वैवाहिक बलात्कार को अपराध मानने के मुद्दे पर विशेषज्ञो में मतभेद
नयी दिल्ली: वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने से सरकार के इनकार को कई महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने अनुचित करार दिया है, लेकिन केंद्र के रुख का समर्थन कर रहे विशेषज्ञ मानते हैं कि कानून से छेडछाड करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसका दुरुपयोग हो सकता है. इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय का समर्थन […]
नयी दिल्ली: वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने से सरकार के इनकार को कई महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने अनुचित करार दिया है, लेकिन केंद्र के रुख का समर्थन कर रहे विशेषज्ञ मानते हैं कि कानून से छेडछाड करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसका दुरुपयोग हो सकता है. इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय का समर्थन भी नहीं मिला है.
इस मामले पर गृह राज्यमंत्री हरिभाई पारथीभाई चौधरी के संसद में दिए गए इस बयान से एक बार फिर बहस शुरु हो गई कि भारत में वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा को लागू नहीं किया जा सकता जहां शादी को पवित्र बंधन माना जाता है.
वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन ने कहा, संसद इस बारे में प्रतिगामी हो रही है. यहां तक कि न्यायमूर्ति जेएस वर्मा समिति भी वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने की सिफारिश कर चुकी है. भारत तैयार है, लेकिन संसद नहीं. उनकी राय से कार्यकर्ताओं रंजना कुमारी और वृंदा ग्रोवर ने भी सहमति जताई जिन्होंने विवाहित महिलाओं को उनके पति द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने से बचाने के लिए एक कानून का समर्थन किया.
उन्होंने कहा कि कानून निर्माता महिलाओं को उनके शोषण, यहां तक कि उनके पतियों के हाथों होने वाले शोषण के खिलाफ अधिकार नहीं देना चाहते. हालांकि, इस विचार का कुछ न्यायविदों ने समर्थन नहीं किया. उन्होंने कहा कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाया जाना आज के परिदृश्य में खतरनाक साबित होगा जहां महिलाओं द्वारा पतियों और ससुराल के लोगों को झूठा फंसाए जाने के काफी अधिक उदाहरण सामने आ रहे हैं. दिल्ली उच्च न्यायालय के दो सेवानिवृत्त न्यायाधीशों एसएन ढींगरा और आरएस सोढी ने कहा कि महिलाओं द्वारा इसका दुरुपयोग किया जा सकता है.
इन न्यायविदों से भिन्न राय रखने वाले और महिला कार्यकर्ताओं का समर्थन करने वाले तथा शीर्ष अदालत में मुद्दा ले जाने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्वेस ने आरोप लगाया कि सरकार का नेतृत्व महिला विरोधी सोच रखने वाले पुरुष कर रहे हैं. उन्होंने कहा, हमारी सरकार रुढिवादी, समाज विरोधी और पीछे की ओर देखने वाली है. इसका नेतृत्व महिला विरोधी सोच रखने वाले पुरुष कर रहे हैं. गोंजाल्वेस ने पूछा, जब घरेलू हिंसा से महिलाओं को बचाने के लिए कानून है तो वैवाहिक बलात्कार के लिए कानून क्यों नहीं होना चाहिए ? संयुक्त राष्ट्र की 2011 प्रोग्रेस ऑफ द वर्ल्ड वुमन इन पर्सूट ऑफ जस्टिस रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा, डेनमार्क और फ्रांस सहित 52 देशों में वैवाहिक बलात्कार अपराध है.
सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की अध्यक्ष कुमारी ने इस तरह के कानून के दुरुपयोग की आशंका जताने वाले लोगों की सोच का मजबूती से विरोध किया और कहा कि कानून के दुरुपयोग के डर का मतलब यह नहीं है कि महिलाएं प्रताडित हों. उन्होंने कहा, राजनीतिक नेताओं को इन मुद्दों को मान्यता देने की आवश्यकता है क्योंकि ये वैश्विक सचाई हैं. हमें एक उचित कानून की आवश्यकता है.
कार्यकर्ता-अधिवक्ता ग्रोवर के अनुसार यह महिलाओं की सहमति है जो मायने रखती है, न कि मुजरिम से उसके संबंध. उन्होंने कहा, किसी अन्य समाज की तरह भारतीय समाज वैवाहिक बलात्कार की समस्या का सामना कर रहा है और इसे दंडनीय बनाए जाने की आवश्यकता है. इस तरह के मामलों में सबसे ज्यादा महत्व महिला की सहमति का है और मुजरिम तथा महिला के बीच संबंध कोई मायने नहीं रखता है.