जानिए, क्यों हुई मैगी इतनी जहरीली, क्या अमिताभ, माधुरी और प्रीटी जिंटा हैं वाकई दोषी!

– मुकुंद हरि – देश में एक सर्वाधिक चर्चित नूडल ब्रांड ‘मैगी’ की गुणवत्ता को लेकर बवाल मचा हुआ है. कई राज्यों में नेस्ले जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा बनाये जा रहे इस नूडल उत्पाद के नमूने इकट्ठे किये गए हैं. कई नमूनों में मैगी के नूडल में सीमा से 17 गुणा ज्यादा सीसा (लेड) और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 1, 2015 5:15 PM
– मुकुंद हरि –
देश में एक सर्वाधिक चर्चित नूडल ब्रांड ‘मैगी’ की गुणवत्ता को लेकर बवाल मचा हुआ है. कई राज्यों में नेस्ले जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा बनाये जा रहे इस नूडल उत्पाद के नमूने इकट्ठे किये गए हैं. कई नमूनों में मैगी के नूडल में सीमा से 17 गुणा ज्यादा सीसा (लेड) और मोनो सोडियम ग्लूटामेट (एमएसजी) पाया गया है. ये एमएसजी वही तत्व है जिसे हम और आप आम बोलचाल की भाषा में ‘अजीनोमोटो’ कहते हैं.
आखिर सीसा कैसे करता है हमारी सेहत पर असर !
सीसा अत्यंत जहरीला धातु माना जाता है, जिसकी वजह से कैंसर, मस्तिष्क रोग, मिर्गी, किडनी की बीमारी और ज्यादा मात्रा में शरीर में जाने पर मौत तक हो सकती है. छोटे बच्चों के मामले में खाद्य पदार्थों में सीसे के प्रभाव से दिमागी विकास पर स्थायी नुकसान पहुंचता है, जो ठीक नहीं हो सकता. इसके अलावा वयस्कों के लिए भी सीसा ऐसा ही नुकसान पहुंचता है. सीसे की अधिक मात्रा होने की वजह से ही अमेरिका और यूरोप के देशों ने अपने यहां चीन से आने वाले खिलौनों पर रोक लगायी थी. आपको बता दें कि सीसा खिलौनों को रंगने वाले पेंट और प्लास्टिक में भी मिलाया जाता है. इसके अलावा आपके घरों को रंगने में उपयोग किये जाने वाले डिस्टेम्पर, प्लास्टिक पेंट और दरवाजों-खिड़कियों को रंगने वाले एनामल पेंट में भी सीसा मिलाया जाता है. सीसे के खतरे को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जागरुकता की वजह से ही अब कई कम्पनियां सीसा रहित पेंट बनाने लगी हैं.
क्या है एमएसजी और इसके नुकसान !
जहां तक बात एमएसजी यानी अजीनोमोटो की है तो ये एक ऐसा पदार्थ है, जिसे पहले समुद्री शैवाल से बनाया जाता था लेकिन अब इसे प्रयोगशाला में कई तत्वों के किण्वन से तैयार किया जाता है. इसको लेकर भी लम्बे समय से विवाद चला आ रहा है. चायनीज डिशों में इसका उपयोग बहुत पहले से होता रहा है लेकिन अमेरिकन एफडीए ने इसके उपयोग को लेकर चेतावनी जारी कर रखी है. अजीनोमोटो के उपयोग से सरदर्द, पसीना आना, चेहरे की मांसपेशियों पर तनाव, चेहरे, गर्दन और शरीर के अन्य हिस्सों में सूनापन, सिहरन या जलन का अनुभव हो सकता है. इसके अलावा भोजन के जरिये शरीर में जाने पर इसकी वजह से दिल की धडकनों में असामान्यता और छाती में दर्द, उलटी और कमजोरी हो सकती है. इसके अलावा कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि एमएसजी की वजह से भी स्नायु और मस्तिष्क सम्बन्धी परेशानियां हो सकती हैं.
ऐसे उत्पादों के प्रचार के लिए ब्रांड अम्बेसडर कितने जिम्मेदार !
अब सवाल उठता है कि जब मैगी जैसे भरोसेमंद उत्पाद में नेस्ले कंपनी की तरफ से देश के नागरिकों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करके सीसा और अजीनोमोटो जैसे खतरनाक पदार्थ इतनी ज्यादा मात्रा में मिलाये गए हैं तो आखिर इसकी जिम्मेदारी किस-किसकी बनती है. क्या सिर्फ इन उत्पादों का प्रचार करने वाले ब्रांड अम्बेसडर ही इसके लिए जिम्मेदार हैं !
खबर है कि मैगी में मिलावट के सामने आने के बाद मैगी का प्रचार करने वाले तीन ब्रांड अम्बेसडर (पूर्व और वर्तमान) अमिताभ बच्चन, माधुरी दीक्षित और प्रीटी जिंटा के ऊपर बाराबंकी, मुजफ्फरपुर जैसे शहरों में उपभोक्ताओं के विश्वास को ठेस लगाने के आरोप में मुकदमे दर्ज कराये गए हैं. आरोप लगाने वालों का कहना है कि इन बड़े और विश्वसनीय चेहरे वाले लोगों ने इस उत्पाद का प्रचार किया था, इसलिए आम जनता ने इस उत्पाद पर भरोसा करते हुए इसका उपयोग किया. चूंकि, इनके प्रचार किये उत्पाद में गड़बड़ी मिली है तो इसके लिए इन्हें जिम्मेदार मानते हुए इसके ऊपर कानूनी कारवाई की जानी चाहिए और इन्हें जेल भेजा जाना चाहिए.
ये बात सच है कि हमारे समाज के बड़े चेहरों को कम्पनियां अपना उत्पाद बेचने के लिए ब्रांड अम्बेसडर बनाकर जनता में अपने उत्पाद की विश्वसनीयता स्थापित करना चाहती हैं और ये लोग चाहे फिल्मी सितारे हों या खिलाड़ी, बड़ी कीमत में किये जाने वाले इन अनुबंधों के लालच में आकर, प्रचार के लिए बढ़ावा देने से पहले उन उत्पादों की गुणवत्ता के बारे में जानकारी नहीं लेते. लेकिन ये भी सच है कि हाल के दिनों में प्रचार की सामग्री को लेकर ब्रांड अम्बेसडरों में जागरूकता बढ़ी है और आमिर खान, अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार जैसे बड़े नाम वाले चेहरों ने कई प्रस्ताव ठुकराए भी हैं.
पिछले साल ही बॉलीवुड के मेगा स्टार अभिताभ बच्चन ने ये कहकर सनसनी मचा दी थी कि उन्होंने जयपुर की एक लड़की के कहने पर पेप्सी का विज्ञापन छोड़ा है. जयपुर में अमिताभ से बच्ची ने कहा था कि उसकी टीचर ने उसे बताया था कि सॉफ्टड्रिंक्स जहरीले होते हैं. जिसके बाद फिल्मी सितारों द्वारा सेहत को नुकसान पहुंचाने वाले सॉफ्टड्रिंक्स का विज्ञापन करने पर सवाल खड़े होने लगे थे. गौरतलब है कि अमिताभ बच्चन ने 24 करोड़ रुपए में पेप्सी के साथ अनुबंध किया था लेकिन आठ साल के बाद जयपुर की एक बच्ची के कहने पर उन्होंने सॉफ्टड्रिंक्स के विज्ञापन करना बंद कर दिए. अमिताभ के इस खुलासे के बाद लोगों ने इस बात की आलोचना भी की थी कि आखिर उन्होंने पेप्सी से नाता तोडऩे के दस साल बाद इसका जिक्र क्यों किया, वह भी पूरा पैसा लेकर.
लेकिन ये बात सही है कि महज पैसों के लालच में जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते हुए और प्रचार किये जाने वाले उत्पाद की गुणवत्ता की पूरी जानकारी लिए बिना जो लोग इसका प्रचार करते हैं, वो समाज की नजर में नैतिक रूप से दोषी माने जायेंगे क्योंकि आम लोग उन चेहरों पर विश्वास करके ही उनके द्वारा प्रोमोट किये जा रहे उत्पादों को खरीदते हैं.
जनता में जागरुकता की कमी भी है कारण
किसी भी कंपनी का कोई भी उत्पाद हो, हमें उसे आंख बंद कर नहीं खरीदना चाहिए. भले ही उसका प्रचार बड़े से बड़ा सितारा या खिलाडी ही क्यों न कर रहा हो. मार्केटिंग के लिए कम्पनियां कभी भी अपने उत्पादों की कमियां या उनसे होने वाले नुकसान की जानकारी जनता को नहीं बताती हैं. इसलिए, बेहतर यही होगा कि कोई भी उत्पाद खरीदने से पहले उसके बारे में जानकारी हासिल करें और जिस सामान को खरीद रहे हों, उसपर दिए गए विवरण को पढ़ें. सरकार ने हर उत्पाद के पैकेट पर उसमें मिलाये गए पदार्थों की जानकारी देना अनिवार्य कर दिया है. अगर लोग जागरुक रहेंगे, तभी ऐसी परेशानियों से बच सकेंगे.
क्या है सरकार की जिम्मेदारी !
देश में मिलावट को लेकर अक्सर ही कोई न कोई मुद्दा सामने आता है लेकिन इसके बावजूद सरकारें इसपर सख्ती से अमल नहीं करती हैं. सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्यों की, दोनों ही स्तर पर खाद्य पदार्थों में मिलावट को सतत कार्रवाई की कमी रहती है. एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में कम से कम 80 हजार पैकेट बंद खाद्य पदार्थ बिकते हैं लेकिन किसी की भी गुणवत्ता की निरंतर जांच नहीं की जाती. आजकल तो राज्यों के खाद्य विभागों का हाल ये हो गया है कि वे होली और दीवाली के वक्त खोये और मिठाइयों में मिलावट के लिए छापा मारकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर देते हैं. इसके अलावा देश के कई राज्य ऐसे हैं, जहां मिलावट की जांच करने के लिए प्रयोगशाला तक नहीं है. कई राज्यों के एफडीए का हाल ये है कि बगैर जनता की तरफ से शिकायत के उनकी तरफ से किसी नमूने की जांच करने की जहमत नहीं उठाई जाती. इसके अलावा, ऐसे मामले भी सामने आये हैं, जहां मिलावट के आरोपी पैसे देकर अपनी गर्दन बचा लेते हैं.
अभी केंद्र सरकार की तरफ से खाद्य विभाग का जिम्मा देख रहे मंत्री राम विलास पासवान ने भी ये कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि सरकार मैगी के मामले पर सीधी कार्रवाई तब तक नहीं कर सकती, जब तक जनता की तरफ से उसके पास कोई शिकायत नहीं की जाती. मतलब या तो सरकार ऐसे मामलों को लेकर उदासीन है या फिर मिलावट के लिए बनाये गए कानून इतने लचर हैं कि बिना जनता की शिकायत के एक केन्द्रीय मंत्री भी इस मामले में सीधा संज्ञान लेकर डायरेक्ट एक्शन नहीं ले सकता!
हालांकि, बाद में मुख्य धारा के मीडिया और सोशल मीडिया की तरफ से दबाव बढ़ने पर सरकार की तरफ सेआज कहा गया है कि भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) विभिन्न राज्यों से इकट्ठा किए गए मैगी नूडल्स के कुछ और नमूनों का परीक्षण कर रहा है. इन परीक्षणों की पूरी रिपोर्ट आने में दो से तीन दिन लग सकते हैं. सरकार ने कहा है कि यदि मैगी के विज्ञापन गुमराह करने वाले पाए जाते हैं तो मैगी के ब्रांड अम्बेसडरों पर भी कार्रवाई हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट भी खाद्य और पेय पदार्थों को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों को कई बार लताड़ चुका है. कोर्ट ने तो मिलावट करने वालों को उम्र कैद की सजा देने के प्रावधान तक की बात कर दी है लेकिन ऐसा लगता है कि कॉरपोरेट लॉबी के दबाव में दबी बैठी सरकारें जनता के स्वास्थ्य से जुड़े इन मुद्दों पर चींटी की चाल से चलने को मजबूर हैं, भले ही देश का आम आदमी मिलावट की आंच में अपनी जान गंवाता रहे.
मिलावटी कंपनियों पर कसनी होगी कड़ी लगाम
देश में खाद्य पदार्थों को बनाने और बेचने वाली हर कंपनी और प्रत्येक उत्पादक को तय मानकों को पूरा करने की बाध्यता होनी चाहिए. अमेरिका और यूरोप में अगर खाद्य पदार्थों में मिलावट का मामला सामने आता है तो सम्बद्ध कंपनी और उत्पादक पर त्वरित रोक लगाने के साथ कड़ी सजा और भारी जुर्माने का प्रावधान है. इसके डर से बड़ी से बड़ी कंपनी भी वहां अपने उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर सतर्क रहती है. इसके अलावा वहां की जनता भी ख़रीदे जाने वाले उत्पाद को लेकर काफी जागरुक रहती है, जिसकी वजह से वहां ऐसे मामले बहुत कम होते हैं. लेकिन दुर्भाग्य से ये बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कम्पनियां जब भारत जैसे देशों में व्यापर करने आती हैं तो यहां की जनता को तीसरी दुनिया का नागरिक मानकर और सरकारों की जांच प्रक्रिया के ढीलेपन और भ्रष्टाचार का फायदा उठाकर अपने प्रोडक्ट बेचने के लिए उसमें मिलावट करती हैं या फिर अपनी गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देतीं. ऐसे कई मामले अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कंपनियों के कोल्ड ड्रिंक्स से लेकर अन्य उत्पादों में भी सामने आये हैं.
इसलिए, अब देश में खाने-पीने की चीजों के अलावा जन स्वास्थ्य से जुड़े किसी भी उत्पाद में मिलावट और उसकी गुणवत्ता से खिलवाड़ करने वालों को सबक सिखाने के लिए बहुत ही कड़े कानून की जरुरत है और उससे भी ज्यादा जरूरी है कि एफडीए जैसी खाद्य पदार्थों की जांच एजेंसियों में ज्यादा संख्या में अधिकारियों की तैनाती की जाये और ये नियम बनाया जाये कि वे बिना जन शिकायत के ही नियमित रूप से ऐसे उत्पादों की जांच करें और उसकी गुणवत्ता का आंकलन करें. इसके साथ ही सभी राज्यों में मिलावट की जांच के लिए लेबोरेटरी स्थापित किया जाना भी जरूरी है. अनुमान के मुताबिक 125 करोड़ की आबादी वाले इस देश में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को जांचने के लिए महज 3000 लोग ही हैं. ऐसे में सही तरीके से काम की उम्मीद कैसे की जा सकती है !
इतना होने के बाद, इन उपायों पर बिना किसी दबाव या भ्रष्टाचार के कार्रवाई होने के बाद ही देश में मिलावट का ये गन्दा खेल रोकने की कोशिश कुछ रंग ला सकती है वरना इस देश के लोगों के जीवन से ये कम्पनियां यूं ही खिलवाड़ करती रहेंगी और हम कभी भी तीसरी दुनिया के नागरिक होने के ठप्पे को हटा नहीं पाएंगे.

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