आखिर क्यों नहीं रूकती हैं बलात्कार की घटनाएं?

अरुणा शानबाग का आज निधन हो गया. हालांकि वह पिछले 42 वर्षों से कोमा में थीं, इसलिए यह कहा जाना चाहिए कि आज उनकी सांसें थम गयीं, निधन तो उनका 1973 में ही हो गया था. जिस वक्त अरुणा कोमा में गयीं, उस दिन एक दरिंदे ने उनके गले में जंजीर बांधकर उनका यौन शोषण […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 18, 2015 4:44 PM

अरुणा शानबाग का आज निधन हो गया. हालांकि वह पिछले 42 वर्षों से कोमा में थीं, इसलिए यह कहा जाना चाहिए कि आज उनकी सांसें थम गयीं, निधन तो उनका 1973 में ही हो गया था. जिस वक्त अरुणा कोमा में गयीं, उस दिन एक दरिंदे ने उनके गले में जंजीर बांधकर उनका यौन शोषण किया था, जिससे उनके मस्तिष्क में ऑक्सीजन पहुंचना बंद हो गया और वह कोमा में चली गयीं. हालांकि यौन शोषण के आरोपी सोहनलाल को सजा हुई, लेकिन यौन शोषण के मामले में नहीं बल्कि लूटपाट और डकैती के मामले में. अरुणा शानबाग के कोमा में जाने के बाद इस मामले की चर्चा बहुत हुई, लेकिन देश में बलात्कार की निर्मम घटनाएं नहीं रूकीं. अरुणा के लिए वर्ष 2011 में इच्छा मृत्यु की मागं करते हुए कोर्ट में याचिका दायर की गयी थी, लेकिन कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया था. 42 वर्षों तक अपने वजूद से अनजान रहने वाली अरुणा का आज देहांत तो हो गया, लेकिन अरुणा की जिंदगी ने हमारे समाज के सामने कई सवाल खड़े किये हैं, जिनका उत्तर हम आज भी नहीं तलाश पाये हैं.आज भी हमारे समाज में बलात्कार की घटनाएं आम हैं. आये दिन अखबार ऐसे समाचारों से अटे रहते हैं कि बलात्कार के बाद लड़की की हत्या कर दी गयी. अरुणा शानबाग की तरह देश में कई और भी बलात्कार के मामले हुए जिसने समाज को कलंकित किया और सरकार को भी यह सोचने पर विवश किया कि आखिर लड़कियों को कैसे सुरक्षा दी जाये. कुछ ऐसी ही घटनाएं हैं:-

मथुरा बलात्कार कांड: 26 मार्च 1972 को महाराष्ट्र के चंदरपुर जिले में एक 14 वर्षीय लड़की मथुरा के साथ पुलिस हिरासत में बलात्कार किया गया था. लेकिन जब इसकी शिकायत की गयी, तो निचली अदालत में यह साबित कर दिया गया था कि मथुरा शारीरिक संबंधों की आदी थी, इसलिए दोनों पुलिस कांस्टेबल आसानी से छूट गये, क्योंकि कोर्ट में शारीरिक संबंध की बात तो साबित हुई थी, लेकिन बलात्कार की नहीं. लेकिन फिर मामला बढ़ा और इस दलित आदिवासी लड़की को न्याय दिलाया गया. कई महिला संठगन सामने आये और इस घटना ने महिला सुरक्षा पर नयी बहस छेड़ दी और बलात्कार के मामलों में सजा के लिए कानून में संशोधन किया गया. आपराधिक कानून में दूसरा संशोधन हुआ, जिसे एक्ट 1983(नंबर.46) के नाम से जाना जाता है.
निर्भया कांड : 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली केमुनरिका (साउथ दिल्ली) इलाके में एक चलती बस में एक 23 वर्षीय लड़की के साथ बस में सामूहिक बलात्कार किया गया और मारपीट की गयी. यह घटना तब घटी जब उक्त लड़की रात के नौ बजे अपने दोस्त के साथ अपने घर वापस जा रही थी. इस घटना में लड़की के साथ इतनी दरिंदगी की गयी थी कि उसकी आंत शरीर से बाहर आ गयी थी और घटना के लगभग 15 दिन बाद लड़की की मौत हो गयी. इस घटना के बाद पूरे देश में आंदोलन छिड़ गया था और लोगों ने महिला सुरक्षा को लेकर काफी चिंता जतायी थी, जिसके बाद सरकार ने जस्टिस वर्मा कमीशन का गठन किया और महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई कड़े कानून बनाये. लेकिन आज भी हमारे समाज में बलात्कार की घटनाएं बदस्तूर जारी हैं.
आखिर क्यों नहीं रूकती हैं बलात्कार की घटनाएं
सरकारें महिलाओं को सुरक्षा मुहैया कराने के नाम पर कड़े कानून तो बनाती हैं, लेकिन देश में बलात्कार की घटनाएं नहीं रूकती हैआखिर क्यों? यह सवाल पूरे समाज के समाने आज भी अनुत्तरित है. इसलिए कि समाज महिलाओं के प्रति अपना रवैया आज भी बदल नहीं पाया है. क्षणिक सुख के लिए कोई व्यक्ति यह जानने में रुचि नहीं रखता है कि जिस लड़की या महिला के साथ वह शारीरिक संबंध बनाना चाहता है, वह उसके लिए राजी है भी या नहीं. लड़की की मरजी वह भी शारीरिक संबंधों में जानने की गलती हमारा समाज नहीं करता है. बस इसी सोच के कारण हमारे समाज में बलात्कार की घटनाएं नहीं रूकती हैं. जिस समाज के लिए महिलाएं मात्र भोग्या हों, उस समाज में बलात्कार की घटनाएं तब तक नहीं रूकेंगी, जब तक हम अपने सोच में बदलाव नहीं लायेंगे.

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