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मणिपुर हमले पर राज्य सरकार व सेना आमने-सामने, दिये अलग-अलग बयान, अब अफस्फा का हटना भी मुश्किल

इंफाल : गुरुवार को मणिपुर में हुए उग्रवादी हमले और उसमें भारतीय सेना 6 डोगरा रेजिमेंट के कम से कम 18 जवानों के शहीद हो जाने व 17 के घायल होने के बाद एक ओर जहां इलाके में उग्रवादियों की गिरफ्तारी के लिए अभियान तेज कर दिया गया है, वहीं इस मुद्दे पर भारतीय सेना […]

इंफाल : गुरुवार को मणिपुर में हुए उग्रवादी हमले और उसमें भारतीय सेना 6 डोगरा रेजिमेंट के कम से कम 18 जवानों के शहीद हो जाने व 17 के घायल होने के बाद एक ओर जहां इलाके में उग्रवादियों की गिरफ्तारी के लिए अभियान तेज कर दिया गया है, वहीं इस मुद्दे पर भारतीय सेना और मणिपुर की सरकार आमने-सामने आ गयी है. मणिपुर के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने कहा है कि इस हमले में जवानों का शहीद होना खुफिया नाकामी है और यह हमारे के लिए एक सीख की तरह है. वहीं, सेना ने अपने बयान में कहा है कि यह न तो खुफिया विफलता है और न ही सुरक्षा व्यवस्था में हुई चूक.

भारतीय सेना ने अपने बयान में अफसफा कानून की जरूरत पर भी बल दिया है. ध्यान रहे कि पिछले कुछ माह से इस कानून को हटाने पर केंद्र व राज्य स्तर पर विमर्श हो रहा था. सेना ने कहा है कि इस तरह का कानून उसे इस तरह की स्थितियों के मद्देनजर जरूरी कार्रवाई करने का अधिकार देते हैं, जो उन इलाकों में आवश्यक है.

सेना के 3 कोर के कमांडर विपिन रावत ने एनडीटीवी से ये बातें कहीं हैं. उन्होंने कहां है कि आप इसे इंटेलीजेंस फेल्योर नहीं कह सकते हैं. हम खुफिया सूचनाएं इकट्ठा कर रहे थे और उसके आधार पर कार्रवाई भी कर रहे थे. वहीं, मुख्यमंत्री इबोबी सिंह ने एनडीटीवी से कहा कि यह खुफिया एजेंसियों के लिए एक सबक है

मणिपुर के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने कहा है कि संभावित बगावत व हमले के मद्देनजर मणिपुर-म्यांमार सीमा पर चौकसी के इंतजाम बढा दिये गये हैं और उसे प्रतिबंधित कर दिया है. उल्लेखनीय है कि मणिपुर के चांदेल जिले में जिस जगह सेना पर उग्रवादियों ने हमला किया था, वह म्यांमार सीमा से मात्र 398 किलोमीटर दूर है.

उल्लेखनीय है कि गुरुवार को हुए हमले के बाद शुक्रवार को सेना प्रमुख दलबीर सिंह सुहाग ने मणिपुर का दौरा किया था और हालात का जायजा लिया. आर्मी चीफ ने वहां सेना के साथ आसाम रायफल के जवानों से भी भावी कार्ययोजना के मद्देनजर वार्ता की थी. वहीं, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस मुद्दे पर एक उच्च स्तरीय बैठक की.
अफस्फा कानून का पेंच
पूर्वोत्तर राज्यों से अफस्फा कानून को हटाने की लंबे समय से मांग होती रही है. मई के आखिरी सप्ताह में सशस्त्र बल विशेष शक्ति यानी अफस्फा कानून को त्रिपुरा की माणिक राव सरकार ने हटा दिया था. इसका माकपा सहित कई सामाजिक संगठनों ने स्वागत किया था. मणिपुर की आयरन लेडी इरोम शर्मिला अपने प्रदेश से इस कानून को हटाने की मांग सालों से करती आ रही हैं. इसी साल फरवरी में भारत सरकार की एक उच्च स्तरीय समिति ने जमीनी हालात का जायजा लिया था. जिसमें वर्तमान में जिस जिले चांदेल में उग्रवादी हमला हुआ है, उसे उग्रवादी आंदोलन से मुक्त होने की रिपोर्ट दी गयी थी. पर, हाल के दिनों में उग्रवादी संगठनों ने एक साझा मंच गठित कर लिया है.
मणिपुर के मुख्यमंत्री व उनके मुख्य सचिव सहित सभी अधिकारी भी इस बात से सहमत थे कि अब चरणबद्ध रूप से अफस्फा हटाया जाना चाहिए. इसमें चांदेल जिले का नाम भी शामिल है. हालांकि सेना व असम रायफल न इसका विरोध किया था. बहरहाल, ताजा हमले के बाद अब इस बात की संभावना लगभग खत्म सी हो गयी है कि सरकार वहां से अफस्फा कानून हटायेगी. सुरक्षा बल तो राजधानी इंफाल के इलाके में भी इसे लागू करने की मांग कर चुके हैं.
क्या है अफस्फा कानून?
अफस्फा कानून सशस्त्र बल को विशेष अधिकार देने वाला कानून है. इस कानून के प्रभाव वाले क्षेत्र से सैन्य बल किसी व्यक्ति की बिना वारंट तलाशी ले सकता है या फिर गिरफ्तार भी कर सकता है. अगर वह अपनी गिरफ्तारी के लिए तैयारी होता है, तो जबरन भी उसे गिरफ्तार किया जा सकता है. सेना व्यक्ति के घर भी घुस सकता है. यह विशेष कानून, कानून तोडने वालों पर फायरिंग करने का भी अधिकार देता है, भले ही उसमें किसी की जान चली जाये और सबसे अहम बात इस तरह का आदेश देने वाले यानी फायरिंग व गिरफ्तारी करने वाले के खिलाफ किसी तरह की कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती है.1958 में बना यह कानून पूवार्ेत्तर राज्यों व जम्मू कश्मीर के कई इलाकों में लागू है.

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