वामदलों के साथ बिहार में महा धर्मनिरपेक्ष गठबंधन की नहीं संभावना

नयी दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ धर्मनिरपेक्ष महागठबंधन बनाने के प्रयासों को झटका लगा है. वामदल ऐसे किसी समूह में शामिल होने में अनिच्छा दिखा रहे हैं और पृथक समूह के रुप में चुनाव लड़ सकते हैं. जदयू सूत्रों ने कहा कि उनके प्रस्ताव पर वाम दलों की ओर से कोई सकारात्मक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 14, 2015 11:40 AM

नयी दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ धर्मनिरपेक्ष महागठबंधन बनाने के प्रयासों को झटका लगा है. वामदल ऐसे किसी समूह में शामिल होने में अनिच्छा दिखा रहे हैं और पृथक समूह के रुप में चुनाव लड़ सकते हैं.

जदयू सूत्रों ने कहा कि उनके प्रस्ताव पर वाम दलों की ओर से कोई सकारात्मक जवाब नहीं आया है. ऐसे संकेत हैं कि वे पृथक समूह के रुप में आगे बढ़ेंगे. वामदलों के दो अहम धड़े माकपा और भाकपा हाल के वर्षो में बिहार में कमजोर हुए हैं लेकिन राज्य के कुछ क्षेत्रों में इनका प्रभाव बना हुआ है जहां कभी वे मुख्य विपक्षी दल रहे थे. बिहार में वाम दलों में अभी सीपीआइ एमएल की स्थिति सबसे अधिक मजबूत है. उन्हें मध्य बिहार के कुछ इलाकों एवं राज्य के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में समर्थन है.

सीपीआइ एमएल के पोलित ब्यूरो के सदस्य प्रभात चौधरी ने कहा कि उनका पार्टी के जदयू-राजद गठबंधन के साथ जाने की संभावना नहीं है और वह वाम दलों के गठबंधन के लिए काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा, हम राज्य सरकार और केंद्र में कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ रहे हैं. हम यहां उनके गठबंधन का समर्थन कैसे कर सकते हैं.

जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि वामदल अकसर राजनीतिक गठजोड़ के गलत पक्ष में चले जाते हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद प्रमुख लालू प्रसाद के गठबंधन में शामिल नहीं होने के उनके निर्णय से धर्मनिरपेक्ष एकता को नुकसान पहुंचेगा. उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसे गठबंधन की अब भी उम्मीद है और धर्मनिरपेक्ष गठबंधन के नेता वामदलों के संपर्क में हैं. वामदलों की कुल वोट हिस्सेदारी 6 से 8 प्रतिशत बताई जाती है और करीबी मुकाबले की स्थिति में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी.

भाजपा नीत राजग गठबंधन और जदयू-राजद गठबंधन अपनी अपनी स्थिति मजबूत बनाने के लिए गठबंधन को मजबूत बनाने का प्रयास कर रहे हैं. भाजपा अपने साथ महादलित नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को लाने में सफल रही है जबकि लालू एवं नीतीश ने दो दशक पुरानी कटुता को भुलाकर एक साथ आने का निर्णय किया है.

Next Article

Exit mobile version