कश्मीरी लड़कियों का बढ़ रहा दबदबा
रूवैदा सलाम शायद ऐसी पहली कश्मीरी मुसलिम लड़की है, जिन्होंने भारतीय सिविल सेवा परीक्षा पास की है, लेकिन यह कामयाबी उन्हें आसानी से हासिल नहीं हुई. जब रूवैदा ने डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की तो उनके रिश्तेदार बहुत खुश थे और उन पर लगातार शादी के लिए दबाव बना रहे थे, लेकिन सीमावर्ती कुपवाड़ा जिले […]
रूवैदा सलाम शायद ऐसी पहली कश्मीरी मुसलिम लड़की है, जिन्होंने भारतीय सिविल सेवा परीक्षा पास की है, लेकिन यह कामयाबी उन्हें आसानी से हासिल नहीं हुई.
जब रूवैदा ने डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की तो उनके रिश्तेदार बहुत खुश थे और उन पर लगातार शादी के लिए दबाव बना रहे थे, लेकिन सीमावर्ती कुपवाड़ा जिले की रहने वाली इस लड़की की नजर, शादी करके एक आम जिंदगी बिताने की बजाय भारतीय प्रशासनिक सेवा पर थी.
सफलता से मिली प्रेरणा
तीन साल पहले तक,कश्मीर घाटी या कहें कि पूरे जम्मू-कश्मीर का नाम शायद ही कभी सिविल सेवा को लेकर चर्चा में आया था, लेकिन कुपवाड़ा के निवासी शाह फैसल साल जब आइएएस की परीक्षा में टॉपर बने, तो बड़ी संख्या में कश्मीरी लड़के-लड़कियां उनसे प्रेरित हुए. इस साल 11 उम्मीदवारों ने यह परीक्षा पास की है, जो कि सिविल सेवा में राज्य की अब तक की सबसे बड़ी सफलता है.
युवाओं में जागी है ख्वाहिश
जम्मू क्षेत्र की रहने वाली सैय्यद सहरिश असगर राज्य स्तर पर अव्वल आयी हैं. इस साल सिविल सेवा के 998 सफल उम्मीदवारों में सहरिश की रैंक 23वीं है. इस परीक्षा में रूवैदा की रैंक 820वीं और जम्मू की अंचिता पंडोह की रैंक 446वीं है. राज्य भर में अव्वल आने वाली सहरिश कहती हैं कि जम्मू-कश्मीर में दो दशकों तक सशस्त्र संघर्ष के बाद अब शांति आयी है, जिससे अधिक से अधिक युवाओं में इस एलिट सेवा में शामिल होने की ख्वाहिश जगी है.
लड़कियों के मन से दूर किया संकोच
कई लड़कियां आइएएस की परीक्षा में शामिल होने से इसलिए हिचकती थीं कि उन्हें लगता था कि उन्हें गृह राज्य के बाहर तैनात किया जायेगा, लेकिन उनकी सोच 2011 में बदल गयी, जब राज्य के लद्दाख क्षेत्र से एक मुसलिम महिला उवैसा इकबाल ने सिविल सेवा में कामयाबी हासिल की.
(बीबीसी से साभार)