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अब आरएसएस ने जनता परिवार पर बोला हमला

नयी दिल्ली : नरेंद्र मोदी के रथ को बिहार और यूपी में रोकने के लिए जनता परिवार का गठन हुआ है जिसपर भाजपा और उसके घटक दल लगातार हमला कर रहे हैं. रांची में कार्यकर्ता समागम में अपनी बात रखते हुए भाजपा राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष ने जनता परिवार पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि इसमें […]

नयी दिल्ली : नरेंद्र मोदी के रथ को बिहार और यूपी में रोकने के लिए जनता परिवार का गठन हुआ है जिसपर भाजपा और उसके घटक दल लगातार हमला कर रहे हैं. रांची में कार्यकर्ता समागम में अपनी बात रखते हुए भाजपा राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष ने जनता परिवार पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि इसमें जनता गायब है सिर्फ परिवार शेष है. उनके इस बयान के एक दिन के बाद अब राष्‍ट्रीय स्वंसेवक संघ ने इस परिवार पर हमला किया है.

आरएसएस ने रविवार को आरोप लगाया कि जनता परिवार नरेंद्र मोदी सरकार को अछूत के रुप में प्रचारित कर रही है जबकि राम मनोहर लोहिया के नक्शे कदम पर चलने का दावा करने वाले इसके घटक दल उत्तर प्रदेश और बिहार में अनुसूचित जाति के लोगों से गरिमापूर्ण व्यवहार करने में नाकाम रहे हैं.

संघ के मुखपत्र ‘आर्गेनाइजर’ के ताजा अंक में प्रकाशित संपादकीय में कहा गया है कि भाजपा के खिलाफ जनता परिवार का गठन सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर छूआआत का बर्ताव करने की सोच से उभरा है. इसने कहा है कि एक ओर जहां यह उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में दलितों से छूआछूत के व्यवहार का प्रचार करता है, वहीं दूसरी ओर यह केंद्र की मोदी सरकार के साथ बैर भाव वाले छूआछात का व्यवहार अपनाता है.

संपादकीय में कहा गया है कि लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त मिलने के बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से नैतिक आधार पर इस्तीफा दे दिया और जीतन राम मांझी को कठपुतली मुख्यमंत्री बनाया. मांझी ने जब खुद को मजबूत दिखाना शुरु किया तब उन्हें बगैर किसी उचित कारण के हटा दिया गया. अचानक ही कैसे चुनावी हार के लिए नीतीश कुमार की नैतिक जिम्मेदारी 10 महीने में ही बदल गई उसका अंदाजा लगाना मुश्किल काम नहीं है. इसमें कहा गया है कि लंबे समय तक सहकर्मी रहे एक व्यक्ति का जाति के नाम पर अपमान करना शायद अधिक शर्मनाक है.

इसने कहा कि दुर्भाग्य से लोहिया की राजनीतिक विरासत का दावा करने वाले मुलायम सिंह, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार जैसे नेता अनुसूचित जाति के नेताओं एवं लोगों से गरिमापूर्ण बर्ताव नहीं कर रहे हैं. संपादकीय में कहा गया है, ‘‘साथ ही, उन्होंने भारतीय राजनीति में नई तरह का छूआछूत पेश किया. यह लालू थे जिन्होंने धर्मनिरपेक्षता को सामाजिक न्याय से जोडा, जब 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे.’’

अपनी निजी महत्वाकांक्षा को लेकर बिहार में 15 साल तक भाजपा से गठजोड रखने वाले नीतीश ने मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के मुद्दे पर धर्मनिरपेक्षता का झंडा उठाते हुए गठबंधन तोड दिया.’’ इसमें कहा गया है कि मुलायम सिंह यादव, जिनकी मायावती से नहीं बनती है, वह आसानी से कांग्रेस, कम्युनिस्ट और पुराने समाजवादी दोस्तों से मेलजोल बनाते हैं तथा जनता परिवार को पनुर्गठित कर इस छूआछूत में मोदी सरकार के खिलाफ नई जान फूंकते हैं.

इसमें दावा किया गया है कि लोहिया की विरासत अवसरवाद, महत्वाकांक्षा और जातिवाद तक सीमित हो गई है. भाजपा की सराहना करते हुए इसने कहा कि 1990 के दशक में राजनीतिक रुप से अछूत माने जाने वाली पार्टी ने भारतीय राजनीति में मुख्य स्थान बना लिया है.

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