ललित मोदी प्रकरण के बाद कितनी मुश्किल भरी है वसुंधरा राजे के लिए आगे की राह?
नयी दिल्ली : ललित मोदी से संबंधों को लेकर भाजपा की दो सबसे कद्दावर महिला नेता बुरी तरह घिर गयी हैं. एक तो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, दूसरी राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे. भाजपा से मिल रहे संकेत यह बताते हैं कि पार्टी सुषमा स्वराज के साथ तो खडी है, लेकिन वसंुधरा राजे से वह […]
नयी दिल्ली : ललित मोदी से संबंधों को लेकर भाजपा की दो सबसे कद्दावर महिला नेता बुरी तरह घिर गयी हैं. एक तो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, दूसरी राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे. भाजपा से मिल रहे संकेत यह बताते हैं कि पार्टी सुषमा स्वराज के साथ तो खडी है, लेकिन वसंुधरा राजे से वह किनारा कर रही है. सुषमा स्वराज खुद के ललित मोदी से रिश्ते को दो स्तरों पर परिभाषित कर चुकी हैं और भारतीय जनता पार्टी उसे सही करार दे रही है. एक तो एक भारतीय की मानवीय आधार पर कानून सम्मत ढंग से बाहरी धरती पर यथासंभव मदद की कोशिश, जिसे सुषमा का स्वभाव भी बताया जा रहा है, वहीं दूसरा पति स्वराज कौशल व बेटी बांसुरी के वकील होने के कारण उनका कानूनी संबंध.
उधर, भाजपा की कडे तेवर वाली महिला नेता की छवि रखने वाली वसुंधरा राजे पर आरोप लगे हैं कि वे ललित मोदी की पत्नी को लेकर पुर्तगाल गयी थीं और उनके कागजात पर हस्ताक्षर भी किये थे. ललित मोदी और वसुंधरा राजे के सांसद पुत्र दुष्यंत सिंह के बीच कारोबारी रिश्ते की बातें भी मीडिया में आ रही हैं.
खबर है कि बुधवार को वसुंधरा राजे ने पार्टी प्रमुख अमित शाह को फोन कर उनसे मिलने का समय मांगा था, ताकि वे विस्तार से उनके समक्ष अपना पक्ष रख सकें. लेकिन, सूत्रों का कहना है कि पार्टी अध्यक्ष ने उनसे मिलने में असमर्थता जतायी और अमित शाह ने फोन पर ही उनका पक्ष सुना. बुधवार को ही जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक के बाद प्रेस ब्रीफिंग के लिए संचार व आइटी मंत्री रविशंकर प्रसाद मीडिया से रू-ब-रू हुए, तो उन्होंने वसंधुरा से संबंधित सवालों पर कहां कि इसका जवाब तो वही दे सकती हैं.
वहीं, वसुंधरा से उलट सुषमा स्वराज की इस मुद्दे पर पार्टी में मजबूत स्थिति का अंदाज इस बात पर लगाया जा सकता है कि मंगलवार को कश्मीर के लिए बडे पैकेज का एलान करने जब नरेंद्र मोदी सरकार के दो कद्दावर सदस्य गृहमंत्री राजनाथ सिंह और वित्तमंत्री अरुण जेटली प्रेस कान्फ्रेंस में पहुंचे तो उससे पहले दोनों नेताओं ने एक घंटे तक सुषमा स्वराज से भेंट की थी और उनसे ललित मोदी प्रकरण पर विस्तारपूर्वक विभिन्न पक्षों पर बात की.
पहले भी मुश्किलों में घिरती रहीं हैं वसुंधरा राजे
वसुंधरा राजे मुश्किल में पहली बार नहीं घिरी हैं. 2008 के राजस्थान विधानसभा चुनाव के दौरान भी वसुंधरा राजे का न सिर्फ भाजपा नेतृत्व बल्कि संघ नेतृत्व से भी खटास पूर्ण संबंध था. उस समय मीडिया में आयी खबरों में यह कहा गया था कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ वसुंधरा राजे के व्यवहार के कारण विधानसभा चुनाव में खुद को अलग-थलग कर चुका है. इस कारण वसुंधरा राजे की लोकप्रियता के बावजूद भाजपा वहां काफी अंतर से कांग्रेस के हाथों हार चुकी थी.
वसुंधरा राजे व भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह के रिश्ते
2008 के विधानसभा चुनाव के दौरान राजनाथ सिंह भाजपा के अध्यक्ष थे. राजस्थान के संघ नेतृत्व से खटास पूर्ण रिश्ते के बाद जब वसुंधरा राजे चुनाव हार गयीं थी, तब राजनाथ सिंह ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष के पद से हटाने का निर्णय लिया और उनके पर कतरने उन्हें केंद्र में लाने का फैसला लिया गया. नि:संदेह इसमें संघ की मौन सहमति थी. वसुंधरा राजे को पार्टी नेतृत्व का यह फैसला रास नहीं आया. वसुंधरा राजे ने इसका अपनी शैली में विरोध किया. उस समय उन्होंने अपना जन समर्थन व लोकप्रियता दिखाने के लिए पूरे राजस्थान की यात्रा करते हुए पार्टी नेतृत्व से मिलने के लिए दिल्ली आने का फैसला लिया. वसंुधरा का यह दबाव काम आया और भाजपा नेतृत्व को ही समझौते की राह तलाशनी पडी.
वसुंधरा राजे के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से रिश्ते
2013 में जब राजस्थान विधानसभा चुनाव में भाजपा को 200 में 163 सीटें हासिल हुईं, तो अपने स्वभाव के विपरीत वसुंधरा राजे ने इसका श्रेय नरेंद्र मोदी को भी दिया. नरेंद्र मोदी तबतक प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बन कर भाजपा के निर्विवाद रूप से शिखर नेता बन चुके थे. 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तब अपने राज्य को केंद्रीय मंत्रिपरिषद में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलने को लेकर वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी उलझ गयीं और राज्य के लिए केंद्रीय कैबिनेट में और पद मांगे. तब प्रधानमंत्री ने उन्हें उनकी भूमिका राजस्थान तक सीमित होने व खुद की भूमिका पूरे देश के लिए होने की बात याद दिलायी.
जबरदस्त लोकप्रियता, मुश्किल राह और ललित मोदी प्रकरण
नि:संदेह भाजपा के पास बहुत कम ऐसे क्षत्रप हैं, जो वसंुधरा राजे की तरह लोकप्रिय हैं. यही लोकप्रियता वसुंधरा राजे का सबसे बडा हथियार है, जिससे वे पार्टी नेतृत्व पर दबाव बन लेती हैं और अपनी बात मनवा लेती हैं. पार्टी नेतृत्व भी उत्तरप्रदेश के खराब अनुभव को अब तक नहीं भूल पाया है, जब वहां कल्याण सिंह की अपार लोकप्रियता के बावजूद उन्हें पद से हटाने के बाद पार्टी का लगभग सफाया ही हो गया. ऐसे में तमाम दुश्वारियों के बावजूद भाजपा नेतृत्व के लिए वसुंधरा को हटाना मुश्किल नहीं है. वसुंधरा ने दबाव की राजनीति के तहत अपने पद को बचाने के लिए अपने समर्थक विधायकों को दिल्ली भेजने का फैसला भी ले लिया है. पर, ललित मोदी प्रकरण की गुत्थी काफी उलझी हुई है, जिसमें वसुंधरा पूरी तरह उलझ गयी हैं. मीडिया रिपोर्टो में तो यह भी कहा जा रहा है कि ललित मोदी वसंुधरा से अपना हिसाब बराबर कर रहे हैं, क्योंकि वसुंधरा ने अपने पहले कार्यकाल 2003-08 की तरह दूसरे कार्यकाल 2013 से अबतक उन्हें महत्व नहीं दिया. नि:संदेह वसंुधरा अपने राजनीतिक जीवन के अबतक के सबसे मुश्किल दौर में हैं और देखना होगा कि वे पहले की तरह इस बार भी उससे पार पा लेती हैं या फिर हार जाती हैं.