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नरेंद्र मोदी सरकार की पहली वर्षगांठ : जानिए कैसे हैं सरकार की रीढ बने तीन शख्स राजनाथ, जेटली व सुषमा से पीएम के रिश्ते
इंटरनेट डेस्क नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की पहली पूर्ण बहुमत वाली सरकार ने आज अपना एक साल पूरा कर लिया है. भाजपा की यह मजबूत सरकार चार मजबूत पीलर पर टिकी है. सरकार रूपी इस इमारत के सबसे अहम पीलर हैं, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. उनके साथ यह सरकार […]
इंटरनेट डेस्क
नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की पहली पूर्ण बहुमत वाली सरकार ने आज अपना एक साल पूरा कर लिया है. भाजपा की यह मजबूत सरकार चार मजबूत पीलर पर टिकी है. सरकार रूपी इस इमारत के सबसे अहम पीलर हैं, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. उनके साथ यह सरकार जिन मजबूत पीलरों पर टिकी है, उनमें गृहमंत्री राजनाथ सिंह, वित्तमंत्री अरुण जेटली व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज शामिल हैं.
अटल-आडवाणी-जोशी जैसी ही है मोदी-राजनाथ-जेटली-सुषमा की टीम
जैसे एक जमाने में भाजपा के शीर्ष नेताओं में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी व डॉ मुरली मनोहर जोशी शामिल थे. वैसे ही आज भाजपा के शीर्ष नेताओं में मोदी, राजनाथ, जेटली व सुषमा शामिल हैं. इन तीनों नेताओं की अटल, आडवाणी व जोशी जैसी ही अपनी-अपनी महत्वकांक्षा रही है और इनके बीच वर्चस्व का टकराव भी रहा है. बावजूद इसके यह मानना होगा कि कम से पिछले डेढ साल से ये सब उसी तरह टीम भावना से काम कर रहे हैं, जिस तरह अटल, आडवाणी व जोशी वर्षों तक करते रहे. हालांकि इनमें सुषमा ने कुछ बिंंदुओं पर मौन असहमति जरूर प्रकट की. इन नेताओं में मतभेद से उपर उठ जाने का परिणाम लोकसभा चुनाव में शानदार विजय के रूप में दिखी.
नरेंद्र मोदी व राजनाथ सिंह के रिश्ते
नरेंद्र मोदी भाजपा के निर्विवाद रूप से आज सर्वोच्च नेता हैं. दूसरी व तीसरी पांत के नेताओं को छोड दें, राजनाथ, जेटली व सुषमा भी उनकी सर्वोच्चता को सहज स्वीकार करते हैं. नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह के रिश्ते हमेशा राजनीतिक रिपोर्टरों के लिए एक चटखारेदार खबर लिखने का मौका मुहैया कराते रहे हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं है. बल्कि यह कहें कि पिछले दो सालों से ऐसा नहीं है. जब राजनाथ सिंह भाजपा के अध्यक्ष थे, तो उन्होंने नरेंद्र मोदी को संसदीय बोर्ड से बाहर का रिश्ता दिखा दिया था और मीडिया के हमेशा से प्रिय रहे अरुण जेटली की मुख्य प्रवक्ता पद से छुट्टी कर दी थी. पर, राजनाथ सिंह ने ही भाजपा अध्यक्ष के रूप में नरेंद्र मोदी को चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनवाया और फिर प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करवाया. राजनाथ ने यह काम लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी व सुषमा स्वराज के कडे विरोध के बावजूद किया. राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री बनने के लिए मोदी का नाम कुछ उसी तरह आगे बढाया, जैसे कभी आडवााणी ने वाजपेयी का बढाया था.
भाजपा के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इन चारों नेताओं में राजनाथ पर ही सबसे ज्यादा भरोसा करता है. राजनाथ के संघ के शीर्ष नेताओं से हमेशा मधुर रिश्ते रहे हैं और राजनाथ जब उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब यूपी में सक्रिय कई वरिष्ठ प्रचारक आज संघ परिवार के शीर्ष नेतृत्व में शुमार हैं. राजनाथ के लिए यह समीकरण भी लाभदायक रहा है. मीडिया की तमाम खबरों के बावजूद यह बहुत स्पष्ट है कि न तो नरेंद्र मोदी और न ही उनके सिपहसलार अमित शाह, राजनाथ सिंह को नजरअंदाज कर सकते हैं. नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह के बीच नये सिरे से बने संबंधों की गहराई का आकलन एक अंगरेजी दैनिक की इस रिपोर्ट से कर सकते हैं कि नरेंद्र मोदी ने नृपेंद्र मिश्रा को अपना प्रधान सचिव राजनाथ सिंह की सलाह पर ही बनाया था. नृपेंद्र मिश्र ने उत्तरप्रदेश में राजनाथ के साथ काम किया था. मालूम हो कि नृपेंद्र मिश्रा की नियुक्ति के लिए सरकार को संसद में कानून बनाना पडा था.
नरेंद्र मोदी व अरुण जेटली के रिश्ते
नरेंद्र मोदी ने सचिव व महासचिव के रूप में दिल्ली में कई साल बिताये हैं. बावजूद उसके वे हमेशा से खुद को दिल्ली की राजनीति के लिए खुद को आउटसाइडर बताते रहे हैं. बाद के सालों में वे लंबे समय तक मुख्यमंत्री के रूप में गांधीनगर व अहमदाबाद में डटे रहे. नि:संदेह इस कारण दिल्ली से कुछ दूरी बनी होगी. ऐसी परिस्थिति में अरुण जेटली ही नरेंद्र मोदी के दिल्ली में सबसे भरोसेमंद मित्र, सलाहकार व मार्गदर्शक थे. नरेंद्र मोदी के बुरे से बुरे समय में भी जेटली हमेशा उनके पीछे मजबूती से खडे रहे. जेटली ने एक निजी मित्र और राजनीतिक सहयात्री के रूप में नरेंद्र मोदी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को कभी कम नहीं होने दिया. मोदी के तमाम कानूनी मामलों को अरुण जेटली देखते रहे. बहुत सारे विश्लेषक जेटली की इस निष्ठा को उनके राजनीतिक निवेश की संज्ञा देते हैं. मोदी के सलाहकार अमित शाह के जब गुजरात में घुसने पर अदालत ने रोक लगा दी तो उन्होंने अरुण जेटली के घर पर शरण ली. नरेंद्र मोदी व अमित शाह की जोडी जब अहमदाबाद से चल कर दिल्ली आयी, तो अरुण जेटली के तमाम लोग इनके साथ काम करने के लिए खडे हो गये. दिल्ली में भाजपा मुख्यालय 11 अशोका रोड व अन्य जगहों पर कायम अरुण जेटली का वर्चस्व सहज ही मोदी व शाह के वर्चस्व में रूपांतरित हो गया. राजनाथ सिंह जब क्रमिक रूप से नरेंद्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री के रूप में आगे बढा रहे थे, तब कद्दावर पार्टी नेताओं में अरुण जेटली ही सबसे अहम शख्स थे, जो राजनाथ के इस कदम के समर्थन में आये.
नरेंद्र मोदी व सुषमा स्वराज का संबंध
सुषमा स्वराज पार्टी की वरिष्ठ नेता रही हैं. वे दूसरी पीढी के नेताओं में लालकृष्ण आडवाणी की सर्वाधिक प्रिय रही हैं और आडवाणी ने हमेशा मुक्त कंठ ने उनकी योग्यता, वक्तृत्व कौशल व क्षमता की प्रशंसा की है. सुषमा ने भी हमेशा आडवाणी के नेतृत्व में आस्था जतायी और उनका बॉडी लैंग्वेज हमेशा यह बताता रहा कि वह मोदी, राजनाथ व जेटली को अपनी बराबरी या आसपास के स्तर का नेता मानती हैं. सुषमा लोकसभा में पार्टी की नेता रह चुकी हैं और खुद को प्रधानमंत्री का दावेदार भी मानती रही हैं. लोकसभा चुनाव में मोदी को पीएम उम्मीदवार घोषित किये जाने पर उन्होंने एक तरह का मौन साध लिया और खुद को सीमित कर लिया. बावजूद इसके नरेंद्र मोदी ने कभी उनकी उपेक्षा व अनादर नहीं किया. जीत के बाद उन्होंने संकेत दे दिया कि उनकी सरकार में सुषमा की भूमिका अहम होगी. मोदी सुषमा के संसदीय भाषणों के हमेशा से प्रशंसक रहे हैं. सुषमा अपने कामकाज में काफी कुशल हैं. उनकी क्षमता व योग्यता पर विरोधी भी उंगली नहीं उठा पाते हैं.
लुटियन से संचालित होने वाली सरकार व वहां की सत्ता समीकरण पर बारीक नजर रखने वाले जानते हैं कि देश की सरकार साउथ ब्लॉक और नॉर्थ ब्लॉक में बैठने वाले लोग ही चलाते हैं और यह दिलचस्प संयोग है कि यही चारों नेता लुटियन के रायसीना हिल पर स्थित साउथ ब्लॉक व नॉर्थ ब्लॉक में बैठते हैं और मतभेदों-महत्वाकांक्षाओं से उपर उठ सत्ता का संचालन कर रहे हैं.
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