नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार के विज्ञापनों के संबंध में आज दिशा-निर्देश जारी किया है जिसके तहत अब सरकारी विज्ञापनों में केवल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और प्रधान न्यायाधीश की तस्वीरें लगाई जा सकती हैं. उच्चतम न्यायालय ने विज्ञापनों के नियमन के लिए सरकार से तीन सदस्यीय कमेटी बनाने को भी कहा है, जो अदालत के फैसले के पालन कर सके साथ ही इसपर नजर रखने का काम करे.न्यायालय ने कहा कि फिलहाल स्पेशल ऑडिट की जरूरत अभी नहीं है. न्यायालय ने इस संबंध में याचिका पर अपने फैसले में स्पष्ट कहा है कि आगे से विज्ञापन में मुख्यमंत्री, मंत्रियों या किसी दूसरे नेताओं की तस्वीर नहीं लगाई जा सकती है.
न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार की इस याचिका को खारिज कर दिया कि न्यायपालिका को नीतिगत फैसलों के क्षेत्र में दखल नहीं देना चाहिए. न्यायालय ने कहा कि कोई नीति या कानून मौजूद न होने की स्थिति में अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं.
न्यायालय ने केंद्र सरकार से यह भी कहा कि वह सरकारी विज्ञापन के मुद्दे के नियमन के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन करें. न्यायालय ने सरकारी विज्ञापनों के नियमन के संदर्भ में एक समिति की सभी बडी सिफारिशें स्वीकार कर लीं. हालांकि न्यायालय ने मीडिया घरानों को सरकार द्वारा दिए जा रहे विज्ञापनों के विशेष ऑडिट के प्रावधान को मंजूरी नहीं दी. न्यायालय ने प्रतिष्ठित शिक्षाविद प्रोफेसर एन आर महादेव मैनन की अध्यक्षता वाली इस तीन सदस्यीय समिति की वह सिफारिश भी अस्वीकार कर दी, जिसमें कहा गया था कि सरकारी विज्ञापनों में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री समेत किसी पदाधिकारी की तस्वीर नहीं होनी चाहिए.
शीर्ष अदालत ने 24 अप्रैल को समिति का गठन किया था और राजनैतिक लाभ लेने के लिए सरकारों और अधिकारियों द्वारा अखबारों एवं टीवी में विज्ञापन देकर जनता के पैसे का ‘दुरुपयोग’ किए जाने पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश तय करने का फैसला किया था. इससे पहले 17 फरवरी को सरकार ने अपने विज्ञापनों के नियमन के लिए दिशानिर्देशों का निर्धारण किए जाने का विरोध किया था. सरकार ने कहा था कि यह न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता क्योंकि एक निर्वाचित सरकार संसद के प्रति जवाबदेह है.
इसके साथ ही सरकार ने यह भी पूछा था कि अदालत यह कैसे तय करेगी कि कौन सा विज्ञापन राजनैतिक लाभ के लिए जारी किया गया है. केंद्र का पक्ष रखने के लिए पेश हुए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा था कि ‘‘कुछ मामले सिर्फ सरकार पर ही छोड दिए जाने चाहिए और ये अदालतों के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं.’’ इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि सरकार नीतियों एवं अन्य मामलों के बारे में अधिकतर इन विज्ञापनों के जरिए ही संवाद करती है.’’ इससे पहले न्यायालय ने राजनैतिक हस्तियों की तस्वीरों वाले सरकारी विज्ञापनों के प्रकाशन पर सीधे रोक लगाने से इंकार करते हुए कहा था कि वह केंद्र का पक्ष और प्रचार संबंधी सामग्री के नियमन से जुडी सिफारिशें देने के लिए न्यायालय द्वारा नियुक्त किए गए पैनल की सिफारिशें भी सुनना चाहेगा.
न्यायालय ने केंद्र और अन्य से कहा था कि वे पैनल की रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रियाएं जमा करवाएं। इन अन्य पक्षों में याचिकाएं दायर करने वाले गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन शामिल थे. तीन सदस्यीय समिति ने उन विज्ञापनों के खर्च और सामग्री के नियमन के लिए दिशानिर्देश तैयार किए थे, जिनके लिए धन का भुगतान करदाताओं के पैसे से किया जाता है. लोकसभा के पूर्व सचिव टी के विश्वनाथन और सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार की सदस्यता वाली समिति ने सिफारिश दी थी कि एक ही विज्ञापन निकाला जाना चाहिए, जो कि किसी महत्वपूर्ण शख्सियत की जयंती या पुण्यतिथि जैसे मौकों पर आए. अच्छा होगा कि यह विज्ञापन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा निकाला जाए.