चंडीगढ : बेकार पडे सामान से बनी अपनी अनूठी कलाकृतियों से लोगों को दंग कर देने वाले प्रतिष्ठित रॉक गार्डन के निर्माता नेक चंद का दिल का दौरा पडने के कारण आज यहां एक अस्पताल में निधन हो गया. वह 90 वर्ष के थे. अधिकारियों ने बताया कि नेक चंद बीमार थे और वह पिछले कुछ दिनों से यहां एक निजी अस्पताल में भर्ती थे. उन्हें कल शाम पीजीआइएमइआर में भर्ती कराया गया था जहां दिल का दौरा पडने के कारण तकरीबन आधी रात को उनका निधन हो गया.
केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ प्रशासन ने आज अपने कार्यालयों में अवकाश घोषित कर दिया है. चंडीगढ के अतिरिक्त गृह सचिव एस बी दीपक कुमार ने कहा, ‘हमने नेक चंद जी के निधन के कारण अवकाश घोषित किया है. उनकी पार्थिव शरीर आज रॉक गार्डन में रखा जाएगा ताकि लोग उनके अंतिम दर्शन कर सकें.’ उन्होंने कहा, ‘उनके परिजन उनकी बेटी का विदेश से लौटने का इंतजार कर रहे है. अंतिम संस्कार कल होगा.’
चंडीगढ प्रशासन और शहरवासियों ने पद्मश्री से पुरस्कृत नेक चंद का पिछले साल 15 दिसंबर को 90वां जन्मदिन मनाया था. उनके विश्व भर में लाखों प्रशंसक हैं. नेक चंदन ने पंजाब के लोकनिर्माण विभाग में 1951 में सडक निरीक्षक के तौर पर काम करते हुए प्रसिद्ध सुखना झील के निकट वन के एक छोटे से हिस्से को साफ करके एक छोटे से बगीचा बना कर लोगों को एक अनूठी जादुई दुनिया से रू-ब-रू कराया था.
रॉक गार्डन में चीनी मिट्टी के टूटे बर्तनों, बिजली के सामान, टूटी चूडियों, स्नानघर की टाइलों, वॉश बेसिन और साइकिल के फ्रेमों जैसे बेकार सामान का इस्तेमाल करके बनी पुरुषों, महिलाओं, जानवरों और भगवान की मूर्तियां हैं. रॉक गार्डन का उद्घाटन 1976 में हुआ था. यह अब 40 एकड के क्षेत्र में फैला हुआ है और भारत एवं विदेश से प्रतिवर्ष 2.5 लाख से अधिक लोग यहां आते हैं जिससे टिकटों की बिक्री से करीब 1.8 करोड रुपये की वार्षिक आय होती है.
नेक चंद की अनूठी कला को वाशिंगटन के नेशनल चिल्ड्रेन म्यूजियम समेत विदेश में कई संग्रहालयों में प्रदर्शित किया गया है. ऐसा बताया जाता है कि नेक चंद की 40 शानदार कलाकृतियों को ब्रिटेन के वेस्ट ससेक्स के ऐतिहासिक चिचेस्टर में प्रदर्शित किया जाएगा. नेक चंद ने जब स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (पीजीआइएमइआर) में अंतिम सांस ली, उस समय उनके बेटे अनुज सैनी उनके पास मौजूद थे.
सैनी ने रॉक गार्डन के रखरखाव में अपने पिता की मदद की. नेक चंद का जन्म शंकरगढ में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है. बंटवारे के बाद वह और उनका परिवार पंजाब में आकर बस गया था. सरकारी सडक निरीक्षक के तौर पर काम करते समय नेक चंद ने अपने खाली समय में शहर के आस पास के इलाकों में बेकार पडा सामान एकत्र करना शुरू कर दिया.
उन्होंने अपनी सोच को आकार देने के लिए इन सामग्रियों को रिसाइकल करना शुरू किया और इसके लिए वह करीब दो दशकों तक गुप चुप तरीके से रात के अंधेरे में साइकिल पर सवार होकर जंगल जाया करते है. नेक चंद को शुरुआत में अपनी इस रचना को बचाने के लिए मुश्किलों का सामना करना पडा था. इस बारे में 1975 में जब अधिकारियों को पता चला था तो उन्होंने इसे नष्ट करने की धमकी दी.
उनका कहना था कि यह उन कडे नियोजन कानूनों का उल्लंघन है जो ली कोर्बुजिए की ‘सिटी ब्यूटीफुल’ की रक्षा के लिए बनाये गये थे, जहां यह अनिवार्य था कि हर चीज मास्टर प्लान का हिस्सा होनी चाहिए. नेक चंद फाउंडेशन के अनुसार उस समय कई राजनेताओं ने रॉक गार्डन को अवैध निर्माण बताकर उसे ढहाए जाने की मांग की थी. नेक चंद को उनके कार्यभार से मुक्त कर दिया गया और ‘निर्माता-निदेशक’ के तौर पर रॉक गार्डन का विस्तार जारी रखने के लिए उन्हें वेतन दिया जाता रहा.
इसके अलावा उनकी कलाकृतियों को रॉक गार्डन में स्थापित करने में मदद करने के लिए शहर प्रशासन ने श्रमिक भी मुहैया कराए. इसके पश्चात नेक चंद के काम को समर्थन देने और रॉक गार्डन के बारे में विश्व भर में जागरुकता पैदा करने के लिए 1997 में नेक चंद फाउंडेशन का गठन किया गया जो कि एक पंजीकृत परमार्थ संगठन है.
चंडीगढ के लोगों और प्रशासन ने दिसंबर 2014 में पूरे जोश के साथ नेक चंद का 90वां जन्मदिन मनाया था. उन्हें शुभकामनाएं देने के लिए रॉक गार्डन में लोगों की भीड एकत्र हुई थी जहां उन्होंने इस अवसर के लिए विशेष तौर पर बनवाया गया एक बडा केक काटा था. रॉक गार्डन का रख रखाव नेक चंद फाउंडेशन करता है.