जीवन परिचय
जन्म : 23 सितंबर, 1908, सिमरिया, बेगूसराय
निधन : 24 अप्रैल, 1974
कैरियर : पटना विश्वविद्यालय से बीए के बाद एक विद्यालय में अध्यापक. 1934 से 1947 तक बिहार सरकार की सेवा में. 1950 से 1952 तक मुजफ्फरपुर कॉलेज में हिंदी के विभागाध्यक्ष, भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति. इसके बाद भारत सरकार के हिंदी सलाहकार बने.
प्रमुख कृतियां : कुरुक्षेत्र, उर्वशी, रेणुका, रश्मिरथी, द्वंदगीत, बापू
सम्मान : पदमविभूषण से अलंकृत. संस्कृति के चार अध्याय पुस्तक के लिए साहित्य अकादमी तथा उर्वशी के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार.
राष्ट्रकवि दिनकर सिर्फ साहित्य जगत के चमकते सितारे कभी नहीं रहे. वे तो आम जन के कवि थे. उनकी रश्मिरथी की पंक्तियां आज भी लोगों की जुबान पर हैं. वे राष्ट्रीय एकता को अपनी कविताओं के जरिये मजबूत करते हैं. सौंदर्य कविताओं की बात करें, तो इसमें भी वे नये अध्याय जोड़ते नजर आते हैं. प्रेम व अध्यात्म पर केंद्रित उर्वशी को भला कौन भूल सकता है. वे अपनी कविताओं में मानव मूल्यों पर गंभीर विवेचना करते देखे जा सकते हैं. उन्हें सिर्फ महान कवि कहना पूरी तरह गलत होगा. संस्कृति के चार अध्याय उनकी अद्वितीय रचना है, जिसमें भारत का न सिर्फ इतिहास दर्ज है, बल्कि इसके बनने, इसकी एकता के आधार और जीवन मूल्यों का गंभीर विेषण भी है.इस पुस्तक को पढ़ने से दिनकर की गहराई का पता चलता है. दिनकर कल के कवि थे, वे आज के कवि हैं और वे कल के भी कवि रहेंगे.
भागलपुर में रचा गया ‘हिमालय’
कुमार कृष्णन, भागलपुर
‘मेरे नगपति मेरे विशाल. मेरी जननी के हिम किरीट, पौरुष के पूंजी भूत ज्वाल’
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियां उनकी प्रसिद्घ कृति ‘हिमालय’ से है. इसकी रचना उन्होंने भागलपुर में ही की थी. सन् 1933 में बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन का ग्यारहवां सम्मेलन भागलपुर के लालूचक के कृष्ण मिश्र और शिव दुलारे मिश्र की प्रेरणा से आयोजित की गयी थी. सम्मेलन के एक दिन पहले कविवर रामेश्वर झा द्विजेन्द्र द्वारा शीर्षक दे दिया गया था. लालूचक में रात भर जग कर उन्होंने इस कविता की रचना की. यह संयोग ही है कि दिनकर की ‘हिमालय’ कविता पहली बार सुलतानगंज से प्रकाशित ‘गंगा’ में प्रकाशित हुई थी. प्रकाशक थे बनैली स्टेट के कुमार कृष्णानंद सिंह व संपादक थे आचार्य शिव पूजन सहाय. भागलपुर विवि ने 1962 में इन्हें डी-लिट् की मानद उपाधि दी. भागलपुर विश्वविद्यालय में 1964 से लेकर 1966 तक कुलपति रहे. भागलपुर विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में दिनकर का कार्यकाल स्वर्णिम काल था.
हिंदी के विलक्षण कवि हैं दिनकर
‘दिनकर हिंदी के एक विलक्षण कवि है. वे एक तरफ उग्र राष्ट्रवाद की कविताएं लिखते हैं, तो दूसरी तरफ जीवन के सौंदर्य के भोग की कविताएं भी लिखते हैं. ये दोनों परस्पर विरोधी प्रवृतियां उनमें एक साथ व्यक्त होती रही हैं. जब देश के स्वतंत्र होने के लक्षण स्पष्ट हो गये तो उनकी तीव्र रूप से सजग काव्य चेतना ने समझ लिया कि राष्ट्रवाद या भोग में से कोई भी प्रवृत्ति उन्हें कविता के इतिहास में स्थायित्व नहीं दिला सकेगी. इसलिए वे मनुष्य-समाज- दुनिया आदि के बारे में, उनके भविष्य के बारे में ऊंचे स्तर का चिंतन करते हुए कविताएं लिखते हैं. जिसकी शुरुआत कुरूक्षेत्र से हो गयी. कुरूक्षेत्र में युद्ध और शांति, हिंसा और अहिंसा, न्याय व अन्याय, विषमता व समानता आदि से संबंधित प्रश्न उठाते हैं. उन पर मानवीय दृष्टि से विचार करते हैं. उनकी परवर्ती कविताएं इसी चिंतन से बनी हैं. दिनकर जैसा कोई दूसरा कवि आधुनिक हिंदी कविता में नहीं है.
कविता को जनता के बीच ले गये
‘दिनकर के द्वारा आधुनिक हिंदी साहित्य में बिहार की उपस्थिति दर्ज हुई है. वे ओज व वीरता के कवि थे. उन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा तत्कालीन राजनीतिक आंदोलनों और स्वाधीनता के विभिन्न पक्षों को ओजस्वी वाणी दी. उन्होंने युद्ध और शांति को लेकर कुरूक्षेत्र जैसा प्रबंध काव्य लिखा है. प्रेम और अध्यात्म को लेकर ‘उर्वशी’ जैसी कमनीय कृति भी लिखी. वे भारतीय संस्कृति के गंभीर अध्येता थे. ‘संस्कृति के चार अध्याय’ जैसी महत्वपूर्ण कृति रची. इसके अलावे वे अपने समय में विश्व की आधुनिक कविता के बहुत गहरे और गंभीर पाठक थे. उन्होंने ‘शुद्ध कविता की खोज’ जैसी गंभीर कृति दी. वे कविता को जनता के बीच ले गये. भारतीय इतिहास और पुराणों को उपजीव्य बनाकर जनता को सांस्कृतिक रूप से संपन्न किया. दिनकर जी हिंदी कविता के बिहार के सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व के रूप में प्रेरक दीप की तरह हैं.
बड़े साहित्यकार के साथ कुशल व्यक्ति
मेरी नजर में वे एक ऐसे कवि हैं, जिन्हें समय और परिवेश की गहरी पहचान थी. वह जिस सभा में आ जाते थे, सब पर पूरी तरह से छा जाते थे. उनके सामने बाकी लोग मानो कहीं टिकते नहीं थे. सच पूछिए तो दिनकर राष्ट्रीय जन जागरण की काव्य धारा के अमर कवि रहे हैं. उनकी कविताओं में ओज और शौर्य की प्रमुखता रही है. उनकी रचनाएं जन-जीवन को शौर्य, पराक्रम और ओजस्विता से परिपूर्ण कर कर्मण्यता की ओर उन्मुख करने वाली हैं.
उनकी कविताएं त्याग और बलिदान के पथ पर ले जाने वाली और काव्य रचनाएं अन्याय और अत्याचार के प्रति विद्रोह और क्रांति की प्रेरणा देने वाली हैं. उनकी कविताओं में वीर और श्रृंगार रस की धारा प्रवाहित होती है. ‘संस्कृति के चार अध्याय’ उनके गद्य लेखन का सर्वश्रेष्ठ नमूना है. दिनकर जी बड़े साहित्यकार होने के अलावा कुशल व्यक्ति भी थे. सभी वर्ग के लोगों के साथ उनका अच्छा संपर्क रहा.
आज भी प्रासंगिक व सजग करनेवाले
कविता की लोकप्रियता स्तरीयता के साथ कैसी होती है, यह दिनकर के रचनाकर्म से स्पष्टत: उजागर होता है. रश्मि रथी जैसी कृति आज भी ग्राम्य अंचल के कई काव्य पाठकों को याद है. युद्ध और शांति जैसी वैश्विक चिंता का संदर्भ उनके प्रबंध काव्य कुरुक्षेत्र में निहित है. आज, जबकि मूल्य संकट का दुखद दौर अपनी पराकाष्ठा पर है. साथ ही संपूर्ण विश्व आतंकवाद की चपेट में है, तब दिनकर की रचनाएं प्रासंगिक व समय सजग करनेवाली हैं.
द्वंद्व गीत में जीवन जीने की कला, नैतिकता व सामाजिक समरसता को केंद्र में रख कर उनकी कविताएं रची गयी हैं. शौर्य, पराक्रम साथ ही चेतना के ऊचाइयों पर पहुंची अनेक रचनाएं दिनकर ने लिखी हैं, जो सबके बोध को नयी दिशा व दृष्टि देने में सक्षम व समर्थ हैं.