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भोजपुरी, राजस्थानी को संवैधानिक दर्जा देने की मांग, अगले सत्र में विधेयक आने की उम्मीद

नयी दिल्ली : भोजपुरी एवं राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किये जाने की मांग तेज होने के बीच भाजपा के कुछ सांसदों ने उम्मीद जतायी है कि इस संबंध में संसद के मानसून सत्र में सरकार द्वारा विधेयक लाया जा सकता है. लोकसभा में भाजपा के मुख्य सचेतक अर्जुनराम मेघवाल ने […]

नयी दिल्ली : भोजपुरी एवं राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किये जाने की मांग तेज होने के बीच भाजपा के कुछ सांसदों ने उम्मीद जतायी है कि इस संबंध में संसद के मानसून सत्र में सरकार द्वारा विधेयक लाया जा सकता है.

लोकसभा में भाजपा के मुख्य सचेतक अर्जुनराम मेघवाल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समक्ष इस मुद्दे को उठाया, वहीं पार्टी सांसद और भोजपुरी गायक मनोज तिवारी ने भी इस विषय को गृह मंत्री के समक्ष उठाया है. सीताकांत महापात्र समिति की रिपोर्ट पेश किये जाने के 10 वर्ष गुजरने और संसद में बार बार मांग किये जाने एवं आश्वासन दिये जाने के बावजूद भोजपुरी और राजस्थानी भाषाओं को अब तब अपेक्षित दर्जा नहीं मिलने का विषय दोनों नेता पहले भी उठा चुके हैं.

भाजपा के मुख्य सचेतक एवं सांसद अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि शुक्रवार को उनके साथ राजस्थानी भाषा मान्यता परिषद के अध्यक्ष के सी मालू समेत अन्य लोगों के एक शिष्टमंडल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी और राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किये जाने के विषय को उठाते हुए एक ज्ञापन सौंपा था.

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाने का आश्वासन दिया. मेघवाल ने कहा, ‘ मुझे उम्मीद है कि मानसून सत्र में एक विधेयक लाया जा सकेगा.’ भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने भी उम्मीद जतायी है कि संसद के मानसून सत्र में इन दोनों भाषाओं को संवैधानिक दर्जा देने संबंधी विधेयक आ जायेगा.

तिवारी ने कहा कि भोजपुरी और राजस्थानी दोनों ऐसी स्थानीय भाषाएं हैं जिनकी व्यापकता और विस्तार को देखते हुए इन्हें संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने पर कोई विवाद नहीं है. उन्होंने कहा, ‘ इस विषय को मैंने पुरजोर तरीके से उठाया गया है. गृह मंत्री राजनाथ के समक्ष भी इसे उठा चुका हूं. मुझे पूरी उम्मीद है कि संसद के आगामी मानसून सत्र में इन दोनों भाषाओं को संवैधानिक दर्जा देने संबंधी विधेयक आ जायेगा.’

राजस्थानी भाषा को संवैधानिक दर्जा देने पर जोर देते हुए राजस्थान सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि 2003 में राजस्थान विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक संकल्प पारित किया था. राजस्थानी भाषा का समृद्ध शब्दकोश है जिसमें 2.5 लाख शब्द है. इसे साहित्य अकादमी से मान्यता मिली है और दुनिया के कई देशों में काफी लोकप्रिय है. ऐसे में इसे संवैधानिक दर्जा दिये जाने की जरुरत है.

दूसरी ओर, पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के आश्वासन के बावजूद भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के बारे में अभी तक कोई निर्णय नहीं किया जा सका है.

आरटीआई के तहत गृह मंत्रालय के मानवाधिकार प्रभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, ‘ संविधान की आठवीं अनुसूची में किसी भाषा को शामिल करने या नहीं करने के संबंध में एक समान मानदंडों का सेट तैयार करने से संबंधित मामला अभी विभिन्न पक्षों के समक्ष विचाराधीन है. मानदंडों का सेट तैयार होने और इसे अंतिम रुप से अनुमोदन मिलने के बाद ही इस पर :भोजपुरी को शामिल करने: विचार किया जा सकता है. ह्यह्य यह मामला अभी सरकार के पास लंबित है और सरकार समिति की सिफारिशों पर विचार कर रही है.’

नेपाल, मारिशस, श्रीलंका, फिजी, थाईलैंड, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद एवं टोबैगो समेत भारत के पूर्वाचल, झारखंड, दिल्ली सहित कई अन्य क्षेत्रों में चार करोड से अधिक लोग भोजपुरी बोलते हैं.

लोकसभा सचिवालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, 1969 के बाद से भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के संबंध में लोकसभा मे 18 निजी विधेयक पेश किये गए जिसमें से 16 अवधि समाप्त होने के कारण निरस्त हो गए जबकि राजीव प्रताप रुडी के मंत्री बनने के कारण उनका निजी विधेयक लंबित सूची से हटा दिया गया. अभी ओम प्रकाश यादव का इससे संबंधित निजी विधेयक सदन में लंबित है.

मैथिली भोजपुरी अकादमी, दिल्ली के उपाध्यक्ष अजीत दूबे ने कहा कि यूनीसेफ ने 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस घोषित किया है और यह दिवस हमारे देश में मनाया भी गया लेकिन भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा नहीं होने के कारण यह उपेक्षित रही. सरकार ने देशी भाषाओं के डिजिटलीकरण का प्रस्ताव किया है लेकिन इसका लाभ केवल अधिसूचित 22 भाषाओं को मिलेगा.

उन्होंने कहा कि सरकार सदन में कई बार भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के बारे में आश्वासन दे चुकी है. इसलिए इसमें विलंब तत्काल सकारात्मक निर्णय करना चाहिए. उल्लेखनीय है कि संविधान की आठवीं अनुसूची में अभी 22 भाषाओं को मान्यता दी गयी है. 38 स्थानीय भाषाओं को इस सूची में शामिल करने का विषय सरकार के समक्ष विचाराधीन है.

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