अरुणा शानबाग ने ड्यूटी के लिए लगायी थी अपनी जान की बाजी, 42 साल कौमा में रहने के बाद आज मौत

मुंबई : नौकरी की तत्परता की वजह से हजार सपने संजोये युवा नर्स रहीं अरुणा शानबाग ने 42 साल कोमा में गुजारा और उसी अवस्था में बुजुर्ग हुईं और आज उनकी मौत हो गयी. वे कर्नाटक के हल्दीपुर की रहने वाली थीं. उन्होंने 1973 में जूनियर नर्स के रूप में किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पीटल में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 18, 2015 4:13 PM
मुंबई : नौकरी की तत्परता की वजह से हजार सपने संजोये युवा नर्स रहीं अरुणा शानबाग ने 42 साल कोमा में गुजारा और उसी अवस्था में बुजुर्ग हुईं और आज उनकी मौत हो गयी. वे कर्नाटक के हल्दीपुर की रहने वाली थीं. उन्होंने 1973 में जूनियर नर्स के रूप में किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पीटल में नर्स की नौकरी ज्वाइन की थी. अब केइएम अस्पताल के डीन अविनाश सुपे द्वारा उनके शव को परिवार वालों को सौंपने के एलान के बाद विवाद उठ खडा हुआ है. अस्पताल की नर्सों का कहना है कि वे कभी उनकी सुध लेने नहीं आये, तो भला उनका शव उन्हें कैसे सौंप सकते हैं. वे काम का विरोध करने के लिए अस्पताल से बाहर भी आ गयीं.
चार दशक पहले उन्होंने मुंबई के केइएम अस्पताल में प्रशिक्षु नर्स के रूप में काम शुरू किया था. दरअसल, बचपन से ही उनके अंदर रोगियों की सेवा की गहरी लालसा थी. पर, नर्स बनने के बाद वे अपने इस लालसा को ज्यादा दिनों तक साकार नहीं कर पायीं. अरुणा अस्पताल में डॉग रिसर्च लेबोरेटरी में काम करती थीं. अपनी ड्यूटी के दौरान उन्होंने देखा कि सोहनलाल वाल्मिकी नाम का एक वार्ड ब्वॉय कुत्तों के लिए लाये जाने वाले मटन की चोरी करता है. आरंभिक कहासुनी के बाद उन्होंने अस्पताल प्रशासन से इसकी शिकायत की थी, जिसके बाद सोहनलाल ने उन पर वहशियाना हमला किया. कुत्ते की चेन से गला घोंटने और फिर रेप करने की कोशिश सोहनलाल ने उनसे की थी. इस दौरान दिमाग में आक्सिजन नहीं पहुंच पाने के कारण उनका पूरा शरीर ने काम करना बंद कर दिया.
इसके बाद सोहनलाल को सात साल की सजा हुई थी. और, अरुणा जिस अस्पताल में सेवा करने के लिए आयीं थीं, वहीं वह रोगी बन गयीं. केइएम अस्पताल में 42 साल से नर्सें उनकी सेवा कर रही थीं. उनकी दोस्त पिंकी वीरानी ने उनके लिए सुप्रीम कोर्ट से इच्छा मृत्यु की भी मांग की थी, पर इसे खारिज कर दिया गया था.

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