्तक में कहा गया है कि लंदन, डरबन, जोहांसबर्ग….ये शहर राजकोट या पोरबंदर की तुलना में कहीं ज्याद बडे और विविधतापूर्ण थे. गांधीजी इनके बहुलतावादी और महानगरीय स्वभाव को समझने के लिए स्वतंत्र थे, इसकी एक वजह यह भी थी कि वे काफी समय तक परिवार से दूर रहे थे.
रामचंद्र गुहा ने लिखा कि इन शहरों में शायद जोहांसबर्ग ऐसा शहर था जिसने गांधीजी को व्यापक रुप से प्रभावित किया. 20वीं सदी के शुरुआती वर्षो में यह शहर एक ऐसे समाज के रुप में आकार ले रहा था जो अभी अपने बनने की प्रक्रिया में था और लगातार विकसित हो रहा था.
पुस्तक में कहा गया है कि विदेशों में मंथन हो रहा था क्योंकि दुनिया में हर हिस्से से प्रवासी एक जगह से दूसरे जगह जा रहे थे…. सिर्फ व्यापरिक उन्नति के लिए ही नहीं बल्कि सामाजिक कट्टरता से मुक्त होने के लिए भी.
पुस्तक के ‘गांधी महात्मा कैसे बने’ खंड में कहा गया है,’ एक ओर दुनिया के विभिन्न हिस्सों में शासक एक नई, स्थायी और नस्ली व्यवस्था लाना चाह रहे थे तो दूसरी ओर लोग अपनी अंत:प्रेरणा के अनुसार अपने जीवन को शक्ल देना चाहते थे जिसके लिए वो नये परिवेश, खानपान के साथ संस्कृतियों और धर्मो के साथ संवाद कर रहे थे.’ गुहा ने लिखा, ‘ इन सब के बीच गांधीजी ने अपना मित्र दल ढूंढ लिया था जिनमें पोलक, कालेनबाख, रिच, जोसेफ , सोन्जा श्लेजियन जैसे लोग शामिल थे.’