अब चुनाव नहीं लड़ सकेंगे सजायाफ्ता नेता, पुनर्विचार याचिका खारिज

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने दो साल से अधिक की सजा पाये सांसदों और विधायकों को तत्काल प्रभाव से सदन के अयोग्य करार देने के अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने से आज इंकार कर दिया. लेकिन हिरासत में बंद व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से वंचित करने सबन्धी निर्णय पर फिर से विचार के लिये तैयार […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 4, 2013 4:44 PM

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने दो साल से अधिक की सजा पाये सांसदों और विधायकों को तत्काल प्रभाव से सदन के अयोग्य करार देने के अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने से आज इंकार कर दिया. लेकिन हिरासत में बंद व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से वंचित करने सबन्धी निर्णय पर फिर से विचार के लिये तैयार हो गया.

शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि उच्चतम न्यायालय द्वारा कानून की व्याख्या से संसद सहमत नहीं है तो वह इसमें संशोधन के लिये स्वतंत्र है. न्यायमूर्ति ए के पटनायक और न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने कहा कि वह सिर्फ एक सीमित बिन्दु पर ही पुनर्विचार करेगी कि क्या संविधान में प्रदत्त अयोग्यता गिरफ्तार व्यक्ति के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाती है या नहीं.

न्यायालय ने सवाल किया कि जब इस मामले पर सुनवाई हो रही थी तो केंद्र ने बहस करना मुनासिब क्यों नहीं समझा. न्यायालय ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून ‘पेचीदा’ है जो भ्रम पैदा करता है. न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘इस प्रावधान का उद्देश्य आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति को चुनाव से दूर रखना था.’’

न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘संसद अपने तरीके से कानून बनाती है. हम कानून की व्याख्या करते हैं और यदि यह उसे (संसद को) स्वीकार्य नहीं है, तो संसद फिर से कानून बना सकती है.’’न्यायालय ने 10 जुलाई के निर्णय का जिक्र करते हुये कहा कि दोषी निर्वाचित प्रतिनिधि सदन की सदस्यता के लिये अयोग्य होगा. न्यायालय ने कहा, ‘‘कानून की नजर में इसमें कोई त्रुटि नहीं है लेकिन व्याख्या को लेकर कुछ हो सकता है. हमें इस संबंध में कानून में खामी मिली है जिसपर विधायिका विचार कर सकती है.’

न्यायाधीशों ने कहा कि चूंकि फैसले में कोई त्रुटि नहीं है. संसद ने इसे स्वीकार किया और जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन का विधेयक आ गया जिसे राज्य सभा पारित कर चुकी है.

न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘हम इस पर विचार के पक्ष में नहीं है. यह सुविचारित फैसला है. सभी को इसे स्वीकार करना चाहिए. हमें खुशी हुयी कि संसद ने इसे स्वीकार किया. हमें 10 जुलाई के निर्णय में कोई त्रुटि नहीं नजर आयी, इसलिए पुनर्विचार याचिका खारिज की जाती है.

न्यायालय ने यह भी कहा कि संसद संशोधन पर आगे कार्यवाही कर सकती है. हम इसमें बाधा नहीं डालना चाहते हैं. गिरफ्तार व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से वंचित करने के मसले पर नये सिरे से विचार के लिये सहमत होते हुये न्यायालय ने कहा कि संविधान के प्रावधान के मद्देनजर इस मसले पर अच्छी तरह बहस नहीं की गयी थी.

न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 102 के प्रावधान को ध्यान में रखते हुये अयोग्यता के मसले पर विचार किया जायेगा. यह प्रावधान सदस्यता की अयोग्यता और चुनाव कानून के प्रावधानों के बारे में है.

केंद्र सरकार का तर्क है कि सदन और शासन को प्रतिकूल प्रभाव से बचाने के इरादे से अपील लंबित होने के दौरान दोषी सांसदों और विधायकों को अयोग्यता से बचाना जरुरी है.

शीर्ष अदालत ने 10 जुलाई को अपने फैसले में कहा था कि आपराधिक मामले में दो साल या इससे अधिक अवधि की सजा पाने वाले सांसद या विधायक तत्काल प्रभाव से सदन की सदस्यता के अयोग्य होंगे और एक व्यक्ति यदि जेल में या पुलिस हिरासत में है तो वह विधायी संस्था का चुनाव नहीं लड़ सकता है.

न्यायालय ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. यह धारा कहती है कि सजा पाने वाला निर्वाचित प्रतिनिधि अपने पद पर बना रह सकता है बशर्ते उसने तीन महीने के भीतर उपरी अदालत में इस निर्णय को चुनौती दे दी है.

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