भ्रष्टाचार पर मोदी सरकार सख्त, कैबिनेट ने सजा बढाकर अधिकतम सात साल करने को मंजूरी दी
नयी दिल्ली: भ्रष्टाचार को गंभीर अपराध की श्रेणी में लाते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज भ्रष्टाचार निरोधक कानून में आधिकारिक संशोधनों को मंजूरी दी, जिसमें भ्रष्टाचार के लिए सजा की अवधि पांच साल से बढाकर सात साल करने का प्रावधान है.भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 में प्रस्तावित संशोधनों में घूसखोरी के अपराध में रिश्वत देने और […]
नयी दिल्ली: भ्रष्टाचार को गंभीर अपराध की श्रेणी में लाते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज भ्रष्टाचार निरोधक कानून में आधिकारिक संशोधनों को मंजूरी दी, जिसमें भ्रष्टाचार के लिए सजा की अवधि पांच साल से बढाकर सात साल करने का प्रावधान है.भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 में प्रस्तावित संशोधनों में घूसखोरी के अपराध में रिश्वत देने और रिश्वत लेने वाले-दोनों के लिए अधिक कडी सजा का प्रावधान है.
एक सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार, ‘‘सजा के प्रावधानों को न्यूनतम छह माह की बजाय तीन साल और अधिकतम पांच साल की बजाय सात साल (सात साल की सजा होने पर भ्रष्टाचार गंभीर अपराधों की श्रेणी में आ जाएगा) तक बढाया जा रहा है.भ्रष्टाचार के मामलों के जल्द निपटारे के लिए दो वर्ष की समय सीमा निर्धारित करने का भी प्रावधान है.
विज्ञप्ति के अनुसार, ‘‘पिछले चार वर्ष में भ्रष्टाचार निरोधक कानूनों से जुडे मामलों के निपटारे में औसतन आठ वर्ष से अधिक समय लगा. दो साल के भीतर मुकदमा खत्म करके इस तरह के मामलों को जल्द निपटाने का प्रस्ताव किया गया है.
इसके अनुसार, ‘‘किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा आधिकारिक कामकाज अथवा दायित्वों के निर्वहन में की गई सिफारिशों अथवा किए गए फैसलों से जुडे अपराधों की जांच के लिए, जैसा भी अपराध हो उसके अनुरुप लोकपाल अथवा लोकायुक्त से जांच पडताल के लिए पूर्व मंजूरी लेना जरुरी होगा.’’
केबिनेट द्वारा आज मंजूर किए गए संशोधन भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) विधेयक 2013 का हिस्सा होंगे, जो राज्य सभा में लंबित है, यह वाणिज्यिक संगठनों को उनसे जुडे लोगों को सरकारी कर्मचारी को घूस न देने के दिशानिर्देश भी प्रदान करेंगे.
भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए किए गए इन आधिकारिक संशोधनों में कुर्की का अधिकार जिला अदालत की बजाय सुनवाई अदालत (विशेष जज) के सुपुर्द करने का भी प्रावधान है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक के बाद जारी विज्ञप्ति के अनुसार, ‘‘सरकारी कर्मचारियों द्वारा जानबूझकर रईसी का दिखावा आपराधिक कदाचार माना जाएगा और बेहिसाब माल असबाब की मिल्कियत को इस तरह की अवैध रईसी का सुबूत समझा जाएगा.’’ धन के अलावा अन्य तरीकों से की जाने वाली घूसखोरी को भी घूसखोरी शब्द की परिभाषा में शामिल किया गया है.
प्रस्तावित संशोधन में एक लोकसेवक के दायित्वों की परिभाषा को भी शामिल किया गया है. संशोधन विधेयक में शामिल किए जाने वाले प्रस्तावित स्पष्टीकरण के अनुसार, ‘‘एक लोकसेवक का दायित्व इस तरह से वर्णित किया गया है, जो लोकसेवकों को एक सांविधिक दायित्व अथवा नियमों, सरकारी नीतियों, कार्यपालक निर्देशों और प्रक्रियाओं का उल्लंघन करने से रोकता है.’’
भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 में तैयार किया गया था, लेकिन बाद में सरकार ने इसे अन्तरराष्ट्रीय मानकों के अनुरुप लाने के लिए इसमें कुछ संशोधनों का प्रावधान किया और भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) विधेयक 2013 को 19 अगस्त 2013 को राज्यसभा में पेश किया गया. विभाग से संबद्ध संसदीय स्थायी समिति ने पिछले साल 6 फरवरी को राज्यसभा में इस विधेयक से संबंधित अपनी रिपोर्ट सौंप दी, लेकिन विधेयक पारित नहीं हो पाया.
विज्ञप्ति के अनुसार, ‘‘विधेयक में चूंकि घूसखोरी से जुडे अपराधों को परिभाषित करने में कुछ बडे बदलाव किए गए हैं इसलिए प्रस्तावित संशोधनों पर भारत के विधि आयोग की राय भी ली गई है. इसके साथ ही विधेयक में उन्हीं संशोधनों का प्रस्ताव किया गया है, जिनकी संस्तुति भारत के विधि आयोग ने अपनी 254वीं रिपोर्ट में की है.