नयी दिल्ली : भारत की प्रमुख इस्लामिक संस्था दारुल उलूम ने एक फतवा जारी कर फोटाग्राफी को गैर इस्लामिक और गुनाह करार दिया है. हालांकि सउदी अरब द्वारा पवित्र शहर मक्का में फोटोग्राफर्स को प्रवेश की इजाजत दी जाती है और नमाज को सीधे प्रसारित किया जाता है.
ऐसे में दारुल उलूम के इस फतवे ने मुस्लिम समाज में एक नई बहस छेड़ दी है. दारुल उलूम देवबंद के मोहतमीम मुफ्ती अब्दुल कासिम नोमानी ने बताया, ‘‘फोटोग्राफी गैर इस्लामी है. मुसलमानों को पहचान पत्र या पासपोर्ट बनवाने के अलावा और कहीं अपनी फोटो खींचने की इजाजत नहीं देनी चाहिए. उन्होंने कहा कि इस्लाम अगली पीढ़ियों के लिए यादगार के तौर पर शादियों की वीडियो बनाने या फोटो लेने की इजाजत नहीं देता.
उन्हें जब बताया गया कि वहाबी पंथ, जो इस्लाम के मूल सिद्धांतों पर लौटने की बात करता है, को मानने वाला सउदी अरब भी इस्लाम के पवित्रतम शहर मक्का की फोटोग्राफी की इजाजत देता है और पूरे वर्ष वहां की लाइव कवरेज करता है, नोमानी ने कहा, ‘‘उन्हें ऐसा करने दें. हम इसकी इजाजत नहीं देंगे. वह जो कुछ करते हैं, वह सब सही नहीं है.’’
नोमानी इस फतवे से सहमत थे, जो इंजीनियरिंग के एक स्नातक के सवाल के जवाब में दिया गया. फतवे को देवबंद में दारुल इफ्ता द्वारा जारी एक धार्मिक संदेश माना जाता है. इंजीनियरिंग के इस छात्र को फोटोग्राफी से जुनून की हद तक प्यार है और वह इसे एक करियर के तौर पर अपनाना चाहता है.
पंथ की वेबसाइट पर पोस्ट किए गए फतवे में कहा गया है, ‘‘फोटोग्राफी गैरकानूनी और गुनाह है. आप यह कोर्स न करें. अपने इंजीनियरिंग कोर्स के अनुसार कोई मुसासिब नौकरी ढूंढ लें.’’ ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ पर्सनल बोर्ड के सदस्यों मुफ्ती अबुल इरफान कादरी रज्जकी भी नोमानी के इस फतवे से सहमत हैं.
रज्जकी ने कहा, ‘‘इस्लाम में इनसानों और जानवरों की फोटोग्राफी पर पाबंदी है. जो कोई भी यह करेगा उसे अल्लाह ताला के सामने जवाब देना होगा. उन्हें भी जब बताया गया कि सउदी अरब में इसकी इजाजत है तो उन्होंने कहा, ‘‘सिर्फ इसलिए कि वह हमसे ज्यादा अमीर हैं, इसका यह मतलब नहीं कि वह सही भी हैं.
अगर वह फोटोग्राफी की इजाजत दे रहे हैं तो उन्हें इंसाफ के रोज अल्लाह की अदालत में जवाब देना होगा.’’ इसी तरह का फतवा जारी किया गया था, जब एक टेलीविजन रिपोर्टर ने सवाल किया था कि क्या उसका वीडियो कैमरे का सामना करना इस्लाम के खिलाफ है.
फतवे में कहा गया था, ‘‘आपका कहना सही है, इस्लाम में किसी की तस्वीर लेना या अपनी तस्वीर लेने देना गुनाह है. इसलिए आपको अल्लाह से माफी मांग लेनी चाहिए और अपने लिए कोई ऐसा काम तलाश करना चाहिए, जिसमें आपको ऐसा काम न करना पड़े.’’
एक अन्य फतवे में कहा गया कि ऐसी नौकरी जिसमें गैरकानूनी और इस्लाम में हराम काम किए जाएं निश्चित रुप से गैरकानूनी है. अगर इस काम में मौखिक अथवा लिखित रिपोर्टिंग का काम भी शमिल है तो इससे होने वाली पूरी आमदनी को हराम नहीं कहा जा सकता.
हालांकि शिया चांद समिति के अध्यक्ष मुफ्ती सैफ अब्बास ने कहा कि उनका समुदाय फोटोग्राफी और टेलीविजन देखने की इजाजत देता है. ‘‘इस्लामी चैनल जैसे पीस टीवी, क्यूटीवी, एआरवाई और नमाज, हज की कवरेज करने वाले चैनल क्या सब गलत हैं.. मैंने इस बारे में अपने सुन्नी साथियों से तर्क किया कि फोटाग्राफी में कोई हर्ज नहीं है.’’