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आडवाणी के विरोध के बावजूद मोदी बने भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार

नयी दिल्ली : भाजपा ने अपने वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के कड़े विरोध के बावजूद गुजरात के मुख्यमंत्री और हिंदुत्व के कट्टर समर्थक नरेन्द्र मोदी को आज आगामी लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया. पार्टी की यहां हुई संसदीय दल की बैठक के बाद भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह […]

नयी दिल्ली : भाजपा ने अपने वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के कड़े विरोध के बावजूद गुजरात के मुख्यमंत्री और हिंदुत्व के कट्टर समर्थक नरेन्द्र मोदी को आज आगामी लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया.

पार्टी की यहां हुई संसदीय दल की बैठक के बाद भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने यह घोषणा की हालांकि लाख प्रयासों के बाद भी आडवाणी इस बैठक में नहीं आये. बैठक में अस्वस्थता के चलते पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और नाराज आडवाणी के अलावा सुषमा स्वराज, मुरली मनोहर जोशी, अरुण जेटली, नितिन गडकरी, वेंकैया नायडु और अनंत कुमार सहित 12 सदस्यीय संसदीय बोर्ड के सभी सदस्य मौजूद थे.

प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद मोदी ने संवादाताओं से बातचीत में कहा, ‘‘भाजपा को मैं विश्वास दिलाता हूं कि 2013-14 के लोकसभा चुनाव में पार्टी विजयी हो, उसके लिए मैं कोई परिश्रम और कोई कमी उठा नहीं रखूंगा.’’ उन्होंने यह आशवासन भी दिया कि वह ‘‘ सामान्य मानवीय आकांक्षाओं’’ पर भी खरे उतरेंगे.

भाजपा के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रुप में मोदी के नाम की घोषणा पार्टी में बहुत ही खटास भरे माहौल के बीच हुई. एक ओर मोदी के नाम की घोषणा हुई तो दूसरी ओर आडवाणी का राजनाथ सिंह के नाम आज ही लिखा पत्र सामने आया जिसमें वरिष्ठ नेता ने इस फैसले के संदर्भ में पार्टी के तौर तरीकों पर अपनी पीड़ा का इजहार किया.

आडवाणी ने मोदी का नाम लिए बिना पत्र में इस महत्वपूर्ण बैठक में नहीं आने के संबंध में कहा कि आज दोपहर‘‘मैंने आपसे कहा था कि मैं विचार करुंगा कि मुझे अपनी बात संसदीय बोर्ड के सदस्यों के सामने रखनी है या नहीं. अब मैंने फैसला किया है कि यह बेहतर होगा कि मैं आज की बैठक में हिस्सा नहीं लूं.’’बोर्ड की बैठक के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री सहित बोर्ड के सभी सदस्यों के साथ मीडिया के समक्ष मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के समय लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज बुझी-बुझी नजर आ रही थीं.

गौरतलब है कि आडवाणी के साथ वह भी मोदी को अभी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के खिलाफ थीं. बहरहाल,अगले मंगलवार को63साल के होने जा रहे मोदी अपनी ताजपोशी के बाद आडवाणी से मिलने उनके निवास पर गए.

मोदी ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने पर पार्टी का आभार प्रकट करते हुए‘‘नई सोच,नई उम्मीद’’का नारा दिया और कहा कि वह2013-14के चुनाव में‘‘संप्रग के भ्रष्टाचार और मंहगाई’’के खिलाफ‘‘भाजपा के सुराज और विकास’’के लिए जनता का पूरा समर्थन पाएंगे. उन्होंने कहा कि राजग के सहयोगी दलों के नेताओं ने भाजपा का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने पर उन्हें बधाई दी है.

संवाददाता सम्मेलन में पार्टी कार्यकर्ताओं की ओर से बजाए गए शंख और घंटों की ध्वनि के बीच मोदी ने कहा,‘‘मैं सामान्य मानवीय आकांक्षाओं और कार्यकर्ताओं की उम्मीदों पर खरा उतरुं,इसका प्रयास करुंगा.’’ उन्होंने कहा,‘‘मैं देशवासियों से भी आर्शीवाद चाहता हूं कि देश इस समय जिस संकट की घड़ी से गुजर रहा है उससे निकालने का मुझे सामथ्र्य दे.’’

भाजपा मुख्यालय और उसके आस-पास बहुत दिनों बाद कार्यकर्ताओं के जबरदस्त जोश-ओ-खरोश,पटाखों के धमाकों और गाजे-बाजे की धुन से बने उत्सव के माहौल के बीच मोदी ने कहा,‘‘पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने आज मुझ जैसे सामान्य परिवार और छोटे कस्बे से आए एक कार्यकर्ता को बहुत बड़ा कार्य और दायित्व दिया है. ..परमात्मा ने जितनासामर्थ्‍यऔर शक्ति मुझे दी है,मैं उसका उपयोग भाजपा के विस्तार और देश की सेवा के लिए करुंगा.

* मोदी ने एक पग में नापी अहमदाबाद से दिल्ली की दूरी

देश की राजनीति में मात्र 12 बरस में प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के कट्टर हिंदुवादी चेहरे के तौर पर उभरे नरेन्द्र मोदी को उनके आलोचक भले ही विभाजनकारी मानते हों, लेकिन 2002 के गोधरा दंगों से दागदार गुजरात के इस तेजतर्रार नेता ने एक पग में दिल्ली की दूरी नाप ली है और भाजपा ने उन्हें आने वाले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर क्षेत्रीय रंगमंच से सीधे राष्ट्रीय भूमिका में ला खड़ा किया है.

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व प्रचारक नरेन्द्र मोदी 17 सितंबर को 63 बरस के होने जा रहे हैं और पार्टी के भीतर के भारी विरोध और अन्य तमाम दुष्वारियों के बावजूद आज वह 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने में कामयाब रहे.

यह मोदी के मजबूत व्यक्तित्व का ही कमाल है कि उनके बारे में कहा जाता है कि आप उन्हें पसंद कर सकते हैं या नापसंद कर सकते है, लेकिन नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं. आरएसएस के समर्थन से मोदी को अपना उम्मीदवार घोषित करके भाजपा ने अपने वयोवृद्ध नेता और लंबे समय से इस शीर्ष पद पर पहुंचने का सपना संजोने वाले लाल कृष्ण आडवाणी की अनदेखी की है. एक समय मोदी के संरक्षक रहे आडवाणी ने गुजरात के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश किए जाने का विरोध किया था, लेकिन उनके विरोध पर ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई.

भाजपा ने इस एहसास के बावजूद मोदी को अगले लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी के चेहरे के तौर पर पेश किया कि अगर चुनाव के बाद जरुरत पड़ी तो पार्टी को ज्यादा सहयोगी नहीं मिल पाएंगे.

इस बात को ज्यादा वक्त नहीं गुजरा जब मोदी की उड़ान सिर्फ गुजरात तक ही सीमित थी। अक्तूबर 2001 में उन्हें केशूभाई पटेल के स्थान पर गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया और उसके बाद 2002 के गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों ने उन्हें एक विवादित नेता बना दिया. 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस में आग की घटना में 59 कार सेवकों की मौत के बाद राज्य में दंगे भड़क उठे थे. मोदी पर आरोप लगा कि हिंसक घटनाओं पर काबू पाने के लिए उन्होंने मुनासिब कदम नहीं उठाए. दंगों में तकरीबन 1000 लोगों की जान गई, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम थे.

तत्कालीन मुख्यमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें ‘‘राजधर्म’’ की याद दिलाई, लेकिन एल के आडवाणी और स्वर्गीय प्रमोद महाजन ने मोदी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिकाए रखने के लिए पैरवी की.

गुजरात दंगों का दाग अभी मोदी के दामन से धुला नहीं है. उनके आलोचक उन्हें ‘‘ध्रुवीकरण करने वाला’’ और ‘‘विघटनकारी’’ हिंदुवादी कट्टरपंथी बताते हैं, जिनकी रहनुमाई में मुस्लिम सुरक्षित नहीं होंगे. मोदी कथित फर्जी मुठभेड़ों के कारण भी विरोधियों के निशाने पर रहे हैं और उनके करीबी साथी अमित शाह पर भी इनमें से कुछ घटनाओं की छाया पड़ी.

इन तमाम मुश्किलों के बावजूद मोदी लगातार मजबूत होते रहे और गुजरात में भाजपा को लगातार तीन चुनाव में विजयी बनाकर कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया. इस उपलब्धि के दम पर मोदी ने आडवाणी सहित भाजपा के अधिकांश नेताओं के दिल में अपना नाम अगले लोकसभा चुनाव में पार्टी के चेहरे के तौर पर लिख दिया.

कुछ लोग मोदी को भाजपा की मजबूरी कहते हैं लेकिन पार्टी और उसकी संरक्षक आरएसएस का मानना है कि भगवा पार्टी में वह ऐसे एकमात्र नेता हैं जो लोकसभा चुनाव में संप्रग को तगड़ी टक्कर दे सकते हैं.

कट्टरपंथी की छवि के साथ ही मोदी को बहुत से लोग, जिनमें व्यापारिक नेता भी शामिल हैं, एक ऐसे मुख्यमंत्री के तौर पर देखते हैं, जिसने गुजरात को विकास का रास्ता दिखाया.

उनके समर्थकों का तर्क है कि वह निर्णायक नेता है जो संप्रग के खिलाफ मुकाबले में उपयोगी होंगे क्योंकि मौजूदा गठबंधन सरकार को इसके विरोधी एक अनिर्णायक व्यवस्था मानते है. जिसने देश को आर्थिक संकट में धकेल दिया.

इसके साथ ही मोदी के आलोचक उन्हें एक तानाशाह शख्सियत मानते हैं, जो मुखालफत बर्दाश्त नहीं करता और किसी अन्य नेता को आगे बढ़ते नहीं देख सकता. मोदी को भाजपा का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की भूमिका इस वर्ष जून में गोवा में बनाई गई थी, जब उन्हें पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख बनाया गया.

आडवाणी के कड़े विरोध के बावजूद यह फैसला किया गया और इसका नतीजा यह हुआ कि आडवाणी ने पार्टी के तमाम ओहदों से इस्तीफा दे दिया. बाद में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हस्तक्षेप पर उन्होंने अपने कदम वापस खींच लिए.

मोदी को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाए जाने का एक और असर बिहार में देखने को मिला, जब जदयू ने अपने मुस्लिम वोट बचाने के लिए भाजपा से अपना 17 वर्ष पुराने रिश्तों से किनारा कर लिया.

मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की अटकलें तो पिछले वर्ष दिसंबर में लगने लगी थीं, जब उनकी रहनुमाई में पार्टी ने गुजरात में लगातार तीसरी बार विधानसभा चुनाव में जीत का सेहरा बांधा.

यह चुनाव मोदी के लिए कुछ अलग ही मायने रखते थे, क्योंकि यह पहला मौका था, जब उनके पूर्ववर्ती केशूभाई पटेल ने भाजपा से अलग होकर राज्य को आपातकाल जैसे हालातसे निजात दिलाने के लिए गुजरात परिवर्तन पार्टी के नाम से नई पार्टी बनायी. याद रहे कि मोदी को 2001 में केशूभाई पटेल को हटाकर ही गुजरात के मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी गई थी.

दो धुरंधरों के रास्ते अलग होने के बाद 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव मोदी के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं थे. अल्पसंख्यकों को रिझाने के लिए और उनसे दूरियां कम करने के लिए मोदी ने राज्यभर में सद्भावना उपवास किए.

इसके साथ ही उन्होंने हिंदुत्व खेमे को भी अपने मोहपाश में बांधे रखने की कोशिश के तहत एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को विधानसभा चुनाव में पार्टी का टिकट नहीं दिया. मोदी ने स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती पर उन्हें अपना आदर्श मानते हुए पूरे राज्य में यात्राओं का आयोजन किया और हर वर्ग के मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया.

उसके बाद आरएसएस के इस प्रचारक के लिए दिल्ली तक का रास्ता बना लेना आसान होता चला गया. सदा से भाजपा के वफादार रहे मोदी ने गुजरात में पार्टी के आयोजन सचिव के रुप में शुरुआत करने के बाद दिल्ली में इसके मुख्यालय पर अपना परचम लहरा दिया.

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