सूचना प्रौद्योगिकी कानून में संतुलन की जरूरतः न्यायालय

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि देश में कुछ ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ घटनाओं के मद्देनजर सूचना प्रौद्योगिकी कानून का विवादास्पद प्रावधान निरस्त घोषित करने की याचिकाओं पर निर्णय करते समय संतुलन बनाये रखने की जरुरत है. आहत करने वाले संदेश भेजने की स्थिति में इस कानून के विवादास्पद धारा 66-ए के तहत पुलिस को ऐसा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 20, 2013 8:36 PM

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि देश में कुछ ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ घटनाओं के मद्देनजर सूचना प्रौद्योगिकी कानून का विवादास्पद प्रावधान निरस्त घोषित करने की याचिकाओं पर निर्णय करते समय संतुलन बनाये रखने की जरुरत है. आहत करने वाले संदेश भेजने की स्थिति में इस कानून के विवादास्पद धारा 66-ए के तहत पुलिस को ऐसा करने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार है.

न्यायमूर्ति एच एल गोखले और न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर की खंडपीठ ने कहा, ‘‘हमें इस पर गौर करना होगा. देश के कुछ हिस्सों में बहु ही दुर्भाग्यपूर्ण घटनायें हो रही हैं.’’इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा गया कि धारा 66-ए निरस्त की जानी चाहिए क्योंकि इससे बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी सहित कई मौलिक अधिकारों का हनन होता है. इस पर न्यायाधीशों ने हाल ही की बेंगलूर घटना का जिक्र किया जिसमें सोशल मीडिया के जरिये गुमराह करने वाले संदेश के कारण एक क्षेत्र विशेष के छात्र अपने गृह नगर की ओर पलायन करने लगे थे.

न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘ दोनों ही कानून की वैधता और इसकी आवश्यकता’’ बातों के बीच संतुलन बनाने की जरुरत है.’’ न्यायाधीशों ने कहा कि इस मामले को लेकर दायर सभी पांच जनहित याचिकाओं पर अगले साल जनवरी में अंतिम सुनवाई की जायेगी.

कुछ राज्यों द्वारा इस मामले में अभी तक जवाब दाखिल नहीं करने के तथ्य की ओर न्यायाधीशों का ध्यान आकर्षित किया गया तो उन्होंने कहा कि उन्हे इसके नतीजे भुगतने होंगे. विवादास्पद प्रावधान के तहत कंप्यूटर या संचार उपकरण के माध्यम से आपत्तिजनक संदेश भेजने के अपराध में तीन साल तक की सजा का प्रावधान है.

इससे पहले, न्यायालय ने इस प्रावधान की वैधता पर गौर करने का निश्चय किया था. इस प्रावधान के तहत ही शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे के अंतिम संस्कार के अवसर पर कारोबार बंद रखे जाने पर फेसबुक पर टिप्पणी करने के आरोप में महाराष्ट्र की दो लड़कियां गिरफ्तार की गयी थीं. न्यायालय ने शुरु में दिल्ली की छात्र श्रेया सिंघल की जनहित याचिका पर केंद्र और चार राज्यों से जवाब मांगा था. लेकिन बाद में इस मसले पर चार और जनहित याचिकायें दायर हो गयी थीं.

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