CAG का खुलासा, भारतीय सेना के पास 20 दिनों से ज्यादा लड़ने के लिए नहीं है गोला-बारूद
नयी दिल्ली : शुक्रवार को सदन में पेश कैग की रिपोर्ट में एक बड़ा खुलासा किया गया है. कैग की रिपोर्ट में थलसेना के पास 10 से 15 दिन ही लड़ सकने लायक गोला-बारुद है. अगर 20 से अधिक दिनों तक लड़ाई छिड़ती है तो सेना के पास मौजूद गोला-बारुद कम पड़ सकते हैं. कैग […]
नयी दिल्ली : शुक्रवार को सदन में पेश कैग की रिपोर्ट में एक बड़ा खुलासा किया गया है. कैग की रिपोर्ट में थलसेना के पास 10 से 15 दिन ही लड़ सकने लायक गोला-बारुद है. अगर 20 से अधिक दिनों तक लड़ाई छिड़ती है तो सेना के पास मौजूद गोला-बारुद कम पड़ सकते हैं. कैग ने पिछले साल के अपने रिपोर्ट में भी कहा था कि सेना के पास 15 दिनों तक लड़ने लायक ही गोला-बारुद है. गृहमंत्रालय को युद्ध सामग्री प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है.
कैग ने कहा था सरकार ऐसी व्यवस्था करे कि सेना लगातार 40 दिनों तक युद्ध करने में सक्षम हो और उन्हें जरुरी युद्ध सामग्रियों की कमी ना हो पाये. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने थलसेना में युद्ध सामग्री प्रबंधन के मुद्दे पर शुक्रवार को रक्षा मंत्रालय की खिंचाई की. सीएजी ने कहा कि युद्ध सामग्री की भारी कमी गंभीर चिंता का कारण है जिससे बल की अभियान से जुडी तैयारियां सीधे तौर पर प्रभावित हो रही हैं.
संसद में आज पेश की गई रिपोर्ट में सीएजी ने कहा, ‘अभियान की अपेक्षित अवधि की जरुरतें पूरी करने के लिए वॉर वेस्टेज रिजर्व (डब्ल्यूडब्ल्यूआर) के खिलाफ अधिकृत भंडार की उपलब्धता जहां थलसेना की तैयारियों को सुनिश्चित करने का बुनियादी मानदंड है, वहीं हमने समीक्षा के दौरान पाया कि 40 (आइ) दिनों की डब्ल्यूडब्ल्यूआर के खिलाफ युद्ध सामग्री के कुल प्रकारों के सिर्फ 10 फीसदी हिस्से में उसकी उपलब्धता है.’
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘युद्ध सामग्री के कुल प्रकारों की 50 फीसदी में होल्डिंग ‘नाजुक’ है. जैसे, 10 (आइ) दिनों से कम.’ सीएजी ने कहा कि समग्र होल्डिंग पिछले कुछ सालों से लगातार कम हो रही है और उच्च क्षमता वाली युद्ध सामग्री में यह खासतौर पर हो रहा है.
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘लगातार होती जा रही कमी से निजात पाने के लिए थलसेना मुख्यालय ने 1999 में एक न्यूनतम स्वीकार्य जोखिम का स्तर (एमएआरएल) 20 (आइ) दिन तय किया था. हमने पाया कि 15 साल के बाद भी एमएआरएल का स्तर नहीं हासिल किया जा सका. इसकी भारी कमी गंभीर चिंता का कारण है जिससे थलसेना की अभियान से जुडी तैयारियां सीधे तौर पर प्रभावित हो रही हैं.’
कैग ने वायुसेना के ‘तेजस मार्क-1’ में 53 खामियां गिनायी
भारत की तेजस हल्के लडाकू विमान की परियोजना की शुक्रवार को कैग ने जमकर आलोचना की और इसके मार्क-1 संस्करण में 53 महत्वपूर्ण कमियों की ओर इशारा किया जिन्होंने इसकी परिचालन क्षमताओं को कम किया है. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने संसद में पेश रिपोर्ट में कहा कि केवल इतना ही नहीं, वायुसेना एक प्रशिक्षक मॉडल की उपलब्धता के बिना लडाकू एलसीए को शामिल करने के लिए मजबूर होगी और इससे पायलट प्रशिक्षण पर प्रतिकूल असर पडेगा.
कैग ने कहा कि एलसीए के निर्माण और आपूर्ति में देरी की वजह से वायुसेना को वैकल्पिक अस्थाई कदम उठाने पडे जिनमें मिग बीआईएस, मिग-29, जगुआर और मिराज विमानों को 20,037 करोड रुपये की लागत से उन्नत करना और मिग-21 विमानों को चरणबद्ध तरीके से हटाने पर पुनर्विचार करना शामिल है.
कैग ने खामियां गिनाते हुए कहा कि एलसीए मार्क-1 वायुसेना के लिए जरुरी इलेक्ट्रॉनिक युद्धक क्षमताएं पूरी करने में विफल रहा है क्योंकि कुछ अडचनों की वजह से विमान में आत्म-रक्षा जैमर नहीं लगाया जा सका. उसने कहा कि मार्क-1 की खामियां मार्क-2 मॉडल में समाप्त होने की उम्मीद है.
इन खामियों में बढा हुआ वजन, इंधन क्षमता में कमी, इंधन प्रणाली की सुरक्षा का पालन नहीं करना आदि हैं. कैग के मुताबिक, ‘एलसीए मार्क-1 की खामियां दिसंबर 2018 तक एलसीए मार्क-2 में समाप्त होने की उम्मीद है.’ एलसीए के स्वदेश में निर्माण की परियोजना को 1983 में 560 करोड रुपये की लागत से मंजूरी दी गयी थी. समय-समय पर बढते बढते यह 10397.11 करोड रुपये पहुंच गयी.