नयी दिल्ली : विवादास्पद भूमि अध्यादेश को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की सहमति के साथ आज तीसरी बार जारी किया गया. विपक्ष इसका विरोध जारी रखे हुए है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कल हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस अध्यादेश को फिर जारी करने का फैसला किया गया था. बैठक में कहा गया था कि निरंतरता बनाए रखने और जिन लोगों की भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है, उनको मुआवजा प्रदान करने का ढांचा उपलब्ध कराने के लिए यह अध्यदेश पुन जारी करना जरुरी है.
अब इस अध्यादेश को संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा. संसद का सत्र शुरु होने के छह सप्ताह के भीतर यदि इसे कानून में नहीं बदला जा सका, तो यह अध्यादेश समाप्त हो जाएगा. आधिकारिक सूत्रों ने आज कहा कि राष्ट्रपति ने इस अध्यादेश को फिर जारी करने की अनुमति दे दी है. यह अध्यादेश तीसरी बार जारी किया गया है. पिछले साल मई में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के सत्ता में आने के बाद यह 13वां सरकारी आदेश जारी किया गया है.
सरकार ने यह कदम कांग्रेस के विरोध के बीच उठाया है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की किसानों की जमीन छीनने के लिए की जाने वाले आश्चर्यजनक जल्दबाजी करार दिया है. राहुल आक्रामक तरीके से भूमि विधेयक का विरोध कर रहे हैं. कैबिनेट द्वारा अध्यादेश को नए सिरे से जारी करने के फैसले के बाद राहुल ने ट्विट किया, कांग्रेस पार्टी किसानों और मजूदरों के अधिकारों के लिए सूटबूट की सरकार के खिलाफ लडाई जारी रखेगी. वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि मोदी सरकार ने यह कदम उठाकर संसद का अपमान किया है क्योंकि संयुक्त संसदीय समिति पहले ही भूमि विधेयक के मामले को देख रही है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सरकार को आडे हाथ लेते हुए कहा कि वह किसानों का हक छीनना चाहती है. पिछले साल दिसंबर में भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार, पुनर्वास और पुनर्स्थापना कानून, 2013 में संशोधन के लिए पहली बार यह अध्यादेश जारी किया गया था. इस अध्यादेश को विधेयक से बदला गया था. लोकसभा ने इसे 10 आधिकारिक संशोधनों के साथ पारित कर दिया है, लेकिन सरकार राज्यसभा में संख्याबल की कमी की वजह से पारित नहीं करा सकी है.
इस साल मार्च में अध्यादेश फिर जारी किया गया. यह 3 जून को समाप्त हो रहा है. संशोधित भूमि अधिग्रहण कानून संसद की संयुक्त समिति के समक्ष विचाराधीन है. सूत्रों ने कहा कि नया अध्यादेश समिति के समक्ष लंबित विधेयक की ही प्रति है और इसमें कोई नया प्रावधान या बदलाव नहीं हैं. संसद की संयुक्त समिति की कल हुई पहली बैठक में कई विपक्षी सदस्यों ने सरकार के 2013 के कानून में बदलाव के पीछे के तर्क पर सवाल उठाए.
जहां 2013 के कानून में निजी परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रण के मामलों में 80 प्रतिशत भू स्वामियों की मंजूरी जरुरी है वहीं सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) परियोजनाओं के लिए 70 प्रतिशत भू स्वामियों की मंजूरी जरुरी है.
मौजूदा विधेयक में पांच श्रेणियों को भूमि का स्वामित्व सरकार के पास रहने की स्थिति में कानून के इन प्रावधानों से छूट देने का प्रस्तव है. इनमें रक्षा, ग्रामीण बुनियादी ढांचा, सस्ते मकान, औद्योगिक गलियारे और बुनियादी ढांचा (पीपीपी परियोजनाओं सहित) शामिल हैं. 2013 के कानून में प्रभावित परिवारों की पहचान के लिए सामाजिक प्रभाव के आकलन की व्यवस्था थी. विधेयक में इस प्रावधान को हटा दिया गया है.